जयपुर. राजस्थान में शिक्षा के मंदिर कलंकित हो रहे हैं. स्कूलों में मासूम बच्चियों से छेड़छाड़ और दुष्कर्म की घटनाएं साल दर साल लगातार बढ़ रही हैं. हाल ही में सुदूर डूंगरपुर से लेकर जोधपुर और राजधानी जयपुर में भी ऐसे मामलों ने न केवल पीड़ित बच्ची और उसके परिजनों बल्कि स्कूल में पढ़ने वाली हर बच्ची के अभिभावकों को झकझोर कर रख दिया है. पिछले दिनों जो घटना हुई हैं, उनमें स्कूल के चपरासी से लेकर शिक्षक तक मासूम बच्चियों से ज्यादती करते पाए गए हैं. ऐसे में अभिभावकों की चिंता यह है कि आखिर भरोसा करें तो किस पर.
राजस्थान पुलिस के आंकड़ों के अनुसार साल 2018 में स्कूलों में बच्चियों के साथ छेड़छाड़ और दुष्कर्म की 23 घटनाएं सामने आई और इनमें पुलिस में मुकदमा दर्ज करवाया गया. साल 2019 में प्रदेशभर में स्कूल में बच्चियों के साथ गंदी हरकत के 123 मामले सामने आए हैं. कमोबेश यही हालत साल 2020 में रहे और इस साल इस तरह के 103 मामले थानों तक पहुंचे हैं, जबकि साल 2021 में स्कूलों में बच्चियों के साथ छेड़छाड़ और दुष्कर्म के 139 मुकदमें राज्य में दर्ज हुए हैं.
उदयपुर और सीकर में सबसे ज्यादा मामले : आंकड़े बताते हैं कि स्कूलों में बेटियों से ज्यादती और छेड़छाड़ के सबसे ज्यादा मामले उदयपुर और सीकर में दर्ज हुए हैं. उदयपुर में साल 2018 में 6, 2019 में 29, 2020 में 23 और 2021 में 28 मुकदमें दर्ज हुए हैं. वहीं, सीकर में 2018 में 4, 2019 में 21, 2020 में 20 और 2021 में 23 मुकदमें दर्ज हुए हैं.
गंभीरता दिखाएं सरकार, दोषियों को सजा : सामाजिक कार्यकर्ता मनीषा सिंह का कहना है कि राजस्थान में आए दिन जिस तरह से मासूम बच्चियों के साथ स्कूलों में दुष्कर्म के मामले सामने आ रहे हैं, यह बहुत निंदनीय है. जोधपुर में निजी स्कूल में 7 साल की बालिका के साथ में दुष्कर्म का मामला सामने आया. वहीं, जोधपुर की ही जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय में एक मासूम बच्ची के साथ गैंगरेप किया गया. यह मामले बहुत ही शर्मनाक हैं.
जागरूक करने की जरूरत : कांग्रेस और भाजपा ऐसे मामलों पर राजनीती न करें. सरकार को चाहिए कि ऐसे मामलों में गंभीरता दिखाते हुए दोषियों को जल्द से जल्द कड़ी सजा दिलाई जाए. उन्होंने मांग की है कि स्कूलों में बच्चियों को जागरूक करने के लिए खास प्रयास करने की दरकार है. इसके लिए जागरूकता शिविर लगाए जाने चाहिए और इनमें गुड टच, बैड टच की जानकारी दी जानी चाहिए. शिक्षा के मंदिर में भी बेटियां सुरक्षित नहीं है, यह शर्म की बात है.
निर्देशों की नहीं हो रही समुचित पालना : सामाजिक कार्यकर्ता विजय गोयल का कहना है कि स्कूलों में अध्यापक ही बच्चियों के साथ छेड़छाड़ और दुष्कर्म की वारदातों को अंजाम दे रहे हैं. साल 2018 से 2021 तक की घटनाओं के आंकड़े भी चौंकाने वाले हैं. यह तो वो आंकड़े हैं जो थानों तक पहुंचे हैं, कई मामलों में तो बच्ची के परिजन थाने तक पहुंच ही नहीं पाते हैं. इसका बड़ा कारण यह भी है कि स्कूलों में महिला शिक्षक कम हैं.
कम नंबर देने की देते हैं धमकी : बच्चों की काउंसलिंग के लिए अलग से कोई व्यवस्था नहीं है. सरकार के जो दिशा निर्देश हैं, उनकी पालना भी गंभीरता से हो नहीं रही हैं. जिन स्कूलों में ज्यादा पुरुष स्टाफ हैं, वहां बच्चियों के साथ ऐसी घटनाएं ज्यादा बढ़ रही हैं. कई मामलों में शिक्षक नंबर कम देने का दबाव बनाकर भी ऐसी घटनाओं को अंजाम देते हैं. ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए बच्चों को भी जागरूक करने की दरकार है. उन्हें समझाना होगा कि क्या सही है और क्या गलत.
हाल ही में होने वाली घटनाएं :
1. हाल ही में जोधपुर के निजी स्कूल के चपरासी ने 7 साल की मासूम को अपनी हवस का शिकार बनाया. बालिका के कपड़ों पर खून के धब्बे देखकर परिजनों को सच्चाई का पता चला तो उन्होंने बालिका को स्कूल भेजना बंद कर दिया. पुलिस ने आरोपी चपरासी को गिरफ्तार कर लिया है. जांच में सामने आया कि वह 6 महीने से बालिका के साथ हैवानियत कर रहा था.
2. सुदूर डूंगरपुर जिले की एक स्कूल में सरकारी स्कूल की 6 छात्राओं के साथ स्कूल के हेड मास्टर ने दरिंदगी की थी, जिसने सबको हिलाकर रख दिया था. छात्राओं पर दबाव बनाकर, वह उन्हें अपने घर पर ले जाता और वहां उनके साथ गलत काम करता था. पुलिस ने आरोपी हेडमास्टर रमेशचंद कटारा को गिरफ्तार कर लिया.
3. राजधानी जयपुर में 17 मई को गलता गेट इलाके की एक स्कूल में 5 साल की मासूम से चौकीदार ने गलत काम किया. समर क्लास अटेंड करने आई बच्ची को नमकीन देने के बहाने से वह अपने कमरे में ले गया था. उसे भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था.
स्कूलों में बाल संरक्षण समिति का गठन जरूरी : सरकार और शिक्षा विभाग के साफ दिशा निर्देश हैं कि स्कूलों में बच्चों के साथ गलत व्यवहार पर अंकुश के लिए सभी निजी और सरकारी स्कूलों में बाल संरक्षण समिति का गठन किया जाए. इनमें प्रधानाध्यापक अध्यक्ष होता है, जबकि महिला शिक्षक या कर्मचारी, बच्चों के अभिभावक, विद्यार्थी, सुरक्षा अधिकारी और रसोइया इस समिति के सदस्य बनाए जाए. कई स्कूलों में इस समिति के नाम पर भी खानापूर्ति करने की बात सामने आई है.