जयपुर. IAS अफसरों की ACR भरने को लेकर मौजूदा गहलोत सरकार में (Rajasthan ACR controversy) संग्राम से हालात बने हुए हैं. मंत्री अफसरशाही पर कमांड रखने के लिए ACR की पावर की मांग कर रहे हैं. जबकि एक वक्त था जब देश के पहले गृहमंत्री लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने (Iron Man Sardar Vallabhbhai Patel) कहा था कि अफसरशाही भारत की सरकारी मशीनरी का 'स्टील फ्रेम' हैं. इनकी अथॉरिटी को कम नहीं किया जा सकता, इनके विचार हमारे सामने आने चाहिए.
आज आजादी के 75 साल बाद हिन्दुस्तान की नौकरशाही पर तेजी से सियासी प्रभाव बढ़ रहा है. वहीं, राजस्थान में गहलोत सरकार के मंत्री इसको लेकर आमने-सामने हैं, क्योंकि अब सीएम के एक करीबी मंत्री को IAS अफसरों की ACR भरने की पावर चाहिए. पिछले दिनों सूबे के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास और जलदाय मंत्री महेश जोशी के बीच ब्यूरोक्रेसी पर लगाम को लेकर खूब बयानबाजी भी हुई थी.
क्या है ACR?: IAS अफसरों की ACR भरने को लेकर पिछले दिनों गहलोत सरकार के मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने सवाल उठाया था. उन्होंने कहा था कि मंत्री को IAS की ACR भरने की पावर मिलनी चाहिए. जिस ACR को लेकर बवाल मच रहा है. उसको लेकर जब पूर्व आईएएस अधिकारी महेंद्र सिंह से ईटीवी भारत ने बात की तो उन्होंने बताया कि ACR का मतलब 'एनुअल कॉन्फिडेंशियल रिपोर्ट' होता है. यह साल में एक बार भरी जाती है. सालभर में अधिकारी ने अपने विभाग में क्या काम किए, उसका व्यवहार कैसे रहा है, वो उस काम में कितने खरे उतरे जैसे पक्षों का आकलन होता है. इस पर सीनियर अधिकारी और विभाग के मंत्री अपनी टिप्पणी करते हैं. किसी अधिकारी की शिकायत मिलती है तो उसका भी रिकॉर्ड एसीआर रिपोर्ट में भरा जाता है. इसी रिपोर्ट के आधार पर अधिकारी का प्रमोशन, आईएएस है तो केंद्र में प्रतिनियुक्ति मिलती है. यही व्यवस्था पूरे देश में है.
ACR खराब मतलब तरक्की पर असर: पूर्व आईएएस अधिकारी ने बताया कि किसी भी अफसर की एसीआर उसके प्रमोशन के लिए महत्वपूर्ण होती है, जब भी अफसर का प्रमोशन होता है तो उस वक्त उसकी एसीआर को देखा जाता है. उस वक्त देखा जाता है कि किस अधिकारी का काम करने का तरीका और उसका व्यवहार कैसा रहा है. जिसका उल्लेख एसीआर रिपोर्ट में रहता है. अगर किसी अधिकारी के एसीआर में कोई कमी है तो उसकी प्रतिनियुक्ति, प्रमोशन या फिर अप्रेजल में दिक्कतें पेश आती हैं. उन्होंने आगे बताया कि जिन अधिकारियों की एसीआर खराब होती है, उन्हें नॉन परफॉर्मर माना जाता है. ऐसे अधिकारियों को आमतौर पर डायरेक्ट जनता से जुड़े विभागों में या फिर फील्ड पोस्टिंग नहीं दी जाती है. अगर कोई भ्रष्टाचार जैसे मामलों में दोषी पाया जाए तो एसीआर रिपोर्ट के आधार पर नौकरी से सस्पेंड तक कर दिया जाता है.
कैसे होती है ACR की प्रक्रिया: महेंद्र सिंह ने बताया कि IAS अधिकारियों की ACR (एनुअल कॉन्फिडेंशियल रिपोर्ट) भरने के लिए नियम बने हुए हैं. लेवल के हिसाब से ACR भरी जाती है. सबसे पहले सीनियर अधिकारी ACR भरते हैं और फिर उसके बाद ACR को चीफ सेकेट्री के पास भेजा जाता है, जहां से उसे मुख्यमंत्री को भेज दिया जाता है. जिस पर मुख्यमंत्री हस्ताक्षर करते हैं. साथ ही उसकी एक प्रतिलिपि भारत सरकार को भेजी जाती है. पूर्व IAS ने बताया कि मौजूदा वक्त में नियम नहीं है कि कोई मंत्री अपने विभाग के IAS अफसर की ACR भरे.
खाचरियावास ने आईएएस अफसर की एसीआर भरने की जो पावर मांगी है, उस पर चर्चा शुरू हो गई है. इस मसले पर पूर्व आईएएस महेंद्र सिंह का कहना है कि कोई भी मंत्री इस तरह एसीआर भरने की पावर इसलिए चाहता है कि उसकी अपने अधिकारी पर कमांड रहे. एसीआर भरने का अधिकार मंत्री के पास होगा तो अधिकारी खौफ खाएंगे और मंत्री के बताए जनता के सारे काम झट से होने लगेंगे. उन्होंने कहा कि ऑल इंडिया सर्विसेज रूल पूरे देश में लागू है. सभी स्टेट के मुख्यमंत्री ही फाइनल अथॉरिटी होते हैं. यदि मंत्री को फाइनल अथॉरिटी बनाना होगा तो इसके लिए भारत सरकार को सर्विस रूल में बदलाव करना होगा. उन्होंने कहा कि इस तरह से अगर नियमों में संशोधन करके अगर पावर मंत्री को दी जाती है तो इसका असर बहुत गलत पड़ेगा, क्योंकि सर्विस में जो नियम प्रक्रिया उसके बारे में अधिकारी को अनुभव होता है. वो मंत्री को नहीं होता है. अपने अनुभव से अधिकारी काम करते हैं.
CM कब भरते हैं ACR: मंत्री विभाग का HOD (हेड ऑफ दि डिपार्टमेंट) होता है. ऐसे में अधिकारियों की ACR या APR (एनुअल परफॉर्मेंस रिपोर्ट) भरने का अधिकार उनके पास होता है. लेकिन ऐसे उदाहरण नाम मात्र के हैं, जहां कोई अधिकारी एक ही विभाग संभाल रहे हो. अब सवाल ये उठता है कि जब एक अधिकारी के पास दो-तीन विभाग होते हैं तो फिर ACR कौन भरेगा. खैर, ऐसी स्थिति में मुख्यमंत्री ही संबंधित अधिकारी की ACR भरते हैं. अगर किसी मंत्री को अधिकारी की कार्यशैली से कोई दिक्कत रही है तो वो मुख्यमंत्री को इसको लेकर शिकायत कर सकते हैं.
शेखावत ने बढ़ाए थे सीएम के अधिकार: साल 1990 से 1998 के बीच राजस्थान में भैरोंसिंह शेखावत मुख्यमंत्री थे. उससे पहले आम तौर पर देश के अधिकांश राज्यों में आईएएस अफसरों की एसीआर विभागीय मंत्री ही भरते थे, लेकिन शेखावत ने इस अधिकार का पूरी तरह से केंद्रीकरण कर दिया. जिसके बाद मुख्यमंत्री इसे भरने लगे. उन्होंने ऐसा इसलिए किया था, क्योंकि उस दौर में मिली-जुली पार्टियों की सरकारें चल रही थीं. मुख्यमंत्री को सभी विभागों में ज्यादा दखल रखने, सरकार में स्थिरता बनाए रखने के लिए मंत्रियों के काम को कंट्रोल में रखने, अफसरों पर लगाम कसने, शक्ति संतुलन बनाए रखने की ज्यादा जरूरत थी. ऐसे में उन्होंने मुख्यमंत्री के पद को और भी शक्तिशाली बनाने का काम किया था. लेकिन बाद में यह परिपाटी मध्य प्रदेश और फिर देश के अधिकांश राज्यों में चल पड़ी, जो अब तक जारी है.