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Announcement of Padma Shri: हुसैन बंधुओं को याद है पिता की सीख, आज भी खुद को उस्ताद नहीं शागिर्द मानते हैं - singer Ahmed Hussain and Mohd Hussain

जयपुर के हुसैन बंधुओं को गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्मश्री सम्मान से नवाजे (Hussain brothers journey of music) जाने का ऐलान किया गया है. दोनों ने राजस्थान सरकार को धन्यवाद दिया और पिता को याद करते हुए कहा कि वे आज भी उस्ताद नहीं शागिर्द ही हैं.

हुसैन बंधुओं को पद्मश्री की घोषणा
हुसैन बंधुओं को पद्मश्री की घोषणा
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Published : Jan 26, 2023, 3:49 PM IST

Updated : Jan 27, 2023, 7:50 AM IST

हुसैन बंधुओं को पद्मश्री की घोषणा

जयपुर. गुलाबी शहर जयपुर की गलियों से पूरी दुनिया में अपनी गजलों से जलवा बिखेरने वाले गायक बंधु अहमद हुसैन और मोहम्मद हुसैन की चर्चा पूरे शहर में हो रही है. गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर घोषित पद्मश्री पुरस्कारों में हुसैन बंधुओं को संयुक्त रूप से पद्मश्री से नवाजे जाने का ऐलान किया गया. हुसैन बंधुओं की सादगी का आलम यह है कि वे आज भी खुद को उस्ताद नहीं बल्कि शागिर्द ही मानते हैं.

अपने वालिद को याद करते हुए हुसैन बंधु बताते हैं कि सिखाते वक्त उन्हें पिता ने कभी पुत्र के रूप में नहीं बल्कि शिष्य के रूप में ही देखा था. पद्मश्री पुरस्कारों की घोषणा के बाद दोनों ने पूरे देश का शुक्रिया अदा किया. पद्मश्री सम्मान से नवाजे जाने की घोषणा के बाद हुसैन बंधुओं ने मीडिया से बातचीत में अपनी कामयाबी के लिए पिता अफजल को प्रेरणा स्रोत बताया. हुसैन बंधुओं ने पिता के लिए ग़ज़ल की पंक्तियां सुनाई और अपनी गायकी में अपनी जिंदगी का आगाज कैसे किया यह भी बताया.

पढ़ें. Padma Awards 2023: पद्म पुरस्कारों का ऐलान, राजस्थान से चार शख्सियत होंगी सम्मानित

पिता को समर्पित किया पद्म पुरस्कार
हुसैन बंधु ने बातचीत के दौरान बताया कि उनके प्रेरणास्रोत पिता अफजल हुसैन थे. उन्होंने इस सम्मान के लिए राजस्थान सरकार का तहे दिल से शुक्रिया भी अदा किया. उन्होंने कहा कि हमारे पिता हमेशा यही कहते थे कि कभी अवार्ड को तवज्जो न दें, अगर आप अच्छा करोगे तो उसका इनाम जरूर मिलेगा. उन्होंने कहा कि हमने बाल कलाकार के तौर पर अपनी जिंदगी का आगाज किया था और पूरी जिंदगी हम इसी में निकालना चाहते हैं.

उन्होंने बताया था कि पिता ने सीख दी थी कि बेटा तुम दोनों हमेशा साथ रहना. उन्होंने ही हमारी जोड़ी बनाई इसलिए उनका रिश्ता कमजोर नहीं. एक खून, एक खयालात और एक सुर का रिश्ता है हमारे बीच. 'उस्ताद अहमद हुसैन' और 'मुहम्मद हुसैन' क्लासिकल, गज़ल गायकी, भजन और कव्वाली गाया करते हैं. इनके पिता 'उस्ताद अफज़ल हुसैन' भी गजल और ठुमरी के उस्ताद रहे थे.

पढ़ें. Padma Award To Dungarpur Man: समाज सेवी मूलचंद लोढ़ा को मिलेगा पद्मश्री, जानें RSS के पूर्व प्रचारक को क्यों चुना गया!

सिफर से सिरमौर तक हुसैन बंधु का सफर
हुसैन बंधुओं ने अपनी गायकी के सफर का आगाज 1958 में किया था. उन्होंने साल 1959 में बाल कलाकार के रूप में जयपुर से आकाशवाणी पर अपने हुनर का जलवा बिखेरा. साल 1980 में क्लासिकल ठुमरी पर इनका पहला एलबम 'गुलदस्ता' रिलीज़ हुआ था. इसके बाद साल 1978 में 'मैं हवा हूं कहां वतन मेरा' की गजल गायकी से इन्हें काफी शौहरत हासिल हुई. बॉलीवुड में फिल्म वीरजारा सहित कई मंचों पर भी इन्हें मौका मिला. इनकी मशहूर गजल 'चल मेरे साथी चल', 'नज़र मुझसे' भी सुर्खियों में रहीं हैं. अपने सफर में पचास से ज्यादा एल्बम उन्होंने रिलीज किए हैं. साल 2000 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से हुसैन बंधुओं को नवाजा गया.

हुसैन बंधुओं को पद्मश्री की घोषणा

जयपुर. गुलाबी शहर जयपुर की गलियों से पूरी दुनिया में अपनी गजलों से जलवा बिखेरने वाले गायक बंधु अहमद हुसैन और मोहम्मद हुसैन की चर्चा पूरे शहर में हो रही है. गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर घोषित पद्मश्री पुरस्कारों में हुसैन बंधुओं को संयुक्त रूप से पद्मश्री से नवाजे जाने का ऐलान किया गया. हुसैन बंधुओं की सादगी का आलम यह है कि वे आज भी खुद को उस्ताद नहीं बल्कि शागिर्द ही मानते हैं.

अपने वालिद को याद करते हुए हुसैन बंधु बताते हैं कि सिखाते वक्त उन्हें पिता ने कभी पुत्र के रूप में नहीं बल्कि शिष्य के रूप में ही देखा था. पद्मश्री पुरस्कारों की घोषणा के बाद दोनों ने पूरे देश का शुक्रिया अदा किया. पद्मश्री सम्मान से नवाजे जाने की घोषणा के बाद हुसैन बंधुओं ने मीडिया से बातचीत में अपनी कामयाबी के लिए पिता अफजल को प्रेरणा स्रोत बताया. हुसैन बंधुओं ने पिता के लिए ग़ज़ल की पंक्तियां सुनाई और अपनी गायकी में अपनी जिंदगी का आगाज कैसे किया यह भी बताया.

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पिता को समर्पित किया पद्म पुरस्कार
हुसैन बंधु ने बातचीत के दौरान बताया कि उनके प्रेरणास्रोत पिता अफजल हुसैन थे. उन्होंने इस सम्मान के लिए राजस्थान सरकार का तहे दिल से शुक्रिया भी अदा किया. उन्होंने कहा कि हमारे पिता हमेशा यही कहते थे कि कभी अवार्ड को तवज्जो न दें, अगर आप अच्छा करोगे तो उसका इनाम जरूर मिलेगा. उन्होंने कहा कि हमने बाल कलाकार के तौर पर अपनी जिंदगी का आगाज किया था और पूरी जिंदगी हम इसी में निकालना चाहते हैं.

उन्होंने बताया था कि पिता ने सीख दी थी कि बेटा तुम दोनों हमेशा साथ रहना. उन्होंने ही हमारी जोड़ी बनाई इसलिए उनका रिश्ता कमजोर नहीं. एक खून, एक खयालात और एक सुर का रिश्ता है हमारे बीच. 'उस्ताद अहमद हुसैन' और 'मुहम्मद हुसैन' क्लासिकल, गज़ल गायकी, भजन और कव्वाली गाया करते हैं. इनके पिता 'उस्ताद अफज़ल हुसैन' भी गजल और ठुमरी के उस्ताद रहे थे.

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सिफर से सिरमौर तक हुसैन बंधु का सफर
हुसैन बंधुओं ने अपनी गायकी के सफर का आगाज 1958 में किया था. उन्होंने साल 1959 में बाल कलाकार के रूप में जयपुर से आकाशवाणी पर अपने हुनर का जलवा बिखेरा. साल 1980 में क्लासिकल ठुमरी पर इनका पहला एलबम 'गुलदस्ता' रिलीज़ हुआ था. इसके बाद साल 1978 में 'मैं हवा हूं कहां वतन मेरा' की गजल गायकी से इन्हें काफी शौहरत हासिल हुई. बॉलीवुड में फिल्म वीरजारा सहित कई मंचों पर भी इन्हें मौका मिला. इनकी मशहूर गजल 'चल मेरे साथी चल', 'नज़र मुझसे' भी सुर्खियों में रहीं हैं. अपने सफर में पचास से ज्यादा एल्बम उन्होंने रिलीज किए हैं. साल 2000 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से हुसैन बंधुओं को नवाजा गया.

Last Updated : Jan 27, 2023, 7:50 AM IST
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