जयपुर. दुष्कर्म के मामलों में राजस्थान देश में पहले पायदान पर आ गया है. अगस्त माह में एनसीआरबी की ओर से जारी किए गए अपराध के आंकड़ों में ये जानकारी सामने आई है. इस पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पुलिस मुख्यालय की ओर से यही कहा गया कि फ्री एफआईआर रजिस्ट्रेशन पॉलिसी के चलते अपराध दर्ज होने के आंकड़ों में वृद्धि हुई है और बड़ी तादाद में प्रकरण झूठे पाए गए हैं. जिनमें कोर्ट में एफआर पेश की गई (Fake cases increased in Rajasthan) है.
कई ऐसे प्रकरण सामने आए हैं जिसमें महज रंजिश के चलते बदला लेने या ब्लैकमेल करने के लिए दुष्कर्म व महिला उत्पीड़न के अन्य मुकदमे दर्ज करवाए गए. पुलिस जांच में मामले झूठे पाए जाने पर उनमें एफआर लगाई गई. हालांकि कानून का गलत उपयोग करने वाले लोगों के खिलाफ पुलिस कोई भी सख्त एक्शन नहीं लेती है, जिसके चलते लोग कानून का गलत फायदा उठाने में जरा भी नहीं हिचकिचाते हैं. हालांकि झूठे प्रकरणों के चलते लोगों की साख पर बन आती है और कानूनी प्रक्रिया के पचड़े में पड़ने के चलते उन्हें आर्थिक व सामाजिक हानि भी उठानी पड़ती है.
2021 में दर्ज महिला अत्याचारों के 45 फीसदी मामलों में एफआर: एडीजी क्राइम डॉ रवि प्रकाश मेहरड़ा ने बताया कि वर्ष 2021 में प्रदेश में दर्ज हुए महिला अत्याचारों के प्रकरणों में 45 फीसदी मामलों में पुलिस ने कोर्ट में एफआर पेश की है. वर्ष 2021 में पूरे प्रदेश में महिला अत्याचारों से संबंधित विभिन्न तरह के कुल 40220 मामले दर्ज किए गए. जिसमें से 16728 मामलों में पुलिस ने कोर्ट में एफआर पेश की, यानी कि ये मामले झूठे पाए गए. महिला अत्याचारों की कैटेगरी में दहेज मृत्यु के 26, दहेज आत्महत्या का दुष्प्रेरणा के 42, महिला उत्पीड़न के 425, बलात्कार के 46, छेड़छाड़ के 40 और अपहरण के 67 फीसदी प्रकरण झूठे पाए गए.
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50 फीसदी से अधिक मामलों में लगी एफआर: एडीजी क्राइम ने बताया कि प्रदेश में वर्ष 2021 में अनुसूचित जाति अत्याचार के कुल 7524 प्रकरण दर्ज किए गए. जिसमें से 3224 प्रकरणों में पुलिस ने कोर्ट में एफआर पेश की, यानी कि अनुसूचित जा अत्याचार के 50 फीसदी प्रकरण झूठे पाए गए. इसी प्रकार से अनुसूचित जनजाति अत्याचार के तहत प्रदेश में 2121 प्रकरण दर्ज किए गए, जिसमें से 925 प्रकरणों में पुलिस ने कोर्ट में एफआर पेश की. यानी कि अनुसूचित जनजाति अत्याचार के 53 फीसदी प्रकरण झूठे पाए गए.
झूठे मामलों में सजा और फाइन: एडीजी क्राइम ने कहा कि बड़ी तादाद में झूठे मामलों के उजागर होने के बाद अब पुलिस कानून का गलत तरीके से इस्तेमाल करने वाले लोगों से सख्ती से निपटने की तैयारी कर रही है. कोर्ट में पुलिस के एफआर पेश करने और कोर्ट द्वारा उसे स्वीकार करने के बाद पुलिस झूठे मामले दर्ज कराने वाले व्यक्ति के खिलाफ कोर्ट में इस्तगासा पेश करती है. इसके बाद झूठा मामला दर्ज कराने वाले व्यक्ति को कोर्ट का ट्रायल फेस करना होता है और कोर्ट द्वारा उस व्यक्ति को सजा सुनाई जाती है. साथ ही उस पर जुर्माना भी लगाया जाता है.
उजागर हुए कुछ झूठे मामले:
बदला लेने के लिए पॉक्सो एक्ट में दर्ज करवाया मामला निकला झूठा: जोधपुर शहर के शास्त्री नगर थाने में सितंबर माह में 12वीं कक्षा में पढ़ने वाली एक नाबालिग छात्रा ने अपने ही सहपाठी पर बदतमीजी करने और गलत भाषा का प्रयोग करते हुए धमकी भरे पत्र भेजने के आरोप लगाते हुए पॉक्सो एक्ट में मामला दर्ज करवाया था. पुलिस ने प्रकरण में युवक को गिरफ्तार भी कर लिया, लेकिन जब तफ्तीश की गई तो पता चला कि किशोरी ने युवक से बदला लेने की नीयत के खुद ही झूठे पत्र लिखकर अपने घर में फेंके और पुलिस के साथ अपने परिवार के सदस्यों को भी गुमराह किया.
शास्त्री नगर थानाधिकारी जोगेंद्र चौधरी ने बताया कि एफआईआर में युवक पर जो आरोप लगाए गए उनकी जांच की गई तो वह तमाम आरोप बेबुनियाद पाए गए. जांच में पता चला की किशोरी कि पहले युवक से दोस्ती थी और बाद में किशोरी ने युवक से बातचीत करना बंद कर दिया व उसे सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफार्म पर ब्लॉक कर दिया. किशोरी को यह डर था कि ऐसा करने पर युवक उसके बारे में गलत बातें बना सकता है और उसे बदनाम कर सकता है, जिसके चलते उसने युवक से बदला लेने के लिए पूरी झूठी कहानी रच डाली.
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जमीन विवाद में भी महिला उत्पीड़न के आरोप: प्रदेश में जमीन या मकान को लेकर होने वाले विवादों में भी महिलाओं को ढाल बनाकर और सामने वाली पक्ष पर दबाव बनाने के लिए महिला उत्पीड़न के आरोप लगाते हुए झूठे मामले दर्ज करवाए जाते हैं. जिसमें महिलाओं से छेड़छाड़, अभद्रता और यहां तक कि दुष्कर्म करने तक के मामले दर्ज होते हैं लेकिन पुलिस जांच में ऐसे मामले झूठे पाए जाते हैं जिनमें एफआर लगाई जाती है.