जयपुर. रंगों के पर्व को मनाने के लिए जयपुरवासी तैयार हैं. हालांकि, कुछ लोग रंग और गुलाल में मिले केमिकल से होने वाली स्किन डिजीज के चलते इस पर्व से दूर होते जा रहे हैं. लेकिन अब उन्हें घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि जयपुर में अबकी गाय के गोबर, आरारोट और नेचुरल कलर से इको फ्रेंडली हर्बल गुलाल बनाई जा रही है. अब तक गाय के गोबर से बने कंडे, गोकाष्ठ, दीपक आदि ही प्रचलन में थे, लेकिन इस बार बाजारों में गाय के गोबर से बने गुलाल भी उपलब्ध है. जो शरीर के लिए हार्मफुल भी नहीं है. यह गुलाल बाजार में केसरिया, पीले, बैंगनी सहित विभिन्न रंगों में उपलब्ध है.
जानें कैसे बनता है गोबर से गुलाल - खैर, अब आप सोच रहे होंगे कि जो गुलाल गोबर से बना है, वो आखिर होगी कैसी तो आपको बता दें कि यह पूरी तरह से हर्बल और खुशबूदार है. इस गुलाल की मैन्युफैक्चरिंग करने वाली पारुल हल्दिया ने बताया कि ये गुलाल ऑर्गेनिक है और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी पूरी तरह सुरक्षित है. गुलाल को बनाने के लिए गोबर को बारीक पीसकर पाउडर बनाया जाता है. इसके बाद इसमें खाने के रंग, आरारोट और खुशबू के लिए फूलों की पत्तियों का इस्तेमाल किया जाता है.
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केमिकल फ्री है गोबर से बना गुलाल - उन्होंने आगे बताया कि गोबर की बदबू न रहे इसके लिए इसे दो से तीन दिन धूप में सुखाया जाता है. वहीं, उन्होंने 10 मिनट में सूखे गोबर से गुलाल बनने के दावे को पूरी तरह से खारिज करते हुए कहा कि इसमें तकरीबन दो से तीन दिन लग जाते हैं, तब जाकर इसे होली खेलने लायक बनाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि कई लोग स्किन डिजीज और सांस की समस्या होने के चलते हैं हानिकारक पदार्थों और केमिकल से बनने वाले गुलाल और रंगों की वजह से होली खेलने से बचते हैं. ऐसे लोगों के लिए यह गुलाल पूरी तरह सुरक्षित है.
मुंह में जाने पर भी नहीं होगा कोई नुकसान - पारुल ने दावा किया कि इस गुलाल से स्किन तो दूर की बात है, अगर ये गलती से मुंह में भी चला जाए तो भी कोई नुकसान नहीं होगा. उन्होंने कहा कि गोबर का काम करने वाली महिलाओं को कभी भी स्किन डिजीज नहीं होती. यही वजह है कि इस गुलाल के इस्तेमाल से भी किसी तरह की स्किन डिजीज या एलर्जी नहीं होगी.
64 परिवारों को मिला रोजगार - उन्होंने बताया कि ये गुलाल चाकसू के नजदीक केशवपुरा गांव में ग्रामीणों की ओर से तैयार किया जा रहा है. इससे करीब 64 परिवारों को रोजगार मिला है. इस काम से उनके साथ 80 प्लस उम्र की महिलाएं भी जुड़ी हैं. साथ ही इस गुलाल से होने वाली आमदनी को गायों के संवर्धन पर खर्च किया जा रहा.
गोबर से गुलाल बनाने की प्रक्रिया - सबसे पहले गाय के गोबर के कंडे (उपले) तैयार किए जाते हैं. कंडे सूखने के बाद उसे मशीन में महीन पाउडर के रूप में पीसकर निकाल लिया जाता है. इसके बाद इसमें आरारोट सूखे फूलों के पाउडर, खाद्य पदार्थों में मिलाए जाने वाले रंग को एक निर्धारित अनुपात में मिश्रित किया जाता है. फिर इसको सूखने के लिए दो दिन धूप में रखा जाता है. इसके बाद तैयार गुलाल को छानकर 100 ग्राम, 200 ग्राम, 500 ग्राम और एक किलो तक के पैकेट्स में पैक कर बाजारों में उपलब्ध कराया जाता है.
बहरहाल, छोटी काशी अपनी विरासत ही नहीं त्योहारों को मनाने के अंदाज के लिए भी जाना जाता है. रंगों का पर्व होली मनाने में भी शहरवासी पीछे नहीं रहते. उनके साथ देशी-विदेशी पर्यटक भी होली के रंगों में सराबोर होते नजर आते हैं और इस बार भी इन रंगों में गोबर से बने ऑर्गेनिक और हर्बल गुलाल शामिल हो गए हैं.