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महाभारत के युद्ध में हनुमान ने इस तरह दिया अर्जुन का साथ

मंगलवार का दिन बजरंगबली का माना जाता है. ऐसी मान्यता और आस्था है कि इस दिन हनुमानजी की पूजा करने से भूत-प्रेत और बुराई निकट नहीं आती है. क्या आप जानते हैं कि हनुमान अर्जुन के रथ में विराजमान थे. रामायण में लिखित है कि अर्जुन के रथ पर हनुमान के विराजित होने के पीछे भी कारण है. आज इस कड़ी में हम आपको इसके पीछे का कारण भी बताएंगे.

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Published : Oct 1, 2019, 12:16 PM IST

Updated : Oct 1, 2019, 1:30 PM IST

जयपुर. पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार अर्जुन ने हनुमान से कहा कि आपके स्वामी श्रीराम तो बड़े ही श्रेष्ठ धनुषधारी थे तो फिर उन्होंने समुद्र पार जाने के लिए पत्थरों का सेतु बनवाए. अगर मैं वहां होता तो समुद्र पर बाणों का सेतु बना देता. जिस पर चढ़कर आपका पूरा वानर दल समुद्र पार कर लेता.

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मंगलवार के दिन बजरंगबली की करें पूजा

इस पर हनुमानजी ने कहा कि यह असंभव है. बाणों का सेतु वहां पर कोई काम नहीं कर पाता. हम वानरों का भार यह सेतू नहीं सह पाएगा. तब अर्जुन बोले सामने यह सरोवर है, मैं उस पर बाणों का एक सेतु बनाता हूं. आप इस पर चढ़कर सरोवर को आसानी से पार कर लेंगे.

पढ़ें- क्या आप जानते हैं शिव की बाघ रुपी वेशभूषा का रहस्य

अर्जुन ने रखी अग्नि में प्रवेश की शर्त

हनुमानजी अपनी बात पर अड़े रहे और कहा ये मुमकिन ही नहीं है. तब अर्जुन ने कहा, यदि आपके चलने से सेतु टूट जाएगा, तो मैं अग्नि में प्रवेश कर जाऊंगा. लेकिन यदि यह नहीं टूटता है तो आपको अग्नि में प्रवेश करना पड़ेगा. हनुमान ने यह शर्त स्वीकार कर ली और कहा कि मेरे चरण ही इसने झेल लिए तो मैं अपनी हार स्वीकार कर लूंगा.

अर्जुन के रथ पर विराजित रहे हनुमान

अर्जुन ने अपने प्रचंड बाणों से सेतु तैयार करना शुरू किया. जब तक सेतु बनकर तैयार नहीं हुआ. तब तक तो हनुमान अपने लघु रूप में ही रहे, लेकिन जैसे ही सेतु तैयार हुआ हनुमान ने विराट रूप धारण कर लिया. हनुमान राम का स्मरण करते हुए उस बाणों के सेतु पर चढ़ गए. पहला पैर रखते ही सेतु सारा का सारा डगमगाने लगा. दूसरा पैर रखते ही चरमराया और तीसरा पैर रखते ही सरोवर के जल में रक्तमय हो गया.

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अर्जुन ने बाणों के सेतू बनाने की रखी शर्त

पढे़ं- आखिर क्यों रहते हैं शनि किसी राशि में पूरे ढाई साल

भगवान कृष्ण ने धरा था कछुए का रूप

तभी श्रीहनुमानजी सेतु से नीचे उतर आए और अर्जुन से कहा कि अग्नि तैयार करो. अग्नि प्रज्‍वलित हुई और जैसे ही हनुमान अग्नि में कूदने चले, वैसे भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हो गए. श्रीकृष्ण ने कहा कि हे हनुमान आपका तीसरा पग सेतु पर पड़ा है. उस समय मैं कछुआ बनकर सेतु के नीचे लेटा हुआ था. आपकी शक्ति से आपके पैर रखते ही मेरे कछुआ रूप से रक्त निकल गया. यह सेतु टूट तो पहले ही पग में जाता यदि में कछुआ रूप में नहीं होता तो.

पढे़ं- आखिर क्यों भगवान विष्णु ने दिया मां लक्ष्मी को श्राप

यह सुनकर हनुमान को काफी कष्‍ट हुआ और उन्होंने क्षमा मांगी. हनुमान द्रवित हो उठे और कहने लगे मैं अपराधी निकला, मैंने आपकी पीठ पर पैर रख दिया. मेरा ये अपराध कैसे दूर होगा भगवन. तब कृष्ण ने कहा, ये सब मेरी इच्छा से हुआ है. आप मन खिन्न मत करो और मेरी इच्‍छा है कि तुम अर्जुन के रथ की ध्वजा पर स्थान ग्रहण करो. इसलिए द्वापर में श्रीहनुमान महाभारत के युद्ध में अर्जुन के रथ के ऊपर ध्वजा लिए बैठे रहते हैं.

जयपुर. पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार अर्जुन ने हनुमान से कहा कि आपके स्वामी श्रीराम तो बड़े ही श्रेष्ठ धनुषधारी थे तो फिर उन्होंने समुद्र पार जाने के लिए पत्थरों का सेतु बनवाए. अगर मैं वहां होता तो समुद्र पर बाणों का सेतु बना देता. जिस पर चढ़कर आपका पूरा वानर दल समुद्र पार कर लेता.

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मंगलवार के दिन बजरंगबली की करें पूजा

इस पर हनुमानजी ने कहा कि यह असंभव है. बाणों का सेतु वहां पर कोई काम नहीं कर पाता. हम वानरों का भार यह सेतू नहीं सह पाएगा. तब अर्जुन बोले सामने यह सरोवर है, मैं उस पर बाणों का एक सेतु बनाता हूं. आप इस पर चढ़कर सरोवर को आसानी से पार कर लेंगे.

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अर्जुन ने रखी अग्नि में प्रवेश की शर्त

हनुमानजी अपनी बात पर अड़े रहे और कहा ये मुमकिन ही नहीं है. तब अर्जुन ने कहा, यदि आपके चलने से सेतु टूट जाएगा, तो मैं अग्नि में प्रवेश कर जाऊंगा. लेकिन यदि यह नहीं टूटता है तो आपको अग्नि में प्रवेश करना पड़ेगा. हनुमान ने यह शर्त स्वीकार कर ली और कहा कि मेरे चरण ही इसने झेल लिए तो मैं अपनी हार स्वीकार कर लूंगा.

अर्जुन के रथ पर विराजित रहे हनुमान

अर्जुन ने अपने प्रचंड बाणों से सेतु तैयार करना शुरू किया. जब तक सेतु बनकर तैयार नहीं हुआ. तब तक तो हनुमान अपने लघु रूप में ही रहे, लेकिन जैसे ही सेतु तैयार हुआ हनुमान ने विराट रूप धारण कर लिया. हनुमान राम का स्मरण करते हुए उस बाणों के सेतु पर चढ़ गए. पहला पैर रखते ही सेतु सारा का सारा डगमगाने लगा. दूसरा पैर रखते ही चरमराया और तीसरा पैर रखते ही सरोवर के जल में रक्तमय हो गया.

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अर्जुन ने बाणों के सेतू बनाने की रखी शर्त

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भगवान कृष्ण ने धरा था कछुए का रूप

तभी श्रीहनुमानजी सेतु से नीचे उतर आए और अर्जुन से कहा कि अग्नि तैयार करो. अग्नि प्रज्‍वलित हुई और जैसे ही हनुमान अग्नि में कूदने चले, वैसे भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हो गए. श्रीकृष्ण ने कहा कि हे हनुमान आपका तीसरा पग सेतु पर पड़ा है. उस समय मैं कछुआ बनकर सेतु के नीचे लेटा हुआ था. आपकी शक्ति से आपके पैर रखते ही मेरे कछुआ रूप से रक्त निकल गया. यह सेतु टूट तो पहले ही पग में जाता यदि में कछुआ रूप में नहीं होता तो.

पढे़ं- आखिर क्यों भगवान विष्णु ने दिया मां लक्ष्मी को श्राप

यह सुनकर हनुमान को काफी कष्‍ट हुआ और उन्होंने क्षमा मांगी. हनुमान द्रवित हो उठे और कहने लगे मैं अपराधी निकला, मैंने आपकी पीठ पर पैर रख दिया. मेरा ये अपराध कैसे दूर होगा भगवन. तब कृष्ण ने कहा, ये सब मेरी इच्छा से हुआ है. आप मन खिन्न मत करो और मेरी इच्‍छा है कि तुम अर्जुन के रथ की ध्वजा पर स्थान ग्रहण करो. इसलिए द्वापर में श्रीहनुमान महाभारत के युद्ध में अर्जुन के रथ के ऊपर ध्वजा लिए बैठे रहते हैं.

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Last Updated : Oct 1, 2019, 1:30 PM IST
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