जयपुर. ग्रेटर नगर निगम में हाईकोर्ट के आदेशों से महापौर की सीट तीसरी बार संभालने वाली सौम्या गुर्जर की नेम प्लेट फिर से लग चुकी है. मेयर बर्खास्तगी के आदेशों के तुरंत बाद इस नेम प्लेट को चाकू से कुरेद कर हटाए जाने पर राजनीति गर्मा गई थी (Greater Nagar Nigam Mayor Row). हालांकि अब एक बार फिर इस नेम प्लेट और महापौर की कुर्सी पर फैसले की तारीख आ गई है.
अदालत में मेयर विवाद!: हाईकोर्ट के आदेशों के बाद सौम्या गुर्जर को भले ही थोड़े दिन के लिए राहत मिल गई हो, लेकिन सरकार उन्हें बर्खास्त करने के पूरे मूड में है. चुनावी प्रक्रिया बीच में रूकने के बाद सरकार की ओर से उन्हें बर्खास्तगी को लेकर नए सिरे से नोटिस जारी किया गया. पहले 18 नवंबर तक जवाब प्रेषित करना था, लेकिन महापौर की अपील पर इस समय को 25 नवंबर तक बढ़ाया गया. इस दिन जवाब से संतुष्ट न होने पर सरकार उन्हें कभी भी बर्खास्त कर सकती है. और ये भी तय है कि सरकार के एक्शन के बाद सौम्या गुर्जर फिर से कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगीं. ऐसे में अब जयपुर ग्रेटर मेयर का विवाद दोबारा अदालत में जाएगा.
ऑर्डर कर सकती हैं चैलेंज: ईटीवी भारत से खास बातचीत में वरिष्ठ अधिवक्ता अश्वनी बोहरा के बताया कि राज्य सरकार अगर सौम्या के जवाब से संतुष्ट नहीं होती है, तो सरकार सौम्या को दोबारा मेयर पद और वार्ड 87 की सदस्यता से बर्खास्त कर सकती है. ऐसे में सौम्या के पास दोबारा हाईकोर्ट जाने का विकल्प रहेगा. उन्होंने बताया कि सरकार के किसी भी अंतिम फैसले को ज्यूडिशरी रिव्यू करने का अधिकार उनके पास होगा. वो न्यायिक जांच और बर्खास्तगी के ऑर्डर को हाई कोर्ट में चैलेंज कर सकेंगी.
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सरकार के पास विकल्प: उन्होंने स्पष्ट किया कि जब बर्खास्तगी का आदेश अपास्त (apast) हो चुका है, तो अब तक अपनाई गई महापौर की चुनाव प्रक्रिया खुद-ब-खुद खत्म हो गई. अगर अब बर्खास्तगी की जाती है, तो राजस्थान सरकार को नए सिरे से महापौर की चुनाव प्रक्रिया अपनानी होगी. और जब नए सिरे से महापौर चुनाव की प्रक्रिया होगी तो राजनीतिक दल दोबारा अपने-अपने प्रत्याशियों का चयन करेंगे फिर पार्षदों की बाड़े बंदी की नौबत बनेगी और नॉमिनेशन के बाद मतदान होगा.
सौम्या के पास विकल्प: वहीं पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता अभिनव शर्मा ने बताया कि महापौर का चुनाव विधिक प्रक्रिया और उलझनों में फंसा हुआ है. अब डीएलबी के नोटिस पर सौम्या गुर्जर जो तथ्य राज्य सरकार के समक्ष रखेंगी, उसके बाद राज्य सरकार फैसला लेने के लिए स्वतंत्र है. यदि सरकार की ओर से पूर्व में जो फैसला लिया गया, वही फैसला दोबारा लिया जाता है और सौम्या को अयोग्य करार दिया जाता है, ऐसे में सौम्या न्यायालय में गुहार लगा सकती हैं. वहीं राज्य सरकार दोबारा चुनाव कराना चाहती है तो नए सिरे से नोटिफिकेशन जारी करना होगा. नए सिरे से समय देने के बाद चुनाव की तारीख घोषित करनी होगी. इस बीच सौम्या के पास समुचित समय होगा, जिसमें वो न्यायालय की शरण में जाकर के अपने विरुद्ध हुए फैसले पर न्यायालय का आदेश लाने के लिए स्वतंत्र होंगी.