जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने एकल पट्टा प्रकरण में आरोपियों के विरुद्ध लंबित मुकदमे को वापस लेने की अनुमति नहीं देने के एसीबी कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया (HC reserves decision in Single lease deed case) है. जस्टिस फरजंद अली की एकलपीठ ने यह आदेश राज्य सरकार, पूर्व आईएएस जीएस संधू, निष्काम दिवाकर और ओंकार मल सैनी की आपराधिक याचिकाओं पर दिए.
आरोपियों की ओर से अधिवक्ता एसएस होरा और अधिवक्ता पंकज गुप्ता सहित अन्य ने बताया कि एसीबी मान चुकी है कि मामले में विवादित भूमि सरकारी नहीं है और मूल पट्टे धारियों ने कोई शिकायत नहीं दी थी. इसके अलावा मामले में राज्य सरकार और जेडीए ने भी एसीबी में कोई शिकायत पेश नहीं की थी. ऐसे में यदि अधिकारियों को अनावश्यक अभियोजन का सामना करना पड़ेगा, तो इससे अफसरों का मनोबल गिरेगा. इसलिए राज्य सरकार ने एसीबी कोर्ट में मुकदमा वापस लेने के लिए अर्जी लगाई थी, लेकिन एसीबी कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया. इसके साथ ही निजी याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं है.
याचिकाकर्ताओं की ओर से अदालत को यह भी बताया गया कि हाईकोर्ट पूर्व में यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल के खिलाफ एसीबी कोर्ट में चल रही कार्रवाई को रद्द कर चुकी है. वहीं दूसरी ओर मामले के शिकायतकर्ता रामशरण सिंह के अधिवक्ता अनिल चौधरी ने कहा कि वे मुकदमे को आगे नहीं चलाना चाहते हैं और उन्हें मामले में कोई आपत्ति भी नहीं है. जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने मामले में अपने फैसले को सुरक्षित रख लिया है.
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मामले के अनुसार एसीबी ने वर्ष 2014 में परिवादी रामशरण सिंह की ओर से गणपति कंस्ट्रक्शन कंपनी को एकल पट्टा जारी करने में धांधली की शिकायत पर मामला दर्ज किया था. जिसमें कंपनी के प्रोपराइटर शैलेन्द्र गर्ग, यूडीएच के पूर्व सचिव जीएस संधू, जेडीए जोन-10 के तत्कालीन उपायुक्त ओंकार मल सैनी, निष्काम दिवाकर सहित गृह निर्माण सहकारी समिति के पदाधिकारियों अनिल अग्रवाल और विजय मेहता को आरोपी बनाया गया था.
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इसके बाद एसीबी ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आरोप पत्र पेश करते हुए धारीवाल, एनएल मीणा को क्लीन चिट देते हुए तत्कालीन जेडीसी ललित के पंवार व अतिरिक्त आयुक्त वीएम कपूर के पक्ष में एफआर पेश की थी. इसके बाद एसीबी ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ लंबित मुकदमे को वापस लेने की अनुमति मांगी थी, लेकिन एसीबी कोर्ट ने एसीबी के प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया था. इसके खिलाफ याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी.