जयपुर. क्यारियों में विभिन्न प्रकार की सब्जियों से लकदक पौधे और बेलें, झाड़ पर झूलते नींबू और गेंदा, गुलदाउदी और नवरंगा की छटा बिखेरते पौधे...यह नजारा किसी प्रगतिशील किसान के कृषि फार्म का नहीं बल्कि राजधानी जयपुर की सेंट्रल जेल का है. यहां बंदी ऑर्गेनिक सब्जियों, फल और फूल की खेती कर रहे हैं. अब तक सेंट्रल जेल के इस ऑर्गेनिक फार्म में हजारों किलो अलग-अलग सब्जियां और फल पैदा किए जा चुके हैं. यह सब्जियां जेल के बंदियों के लिए रसोई में पकाई जा रही हैं.
8 महीने पहले की थी शुरुआत : जेल प्रशासन की यह मुहिम न केवल अपराध के रास्ते जेल पहुंचे बंदियों को आत्मनिर्भर बनाने में मददगार साबित हो रही है, बल्कि ऑर्गेनिक सब्जियों से बंदियों की सेहत भी सुधर रही है. दरअसल, सेंट्रल जेल की चारदीवारी के भीतर खाली पड़ी 5 बीघा जमीन पर करीब आठ महीने पहले ऑर्गेनिक फार्म की शुरुआत की गई. यहां बंदी ड्रिप सिस्टम और मल्चिंग तकनीक से हरी सब्जियां उगा रहे हैं. इसके साथ ही बंदियों ने यहां गेंदा, गुलदाउदी और नवरंगा के पौधे भी तैयार किए हैं, जिनमें अब फूल आने लगे हैं.
साउथ अफ्रीका के निवासी बंदी जोसफ और उसके साथ 8-10 बंदी दिनभर इस फार्म में मेहनत कर सब्जियों की पैदावार बढ़ाने के गुर भी सिखा रहे हैं. इन बंदियों ने अपनी मेहनत के बूते आलू, टमाटर, मिर्च, भिंडी, करेला, लौकी, धनिया, पालक, मूली, गाजर से लेकर ब्रोकली तक सफलतापूर्वक उगाई है. अब कई सब्जियों के नए पौधे भी तैयार किए जा रहे हैं, जो कुछ समय बाद पैदावार देंगे.
जैविक खाद और कीटनाशक का उपयोग : जेल की पांच बीघा जमीन पर सब्जियों, फल और फूल की पैदावार बढ़ाने के लिए न तो रासायनिक खाद का उपयोग किया जा रहा है और न ही कीटनाशक का. खाद और कीटनाशक भी बंदी खुद ही तैयार कर रहे हैं. नीम की पत्तियों, लहसुन और चावल के मांड को मिलाकर खास तरह का जैविक खाद तैयार किया जाता है, जिसका छिड़काव पौधों और बेलों पर करने से पैदावार बढ़ती है और कीट भी खत्म होते हैं. इसके अलावा जड़ों में पनपने वाले जीवों को नष्ट कर पौधों को बचाने के लिए लकड़ी की राख का प्रयोग किया जाता है.
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जेल प्रशासन और एनजीओ का साझा प्रयास : बंदियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ऑर्गेनिक फार्मिंग के गुर सिखाने और ताजा सब्जियों से बंदियों की सेहत सुधारने के लिए जेल प्रशासन ने लिविंग ग्रीन ऑर्गेनिक कंपनी की मदद से पिछले साल 21 सितंबर को डब्ल्यूआरआई प्रोजेक्ट के तहत सेंट्रल जेल में पांच बीघा जमीन पर ऑर्गेनिक फार्म और लेमन गार्डन तैयार किया है. इस पूरे इलाके में बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति की व्यवस्था की गई है. इसके साथ ही मल्चिंग तकनीक से सब्जियां उगाने का बंदियों को प्रशिक्षण दिया गया. एनजीओ की ओर से ट्रेनर हरदयाल शेषमा बंदियों को पैदावार बढ़ाने की तकनीक सिखाते हैं.
गाजर-मूली से लेकर ब्रोकली की भी पैदावार : इस ऑर्गेनिक फार्म में सीजन के अनुसार सब्जियां उगाई जा रही हैं. इसके लिए बीज भी यहीं तैयार किए जा रहे हैं. अब तक 810 किलो पालक, 436 किलो मूली, 270 किलो गाजर, 770 किलो बैंगन, 131 किलो आलू, 132 किलो कद्दू, 20 किलो हरा धनिया, 25 किलो ब्रोकली और टमाटर और मिर्च की पैदावार की जा चुकी है. अब क्यारियों में भिंडी, हरी मिर्च, टमाटर, लौकी, करेला सहित अन्य सब्जियों के साथ ही ग्वार और चवले की नई पौध भी तैयार की गई है. इनमें से कई पौधों पर फूल आने लगे हैं. इसके साथ ही बैंगन और अन्य सब्जियों के बीज भी यहां तैयार हो रहे हैं, जो नए पौधे लगाने के काम आएंगे.
सेहत के साथ आत्मनिर्भरता : सेंट्रल जेल के अधीक्षक संजय यादव बताते हैं कि फिलहाल जयपुर की सेंट्रल जेल में 1600 बंदी हैं. यहां ऑर्गेनिक फार्म में जो सब्जियां उग रही हैं, वो इन बंदियों के खाने के काम ली जाती है. अब तक 4 हजार किलो अलग-अलग किस्म की सब्जियां यहां पैदा की गई हैं. ऑर्गेनिक फार्म पर 11 बंदी सुबह 10 से शाम 5 बजे तक काम करते हैं. इसके बदले उन्हें 156 रुपए मिलते हैं. उनका कहना है कि बाजार में जो सब्जियां मिल रही हैं उनकी और जेल के ऑर्गेनिक फार्म की सब्जियों की गुणवत्ता में दिन-रात का फर्क है. ऑर्गेनिक सब्जियों से बंदियों की सेहत भी सुधर रही है.
गेंदा, गुलदाउदी और नवरंगा बिखेर रहा छटा : सब्जियों के साथ ही जयपुर सेंट्रल जेल के ऑर्गेनिक फार्म में बंदी गेंदा, गुलदाउदी और नवरंगा की पौध भी क्यारियों में तैयार कर रहे हैं. इसके साथ ही बड़ी संख्या में यहां नींबू के पौधे भी लगाए गए हैं. इन पर अब नींबू आने लगे हैं. इसके साथ ही कुछ पौधे पपीता और अन्य फलों के भी लगाए गए हैं. पपीते के पौधे पर भी फल आने लगे हैं.
बढ़ रहा है ऑर्गेनिक सब्जियों का क्रेज : जेल में बंदियों को ऑर्गेनिक फार्मिंग के जो गुर सिखाए जा रहे हैं, वे जेल से बाहर आने पर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में भी मददगार साबित हो सकते हैं. आजकल सोसायटी में ऑर्गेनिक सब्जियों और फलों की डिमांड तेजी से बढ़ रही हैं. ऑर्गेनिक सब्जियों और फलों के दाम ज्यादा मिलते हैं और इनकी खेती से अच्छा मुनाफा मिलता है. ऐसे में ये बंदी जब जेल से बाहर आएंगे तो यह तकनीक उनके जीवन को नई दिशा देने में भी मददगार साबित हो सकती है.