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धनतेरस से पंच दिवसीय दीपावली महापर्व का आगाज, जमकर होगा उजियारा - दिवाली

दीपों और खुशियों का सबसे बड़ा महापर्व दिवाली सिर्फ एक दिन नहीं बल्कि पांच दिनों का त्यौहार होता है. धनतेरस से शुरू होकर भाई दूज पर संपन्न होने वाला यह पंच दिवसीय पर्व अपने साथ ढेर सारी सुख-समृद्धि लेकर आता है. इन पांच दिनों में अलग-अलग देवी देवताओं की पूजा की जाती है.

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Published : Oct 25, 2019, 10:43 AM IST

जयपुर. आज धनतेरस के दिन से पंच दिवसीय दीपोत्सव का शुभारंभ हो चुका है. यह अंधकार पर रोशनी के विजय का पर्व है. दीपोत्सव का यह पर्व पांच दिनों का होता है. इसका प्रारंभ धनतेरस से होता है और समापन भाई दूज से होता है. हिन्दू पंचांग के अनुसार हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को दीपावली मनाई जाती है.

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धनतेरस से पंच दिवसीय दीपावली महापर्व का आगाज

पढे़ं- इस बार धनतेरस पर शुभ संयोग, सवार्थसिद्धि योग इसे बना रहा और भी खास, जानें शुभ मुहूर्त

पहला दिन धनतेरस- उत्सव के पहले दिन, घरों और व्यावसायिक परिसर की साफ-सफाई कर उन्हें भव्य रूप से सजाया जाता हैं. धन और समृद्धि की देवी के स्वागत के लिए रंगोली की डिजाइन के सुंदर पारंपरिक रूपांकनों के साथ रंगीन प्रवेश द्वार बनाए जाते है. उनकी लम्बी प्रतीक्षा का आगमन दर्शाने के लिए घर में चावल के आटे और कुमकुम से छोटे पैरों के निशान बनाए जाते है. पूरी रात दीपक जलाए जाते है. इस दिन को काफी शुभ माना जाता है. इसलिए, महिलाएं कुछ सोने या चांदी या कुछ नए बर्तन खरीदती है और भारत के कुछ भागों में, पशु की भी पूजा की जाती हैं. इस दिन को भगवान धन्वन्तरि का जन्मदिन भी माना जाता है. इस दिन पर, मृत्यु के देवता- यम का पूजन करने के लिए सारी रात दीपक जलाए जाते हैं इसलिए यह 'यमदीपदान' के रूप में भी जाना जाता है. यह असमय मृत्यु के डर को दूर करने के लिए माना जाता है.

पढ़ें- स्पेशल स्टोरी: गायों को रिझाते हैं ग्वाल-बाल...अन्नकूट भी लूटवाते हैं भगवान श्रीनाथ

रूप चतुर्दशी- दूसरा दिन रूप चतुर्दशी या नरक चतुर्दशी का होता है. इस दिन सुबह जल्दी जागना और सूर्योदय से पहले स्नान करने की एक परंपरा है. प्राचीन मान्यताओं के अनुसार राजा नरकासुर- प्रागज्योतीसपुर के शासक- इंद्र देव को हराने के बाद देवताओं की मां अदिती के मनमोहक झुमके छीन लेते हैं और अपने अन्तपुर में देवताओं और संतों की सोलह हजार बेटियों को कैद कर लेते हैं. नरकचतुर्दशी के अगले दिन, भगवान कृष्ण ने दानव को मार डाला और कैद हुई कन्याओं को मुक्त कराकर, अदिति के कीमती झुमके बरामद किए थे. महिलाओं ने अपने शरीर को सुगंधित तेल से मालिश किया और अपने शरीर से गंदगी को धोने के लिए एक अच्छा स्नान किया. इसलिए, सुबह जल्दी स्नान की यह परंपरा बुराई पर दिव्यता की विजय का प्रतीक है.

पढ़ें- उदयपुर: मिट्टी के दीपक बने सबकी पसंद, महंगाई की मार, फिर भी खरीदार बेशुमार

लक्ष्मी पूजा - तीसरा दिन जो कि इन सबमें सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है- वह है लक्ष्मी पूजा का. यह वह दिन है जब सूरज अपने दूसरे चरण में प्रवेश करता है. अंधियारी रात होने के बावजूद भी इस दिन को बहुत ही शुभ माना जाता है. छोटे-छोटे दीपक हर शहर-गांव में प्रज्वलित होने से रात का अभेद्य अंधकार धीरे-धीरे गायब हो जाता है. यह माना जाता है कि लक्ष्मीजी दीपावली की रात को पृथ्वी पर आती हैं और समृद्धि के लिए आशीर्वाद की वर्षा करती है. पंडितों के अनुसार एक कहानी है कि एक छोटा सा लड़का था. जिसका नाम नचिकेत था. वह मानता था कि मृत्यु के देवता यम, अमावस्या की अंधेरी रात के जैसे रूप में काले हैं. लेकिन जब वह व्यक्ति के रूप में यम से मिला तो वह यम का शांत चेहरा और सम्मानजनक कद देखकर हैरान रह गया. यम ने नचिकेता को समझाया केवल मौत के अंधेरे के माध्यम से गुजरने के बाद व्यक्ति उच्चतम ज्ञान की रोशनी देखता है और उसकी आत्मा, परमात्मा के साथ एक होने के लिए अपने शरीर के बंधन से मुक्त होती हैं. तब नचिकेता को सांसारिक जीवन के महत्व और मृत्यु के महत्व का अहसास हुआ. तब उसने अपने सभी संदेह को छोड़कर, फिर दिवाली के समारोह में हिस्सा लिया.

पढ़ें- अलवर: दिवाली पर बाजारों में बिक रहे मिट्टी के ऊंट और शेर

गोवर्धन पूजा - इस उत्सव का चौथा दिन वर्ष प्रतिपदा के रूप में जाना जाता है और राजा विक्रम की ताजपोशी को चिह्नित करता है. यह वो दिन भी है जब भगवान कृष्ण ने भगवान इंद्र की मूसलाधार बारिश के क्रोध से गोकुल के लोगों को बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत उठाया था. इसे गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है. साथ ही गौ माता को भी पूजा जाता है.

भाई दूज

इस पंच दिवसीय महोत्सव का समापन भाईदूज के साथ होता है. दीपोत्सव का आखिरी दिन भाईदूज के रूप में मनाया जाता है. यह दिन भाइयों और बहनों के बीच प्रेम का प्रतीक दर्शाता है. भाई अपनी बहनों को उपहार भेंट करते हैं.

जयपुर. आज धनतेरस के दिन से पंच दिवसीय दीपोत्सव का शुभारंभ हो चुका है. यह अंधकार पर रोशनी के विजय का पर्व है. दीपोत्सव का यह पर्व पांच दिनों का होता है. इसका प्रारंभ धनतेरस से होता है और समापन भाई दूज से होता है. हिन्दू पंचांग के अनुसार हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को दीपावली मनाई जाती है.

Five day Deepawali Mahaparva debut in jaipur, जयपुर लेटेस्ट न्यूज, दिवली के पांच दिन, दिवाली का आरंभ, jaipur news, diwali special news, importance of diwali
धनतेरस से पंच दिवसीय दीपावली महापर्व का आगाज

पढे़ं- इस बार धनतेरस पर शुभ संयोग, सवार्थसिद्धि योग इसे बना रहा और भी खास, जानें शुभ मुहूर्त

पहला दिन धनतेरस- उत्सव के पहले दिन, घरों और व्यावसायिक परिसर की साफ-सफाई कर उन्हें भव्य रूप से सजाया जाता हैं. धन और समृद्धि की देवी के स्वागत के लिए रंगोली की डिजाइन के सुंदर पारंपरिक रूपांकनों के साथ रंगीन प्रवेश द्वार बनाए जाते है. उनकी लम्बी प्रतीक्षा का आगमन दर्शाने के लिए घर में चावल के आटे और कुमकुम से छोटे पैरों के निशान बनाए जाते है. पूरी रात दीपक जलाए जाते है. इस दिन को काफी शुभ माना जाता है. इसलिए, महिलाएं कुछ सोने या चांदी या कुछ नए बर्तन खरीदती है और भारत के कुछ भागों में, पशु की भी पूजा की जाती हैं. इस दिन को भगवान धन्वन्तरि का जन्मदिन भी माना जाता है. इस दिन पर, मृत्यु के देवता- यम का पूजन करने के लिए सारी रात दीपक जलाए जाते हैं इसलिए यह 'यमदीपदान' के रूप में भी जाना जाता है. यह असमय मृत्यु के डर को दूर करने के लिए माना जाता है.

पढ़ें- स्पेशल स्टोरी: गायों को रिझाते हैं ग्वाल-बाल...अन्नकूट भी लूटवाते हैं भगवान श्रीनाथ

रूप चतुर्दशी- दूसरा दिन रूप चतुर्दशी या नरक चतुर्दशी का होता है. इस दिन सुबह जल्दी जागना और सूर्योदय से पहले स्नान करने की एक परंपरा है. प्राचीन मान्यताओं के अनुसार राजा नरकासुर- प्रागज्योतीसपुर के शासक- इंद्र देव को हराने के बाद देवताओं की मां अदिती के मनमोहक झुमके छीन लेते हैं और अपने अन्तपुर में देवताओं और संतों की सोलह हजार बेटियों को कैद कर लेते हैं. नरकचतुर्दशी के अगले दिन, भगवान कृष्ण ने दानव को मार डाला और कैद हुई कन्याओं को मुक्त कराकर, अदिति के कीमती झुमके बरामद किए थे. महिलाओं ने अपने शरीर को सुगंधित तेल से मालिश किया और अपने शरीर से गंदगी को धोने के लिए एक अच्छा स्नान किया. इसलिए, सुबह जल्दी स्नान की यह परंपरा बुराई पर दिव्यता की विजय का प्रतीक है.

पढ़ें- उदयपुर: मिट्टी के दीपक बने सबकी पसंद, महंगाई की मार, फिर भी खरीदार बेशुमार

लक्ष्मी पूजा - तीसरा दिन जो कि इन सबमें सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है- वह है लक्ष्मी पूजा का. यह वह दिन है जब सूरज अपने दूसरे चरण में प्रवेश करता है. अंधियारी रात होने के बावजूद भी इस दिन को बहुत ही शुभ माना जाता है. छोटे-छोटे दीपक हर शहर-गांव में प्रज्वलित होने से रात का अभेद्य अंधकार धीरे-धीरे गायब हो जाता है. यह माना जाता है कि लक्ष्मीजी दीपावली की रात को पृथ्वी पर आती हैं और समृद्धि के लिए आशीर्वाद की वर्षा करती है. पंडितों के अनुसार एक कहानी है कि एक छोटा सा लड़का था. जिसका नाम नचिकेत था. वह मानता था कि मृत्यु के देवता यम, अमावस्या की अंधेरी रात के जैसे रूप में काले हैं. लेकिन जब वह व्यक्ति के रूप में यम से मिला तो वह यम का शांत चेहरा और सम्मानजनक कद देखकर हैरान रह गया. यम ने नचिकेता को समझाया केवल मौत के अंधेरे के माध्यम से गुजरने के बाद व्यक्ति उच्चतम ज्ञान की रोशनी देखता है और उसकी आत्मा, परमात्मा के साथ एक होने के लिए अपने शरीर के बंधन से मुक्त होती हैं. तब नचिकेता को सांसारिक जीवन के महत्व और मृत्यु के महत्व का अहसास हुआ. तब उसने अपने सभी संदेह को छोड़कर, फिर दिवाली के समारोह में हिस्सा लिया.

पढ़ें- अलवर: दिवाली पर बाजारों में बिक रहे मिट्टी के ऊंट और शेर

गोवर्धन पूजा - इस उत्सव का चौथा दिन वर्ष प्रतिपदा के रूप में जाना जाता है और राजा विक्रम की ताजपोशी को चिह्नित करता है. यह वो दिन भी है जब भगवान कृष्ण ने भगवान इंद्र की मूसलाधार बारिश के क्रोध से गोकुल के लोगों को बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत उठाया था. इसे गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है. साथ ही गौ माता को भी पूजा जाता है.

भाई दूज

इस पंच दिवसीय महोत्सव का समापन भाईदूज के साथ होता है. दीपोत्सव का आखिरी दिन भाईदूज के रूप में मनाया जाता है. यह दिन भाइयों और बहनों के बीच प्रेम का प्रतीक दर्शाता है. भाई अपनी बहनों को उपहार भेंट करते हैं.

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