जयपुर. एक बार फिर ईटीवी भारत की खबर पर मुहर लगी है. प्रदेश में नगर निकाय में महापौर और सभापति के चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से होंगे, ईटीवी भारत के जरिए सबसे पहले इस खबर को दिखाया गया था कि गहलोत सरकार अपने ही फैसले को बदलते हुए अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव कराने को लेकर निर्णय ले सकती हैं. जिसके बाद सोमवार को हुई कैबिनेट बैठक में ईटीवी भारत की खबर पर मुहर लग गई.
बैठक में राजस्थान की गहलोत सरकार ने एक बार फिर निकाय चुनाव को लेकर लिए गए अपने फैसले को बदल दिया है. प्रदेश में अब अप्रत्यक्ष रूप से महापौर और सभापति के चुनाव होंगे. इससे पहले प्रदेश में गहलोत सरकार बनने के साथ ही पूर्ववर्ती वसुंधरा सरकार के अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव कराने की नियमों में संशोधन करते हुए गहलोत सरकार विधानसभा में प्रत्यक्ष प्रणाली के साथ नगर निकाय चुनाव कराने को लेकर देख ले कर आई थी लेकिन सोमवार को हुई कैबिनेट बैठक में सरकार ने अपने ही फैसले को बदल दिया.
गहलोत सरकार की कैबिनेट बैठक में कई अहम फैसले लिए गए. जिनमें सबसे महत्वपूर्ण फैसला लिया गया कि प्रदेश में नवंबर माह में होने वाले निकाय चुनाव में महापौर और सभापति के चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से होंगे. यानी अब पार्षद अपने मेयर और सभापति का चुनाव स्वयं करेंगे. दरअसल पूर्ववर्ती वसुंधरा सरकार ने प्रत्यक्ष रूप से महापौर और सभापति के चुनाव नियम में संशोधन करते हुए अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव कराने का निर्णय लिया था.
उसके बाद प्रदेश में हुए नगर निकाय चुनाव में अप्रत्यक्ष रूप से सभापति और महापौर चुने गए. 2018 में जैसे ही प्रदेश की सरकार बदली गहलोत सरकार ने पूर्ववर्ती वसुंधरा सरकार के वक्त के फैसले को बदलते हुए नगर निकाय चुनाव में महापौर और सभापति का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली यानी सीधे मतदाता द्वारा चुने जाने का निर्णय लिया.
फिलहाल सरकार ने अपने इस महत्वपूर्ण फैसले को बदलते हुए एक बार फिर प्रदेश में अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव कराने का निर्णय आज कैबिनेट बैठक में लिया. हालांकि सरकार की तरफ से इसके पीछे दलील दी जा रही है कि अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव कराने को लेकर जनता और जनप्रतिनिधियों की राय ली गई है. सबकी सहमति मिलने के बाद यह निर्णय लिया गया है.
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यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल ने सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने को इसकी वजह बताया है. इस दौरान शांति धारीवाल ने बीजेपी पर भी सरकार के इस फैसले के बाद आरोप का जवाब देते हुए कहा कि भाजपा को अपने शासनकाल को याद कर लेना चाहिए कि जब प्रदेश में प्रत्यक्ष रूप से महापौर सभापति के चुनाव कराए जा रहे थे तो फिर वसुंधरा सरकार आने के बाद इस नियम को बदला क्यों गया. क्या भाजपा को हार का डर था इसलिए बदला था.
बता दें कि लोकसभा चुनाव में जिस तरीके से प्रदेश में कांग्रेस के हाथ से 25 की 25 सीटें चली गई थी, उसके बाद जनप्रतिनिधियों द्वारा सरकार को यह फीडबैक दिया गया था कि अगर प्रत्यक्ष प्रणाली के तहत नगर निकाय चुनाव कराए जाते हैं तो प्रदेश में जिस तरह का माहौल है उसमें कांग्रेस के खाते में एक भी बोर्ड नहीं आएगा. संभवत यह भी एक वजह हो सकती है कि कांग्रेस को अप्रत्यक्ष चुनाव करवाने पड़ रहे है.