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Historical Gates of Parkota: परकोटा के सुरक्षा कवच हैं यहां के गेट, सूर्य के सात अश्वों के परिचायक के तौर पर हुआ था निर्माण

राजस्थान की राजधानी जयपुर के परकोटा की सुरक्षा के लिए बने सात गेटों का काफी महत्व है. शहर के सुरक्षा कवच माने जाने वाले इन गेटों का निर्माण यहां के इतिहास से जुड़ी (Seven gates of Jaipur Parkota) हुई है.

Historical Gates of Parkota
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Published : Mar 10, 2023, 7:52 PM IST

इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत

जयपुर. राजधानी जयपुर के परकोटे में प्रवेश के लिए बनाए गए दरवाजे रियासत काल से लेकर आज तक मजबूती से शहर का सुरक्षा कवच बने हुए हैं. इन गेटों का निर्माण भगवान सूर्य के सात अश्वों के परिचायक के तौर पर किया गया था. जिसमें सबसे पहले गंगापोल, पूर्व में सूरजपोल और पश्चिम में चांदपोल के बीच में चार अन्य गेटों का निर्माण किया गया. हालांकि समय के साथ कई नए दरवाजों का भी निर्माण किया गया और इन गेटों का नाम भी बदल गया. खास बात यह है कि परकोटे के सभी दरवाजों पर भगवान गणेश की प्रतिमा विराजमान है.

राजधानी के परकोटे को यूनेस्को की ओर से वर्ल्ड हेरिटेज साइट का दर्जा दिया गया. इस तमगे के पीछे रियासत काल के बने दरवाजों का भी अहम योगदान रहा है. इस संबंध में इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि जयपुर के महाराजा सूर्यवंशी रहे हैं. इस नाते उन्होंने सूर्य के सात अश्वों के रूप में दरवाजों का निर्माण कराया था. सवाई जयसिंह का मानना था कि उन्हें ऐसी विरासत बनानी है, जिसका नक्शा पहले बने और निर्माण कार्य बाद में हो. इस पर विद्याधर भट्टाचार्य ने नक्शा बनाया और उसी आधार पर शहर बसाया गया. रूस के क्रेमलिन शहर की तर्ज पर इसे बनाया गया.

उगते सूर्य की तरफ सूरजपोल, अस्त होते सूर्य की तरह चांदपोल - पूर्व से पश्चिम दिशा के क्रम में उगते सूर्य की तरफ सूरजपोल और अस्तांचल सूर्य की तरफ चांदपोल गेट का निर्माण कराया गया. इसके बीच में करीब 3 किलोमीटर के क्षेत्र में तीन चौपड़ हैं और उनसे लगते हुए बाजारों के गेट अजमेर की तरफ गुजरने वाली रोड का किशनपोल, अजमेरी गेट कहलाता है. शिवपोल जिसे सांगानेरी गेट के नाम से जानते हैं, और रामपोल जिसे वर्तमान में घाटगेट दरवाजे के नाम से जाना जाता है. इसके अलावा जयपुर का सबसे पहला दरवाजा जहां जयपुर की नींव रखी गई, वह दरवाजा गंगापोल गेट कहलाया. उत्तर दिशा में होने के कारण एक गेट ध्रुवपोल कहलाया, जो वर्तमान में जोरावर सिंह गेट के नाम से जाना जाता है. इसके बाद सवाई मानसिंह के समय मानपोल बनाया गया, जो सबसे नया होने के चलते वर्तमान में न्यूगेट के नाम से जाना जाता है.

Historical Gates of Parkota
परकोटा के सुरक्षा कवच हैं यहां के गेट

इसे भी पढ़ें - Special : विलुप्त होने की कगार पर यह प्रसिद्ध कला, 20 साल से संवारने में जुटे हैं रोशन लाल

भीतरी शहर में भी हैं कई गेट - इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि जयपुर की बसावट के दौरान ये ध्यान रखा गया कि आम लोगों के लिए शहर अलग हो और राजा के लिए अपनी छोटी सिटी अलग हो. यही वजह है कि शहर के आंतरिक हिस्से में त्रिपोलिया गेट, कांच का दरवाजा, चौगान गेट, सम्राट गेट सहित 108 पोल हैं. जिसमें से 56 पोल अकेले सिटी पैलेस में हैं. गेट के अंदर से जो घुमावदार मोड़ निकलता था, उसे पोल कहा गया. यही वजह है कि जयपुर पोलों का शहर भी कहलाया. जिनका कई राजाओं ने अपने-अपने समय में निर्माण कार्य कराया, लेकिन सवाई जय सिंह ने मुख्य रूप से 7 दरवाजे बनवाए.

चार दरवाजा क्षेत्र में बनना था सिविल लाइन्स एरिया - जयपुर की सबसे पहले बसावट चार दरवाजा क्षेत्र में ही हुई. जयपुर के सामंतों की हवेलियां उसी क्षेत्र में बनाई गई. सवाई प्रताप सिंह के समय वहां चौपड़ के रूप में विकास कार्य शुरू हुआ और यहां 4 दरवाजों का निर्माण किया गया बाद में वहां सिविल लाइंस एरिया बनाने की प्लानिंग की गई, लेकिन ये प्लान फ्लॉप हो गया.

पढ़ेंः Delicious Rajasthani Mithai: जयपुर शहर से भी पुराना है इस मिठाई का इतिहास ,आमेर किले पर विराजमान शिला माता को भी लगता है भोग

ध्रुवपोल के जोरावर सिंह गेट बनने की अलग कहानी - इतिहासकार के मुताबिक उत्तर दिशा में होने के चलते शुरुआत में इसका नाम ध्रुवपोल रखा गया था. लेकिन जब सवाई जयसिंह ने अश्वमेध यज्ञ किया तो सवाई जयसिंह के घोड़े को कुम्भाणी राजपूत ने पकड़ा था. उस वक्त जिस युवक ने सिर कटाया था, उसका नाम जोरावर सिंह था. सवाई जयसिंह जोरावर सिंह की वीरता से प्रभावित हुए, यही वजह रही कि उन्होंने ध्रुवपोल का नाम बदलकर जोरावर सिंह गेट रख दिया.

सभी दरवाजों पर भगवान गणेश की प्रतिमा - सवाई जयसिंह का मानना था कि उनके शहर में जो भी कहीं से भी प्रवेश करें, उसके लिए जयपुर शुभ रहे. इसलिए हर गेट पर भगवान गणेश की प्रतिमा को विराजमान कराया गया. उनके दर्शन के साथ ही व्यक्ति परकोटे में प्रवेश करता था. यही नहीं सिरह ड्योढ़ी गेट पर तो गेट के दोनों तरफ गणेश जी विराजमान हैं. ये सभी प्राचीन मूर्तियां हैं, जो जयपुर की बसावट के दौरान ही यहां विधि विधान के साथ प्राण प्रतिष्ठित की गई थी.

बहरहाल, परकोटे के ये दरवाजे जयपुर की शान और पहचान हैं. इन्हीं दरवाजों के हवाले लोग अपनी लोकेशन और एड्रेस शेयर करते हैं. परकोटे के इन दरवाजों का समय-समय पर मेंटेनेंस होता रहा है. हालांकि दरकार इन दरवाजों पर लगे हुए लकड़ी के गेटों के जीर्णोद्धार की भी है.

इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत

जयपुर. राजधानी जयपुर के परकोटे में प्रवेश के लिए बनाए गए दरवाजे रियासत काल से लेकर आज तक मजबूती से शहर का सुरक्षा कवच बने हुए हैं. इन गेटों का निर्माण भगवान सूर्य के सात अश्वों के परिचायक के तौर पर किया गया था. जिसमें सबसे पहले गंगापोल, पूर्व में सूरजपोल और पश्चिम में चांदपोल के बीच में चार अन्य गेटों का निर्माण किया गया. हालांकि समय के साथ कई नए दरवाजों का भी निर्माण किया गया और इन गेटों का नाम भी बदल गया. खास बात यह है कि परकोटे के सभी दरवाजों पर भगवान गणेश की प्रतिमा विराजमान है.

राजधानी के परकोटे को यूनेस्को की ओर से वर्ल्ड हेरिटेज साइट का दर्जा दिया गया. इस तमगे के पीछे रियासत काल के बने दरवाजों का भी अहम योगदान रहा है. इस संबंध में इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि जयपुर के महाराजा सूर्यवंशी रहे हैं. इस नाते उन्होंने सूर्य के सात अश्वों के रूप में दरवाजों का निर्माण कराया था. सवाई जयसिंह का मानना था कि उन्हें ऐसी विरासत बनानी है, जिसका नक्शा पहले बने और निर्माण कार्य बाद में हो. इस पर विद्याधर भट्टाचार्य ने नक्शा बनाया और उसी आधार पर शहर बसाया गया. रूस के क्रेमलिन शहर की तर्ज पर इसे बनाया गया.

उगते सूर्य की तरफ सूरजपोल, अस्त होते सूर्य की तरह चांदपोल - पूर्व से पश्चिम दिशा के क्रम में उगते सूर्य की तरफ सूरजपोल और अस्तांचल सूर्य की तरफ चांदपोल गेट का निर्माण कराया गया. इसके बीच में करीब 3 किलोमीटर के क्षेत्र में तीन चौपड़ हैं और उनसे लगते हुए बाजारों के गेट अजमेर की तरफ गुजरने वाली रोड का किशनपोल, अजमेरी गेट कहलाता है. शिवपोल जिसे सांगानेरी गेट के नाम से जानते हैं, और रामपोल जिसे वर्तमान में घाटगेट दरवाजे के नाम से जाना जाता है. इसके अलावा जयपुर का सबसे पहला दरवाजा जहां जयपुर की नींव रखी गई, वह दरवाजा गंगापोल गेट कहलाया. उत्तर दिशा में होने के कारण एक गेट ध्रुवपोल कहलाया, जो वर्तमान में जोरावर सिंह गेट के नाम से जाना जाता है. इसके बाद सवाई मानसिंह के समय मानपोल बनाया गया, जो सबसे नया होने के चलते वर्तमान में न्यूगेट के नाम से जाना जाता है.

Historical Gates of Parkota
परकोटा के सुरक्षा कवच हैं यहां के गेट

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भीतरी शहर में भी हैं कई गेट - इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि जयपुर की बसावट के दौरान ये ध्यान रखा गया कि आम लोगों के लिए शहर अलग हो और राजा के लिए अपनी छोटी सिटी अलग हो. यही वजह है कि शहर के आंतरिक हिस्से में त्रिपोलिया गेट, कांच का दरवाजा, चौगान गेट, सम्राट गेट सहित 108 पोल हैं. जिसमें से 56 पोल अकेले सिटी पैलेस में हैं. गेट के अंदर से जो घुमावदार मोड़ निकलता था, उसे पोल कहा गया. यही वजह है कि जयपुर पोलों का शहर भी कहलाया. जिनका कई राजाओं ने अपने-अपने समय में निर्माण कार्य कराया, लेकिन सवाई जय सिंह ने मुख्य रूप से 7 दरवाजे बनवाए.

चार दरवाजा क्षेत्र में बनना था सिविल लाइन्स एरिया - जयपुर की सबसे पहले बसावट चार दरवाजा क्षेत्र में ही हुई. जयपुर के सामंतों की हवेलियां उसी क्षेत्र में बनाई गई. सवाई प्रताप सिंह के समय वहां चौपड़ के रूप में विकास कार्य शुरू हुआ और यहां 4 दरवाजों का निर्माण किया गया बाद में वहां सिविल लाइंस एरिया बनाने की प्लानिंग की गई, लेकिन ये प्लान फ्लॉप हो गया.

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ध्रुवपोल के जोरावर सिंह गेट बनने की अलग कहानी - इतिहासकार के मुताबिक उत्तर दिशा में होने के चलते शुरुआत में इसका नाम ध्रुवपोल रखा गया था. लेकिन जब सवाई जयसिंह ने अश्वमेध यज्ञ किया तो सवाई जयसिंह के घोड़े को कुम्भाणी राजपूत ने पकड़ा था. उस वक्त जिस युवक ने सिर कटाया था, उसका नाम जोरावर सिंह था. सवाई जयसिंह जोरावर सिंह की वीरता से प्रभावित हुए, यही वजह रही कि उन्होंने ध्रुवपोल का नाम बदलकर जोरावर सिंह गेट रख दिया.

सभी दरवाजों पर भगवान गणेश की प्रतिमा - सवाई जयसिंह का मानना था कि उनके शहर में जो भी कहीं से भी प्रवेश करें, उसके लिए जयपुर शुभ रहे. इसलिए हर गेट पर भगवान गणेश की प्रतिमा को विराजमान कराया गया. उनके दर्शन के साथ ही व्यक्ति परकोटे में प्रवेश करता था. यही नहीं सिरह ड्योढ़ी गेट पर तो गेट के दोनों तरफ गणेश जी विराजमान हैं. ये सभी प्राचीन मूर्तियां हैं, जो जयपुर की बसावट के दौरान ही यहां विधि विधान के साथ प्राण प्रतिष्ठित की गई थी.

बहरहाल, परकोटे के ये दरवाजे जयपुर की शान और पहचान हैं. इन्हीं दरवाजों के हवाले लोग अपनी लोकेशन और एड्रेस शेयर करते हैं. परकोटे के इन दरवाजों का समय-समय पर मेंटेनेंस होता रहा है. हालांकि दरकार इन दरवाजों पर लगे हुए लकड़ी के गेटों के जीर्णोद्धार की भी है.

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