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अल्बर्ट हॉल के 133वें स्थापना दिवस पर अनोखा नजारा...सिक्के बने आकर्षण का केंद्र...Video

प्रदेश के सबसे पुराने म्यूजियम अल्बर्ट हॉल का गुरुवार को 133वां स्थापना दिवस मनाया गया. शहर के बीचों बीच रामनिवास बाग में स्थापित अल्बर्ट हॉल ना केवल ज्ञान का केन्द्र है बल्कि कलाकारों को अपने ज्ञान को विकसित करने की एक ऐसी जगह है जहां पारम्परिक भारतीय कला का संरक्षण हुआ है.

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Published : Feb 22, 2019, 12:58 PM IST

अल्बर्ट हॉल का स्थापना दिवस

जयपुर. प्रदेश के सबसे पुराने म्यूजियम अल्बर्ट हॉल का गुरुवार को 133वां स्थापना दिवस मनाया गया अल्बर्ट हॉल के मेन गेट पर कबूतरों का जमावड़ा, चारों तरफ हरे-भरे पेड़ों का नजारा देखते ही बनता है. हॉल में पंचमार्क से लेकर ब्रिटिश काल तक के 93 हजार सिक्के मौजूद है, जो देश-विदेशी पर्यटकों का आकर्षण का केंद्र रहते हैं.

अल्बर्ट हॉल में देश-विदेश की कला के नमूनों को सहेज के रखा गया है. इसी बीच पुरातत्व निदेशालय स्थित मुद्रा शाखा में लगभग 93 हजार सिक्के सुरक्षित हैं. सिक्को का समय-समय पर संरक्षण और रासायनिक उपचार किया जाता है. इसमें पंचमार्क, इंडो ग्रीक, ट्राइबल कुषाण, गुप्त कालीन स्वर्ण सिक्के, राजपूत कालीन, मुग़ल कालीन, ब्रिटिश कालीन सहित अनेक प्रकार के सिक्के मौजूद है. इन सिक्कों को पर्यटकों के लिए भी प्रदर्शित किया गया है. इसी बीच अल्बर्ट हॉल में 2340 साल पुरानी एक महिला की ममी आकर्षण का केंद्र है.

अल्बर्ट हॉल का स्थापना दिवस

महिला की ममी को साल 1880 में ब्रिटिश सरकार मिस्र से भारत लेकर आई थी. उसके बाद से ही इसे जयपुर के अल्बर्ट म्यूजियम में संभालकर रखा गया है. इस ममी को देखने हर साल सैकड़ों की संख्या में सैलानी आते हैं. इनमें विदेशी सैलानी की भी अच्छी खासी संख्या होती है. विभिन्न प्रकार की रासायनिक दवाएं और अन्य चीजे यहां निश्चित तौर पर दर्शनीय हैं. अलबर्ट हॉल की स्थापत्य कला में भारतीय-ईरानी के साथ पाषाण अलंकरण मुगल-राजपूत स्थापत्य कला का प्रतिबिंब साफ तौर पर नजर आता है. इस महल के गलियारों और बरामदों को भित्ति चित्रों से सुसज्जित किया गया है.

बरामदों में यूरोप, मिश्र, चीन, ग्रीक और बेबिलोनिया सभ्यता की प्रमुख घटनाएं चित्रित की गई हैं, ताकि संग्रहालय में आने वाले दर्शक अपनी संस्कृति के साथ-साथ अन्य देशों की संस्कृति और सभ्यता से भी परिचित हों और उनका ज्ञानवर्द्धन हो. गुरुवार को अल्बर्ट हॉल के स्थापना दिवस के मौके पर एंट्री फ्री रखी गई. अल्बर्ट हॉल के एकदम पास में शहर का इकलौता चिड़ियाघर मौजूद है. जिसमें बच्चों के देखने के लिए कई तरह के पशु पक्षी मिलेंगे. शाम के समय अल्बर्ट हॉल के आसपास का नजारा एक चौपाटी जैसा लगने लगता है. साथ ही गुरुवार को यहां कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ संगीत संध्या के कार्यक्रम भी रखे गए.

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गौरतलब है कि महारानी विक्टोरिया के पुत्र प्रिंस ऑफ वेल्स अल्बर्ट एडवर्ड ने वर्ष 1876 ई. में जयपुर आगमन के दौरान अल्बर्ट हॉल की नींव रखी थी. हालांकि, उस समय यह निर्धारित नहीं था कि इस भवन का उपयोग किस लिए किया जाने वाला है. अल्बर्ट हॉल का निर्माण वर्ष 1887 में पूर्ण हुआ और अस्थायी संग्रहालय और प्रदर्शनी जिसमें कला वस्तुओं को भारत के विभिन्न भागों और आसपास के क्षेत्रों से एकत्रित किया गया था. उनको सम्मिलित कर इस नए संग्रहालय भवन में स्थानांतरित कर दिया गया. आज अल्बर्ट हॉल जयपुर शहर की एक खास पहचान बन गया है. एक अनुमान के अनुसार, प्रतिवर्ष करीब तीन लाख से ज्यादा सैलानी अल्बर्ट हॉल का दीदार करने यहां आते हैं.

जयपुर. प्रदेश के सबसे पुराने म्यूजियम अल्बर्ट हॉल का गुरुवार को 133वां स्थापना दिवस मनाया गया अल्बर्ट हॉल के मेन गेट पर कबूतरों का जमावड़ा, चारों तरफ हरे-भरे पेड़ों का नजारा देखते ही बनता है. हॉल में पंचमार्क से लेकर ब्रिटिश काल तक के 93 हजार सिक्के मौजूद है, जो देश-विदेशी पर्यटकों का आकर्षण का केंद्र रहते हैं.

अल्बर्ट हॉल में देश-विदेश की कला के नमूनों को सहेज के रखा गया है. इसी बीच पुरातत्व निदेशालय स्थित मुद्रा शाखा में लगभग 93 हजार सिक्के सुरक्षित हैं. सिक्को का समय-समय पर संरक्षण और रासायनिक उपचार किया जाता है. इसमें पंचमार्क, इंडो ग्रीक, ट्राइबल कुषाण, गुप्त कालीन स्वर्ण सिक्के, राजपूत कालीन, मुग़ल कालीन, ब्रिटिश कालीन सहित अनेक प्रकार के सिक्के मौजूद है. इन सिक्कों को पर्यटकों के लिए भी प्रदर्शित किया गया है. इसी बीच अल्बर्ट हॉल में 2340 साल पुरानी एक महिला की ममी आकर्षण का केंद्र है.

अल्बर्ट हॉल का स्थापना दिवस

महिला की ममी को साल 1880 में ब्रिटिश सरकार मिस्र से भारत लेकर आई थी. उसके बाद से ही इसे जयपुर के अल्बर्ट म्यूजियम में संभालकर रखा गया है. इस ममी को देखने हर साल सैकड़ों की संख्या में सैलानी आते हैं. इनमें विदेशी सैलानी की भी अच्छी खासी संख्या होती है. विभिन्न प्रकार की रासायनिक दवाएं और अन्य चीजे यहां निश्चित तौर पर दर्शनीय हैं. अलबर्ट हॉल की स्थापत्य कला में भारतीय-ईरानी के साथ पाषाण अलंकरण मुगल-राजपूत स्थापत्य कला का प्रतिबिंब साफ तौर पर नजर आता है. इस महल के गलियारों और बरामदों को भित्ति चित्रों से सुसज्जित किया गया है.

बरामदों में यूरोप, मिश्र, चीन, ग्रीक और बेबिलोनिया सभ्यता की प्रमुख घटनाएं चित्रित की गई हैं, ताकि संग्रहालय में आने वाले दर्शक अपनी संस्कृति के साथ-साथ अन्य देशों की संस्कृति और सभ्यता से भी परिचित हों और उनका ज्ञानवर्द्धन हो. गुरुवार को अल्बर्ट हॉल के स्थापना दिवस के मौके पर एंट्री फ्री रखी गई. अल्बर्ट हॉल के एकदम पास में शहर का इकलौता चिड़ियाघर मौजूद है. जिसमें बच्चों के देखने के लिए कई तरह के पशु पक्षी मिलेंगे. शाम के समय अल्बर्ट हॉल के आसपास का नजारा एक चौपाटी जैसा लगने लगता है. साथ ही गुरुवार को यहां कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ संगीत संध्या के कार्यक्रम भी रखे गए.

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गौरतलब है कि महारानी विक्टोरिया के पुत्र प्रिंस ऑफ वेल्स अल्बर्ट एडवर्ड ने वर्ष 1876 ई. में जयपुर आगमन के दौरान अल्बर्ट हॉल की नींव रखी थी. हालांकि, उस समय यह निर्धारित नहीं था कि इस भवन का उपयोग किस लिए किया जाने वाला है. अल्बर्ट हॉल का निर्माण वर्ष 1887 में पूर्ण हुआ और अस्थायी संग्रहालय और प्रदर्शनी जिसमें कला वस्तुओं को भारत के विभिन्न भागों और आसपास के क्षेत्रों से एकत्रित किया गया था. उनको सम्मिलित कर इस नए संग्रहालय भवन में स्थानांतरित कर दिया गया. आज अल्बर्ट हॉल जयपुर शहर की एक खास पहचान बन गया है. एक अनुमान के अनुसार, प्रतिवर्ष करीब तीन लाख से ज्यादा सैलानी अल्बर्ट हॉल का दीदार करने यहां आते हैं.

Intro:जयपुर- प्रदेश के सबसे पुराने म्यूजियम अल्बर्ट हॉल का गुरुवार को स्थापना दिवस है। गुरुवार को अल्बर्ट हाल का 133वां स्थापना दिवस मनाया जा रहा है। शहर के बीचों बीच रामनिवास बाग में स्थापित अल्बर्ट हॉल ना केवल ज्ञान का केन्द्र है बल्कि कलाकारों को अपने ज्ञान को विकसित करने की एक ऐसी जगह है जहां पारम्परिक भारतीय कला का संरक्षण हुआ है। अल्बर्ट हॉल के मुख्य द्वार पर कबूतरों का जमावड़ा, चारो तरफ हरे भरे पेड़ का नजारा देखते ही बनता है। अल्बर्ट हॉल में पंचमार्क से लेकर ब्रिटिश काल तक के 93 हजार सिक्के मौजूद है जो देशी विदेशी पर्यटकों का आकर्षण का केंद्र रहते है।


Body:वीओ- महारानी विक्टोरिया के पुत्र प्रिंस ऑफ वेल्स अल्बर्ट एडवर्ड के वर्ष 1876 ई. में जयपुर आगमन के दौरान अल्बर्ट हॉल की नींव रखी गई थी। हालांकि उस समय यह निर्धारित नहीं था कि इस भवन का उपयोग किस लिए किया जाने वाला है। अल्बर्ट हॉल का निर्माण वर्ष 1887 में पूर्ण हुआ तथा अस्थायी संग्रहालय तथा प्रदर्शनी जिसमें कला वस्तुओं को भारत के विभिन्न भागों एवं आसपास के क्षेत्रों से एकत्रित किया गया था, को सम्मिलित कर इस नये संग्रहालय भवन में स्थानांतरित कर दिया गया। आज अल्बर्ट हॉल जयपुर शहर की एक खास पहचान बन गया है। एक अनुमान के अनुसार, प्रतिवर्ष करीब 3 लाख से ज्यादा सैलानी अल्बर्ट हॉल का दीदार करने यहां आते हैं। स्कूली बच्चों सहित विज्ञान और आर्किटेक्ट पढ़ने वालों के लिए यहां काफी कुछ सिखने को मिलेगा। 


वीओ- अल्बर्ट हॉल में देश विदेश की कला के नमूनों को सहेज के रखा है। इसी बीच पुरातत्व निदेशालय स्थित मुद्रा शाखा में लगभग 93 हजार सिक्के सुरक्षित है। सिक्को का समय समय पर संरक्षण और रासायनिक उपचार किया जाता है। सिक्कों में पंचमार्क, इंडो ग्रीक, ट्राइबल कुषाण, गुप्त कालीन स्वर्ण सिक्के, राजपूत कालीन, मुग़ल कालीन, ब्रिटिश कालीन सहित अनेक प्रकार के सिक्के मौजूद है। इस सिक्को को पर्यटकों के लिए भी प्रदर्शित किया गया है। इसी बीच अल्बर्ट हॉल में 2340 साल पुरानी एक महिला की ममी आकर्षण का केंद्र है। महिला की ममी को साल 1880 में ब्रिटिश सरकार मिस्र से भारत लेकर आई थी। उसके बाद से ही इसे जयपुर के अल्बर्ट म्यूजियम में इसे संभाल कर रखा गया है। इस ममी को देखने हर साल सैकड़ों की संख्या में सैलानी आते हैं। इनमें विदेशी सैलानी की भी अच्छी खासी संख्या होती है। विभिन्न प्रकार की रासायनिक दवाएं और अन्य चीजे यहां निश्चित तौर पर दर्शनीय हैं। अलबर्ट हॉल की स्थापत्य कला में भारतीय-ईरानी के साथ पाषाण अलंकरण मुगल-राजपूत स्थापत्य कला का प्रतिबिंब साफ तौर पर नजर आता है। इस महल के गलियारों व बरामदों को भित्ति चित्रों से सुसज्जित किया गया है। यहां अकबर कालीन चित्रित ‘रज्मनामा’ तथा धार्मिक चित्रों की प्रतिकृतियाँ बनाई गई। बरामदों में यूरोप, मिश्र, चीन, ग्रीक और बेबिलोनिया सभ्यता की प्रमुख घटनाएं चित्रित की गई हैं ताकि संग्रहालय में आने वाले दर्शक अपनी संस्कृति के साथ-साथ अन्य देशों की संस्कृति और सभ्यता से भी परिचित हों और उनका ज्ञानवर्द्धन हो।चूंकि आज अल्बर्ट हॉल का स्थापना दिवस है, इसके चलते आज यहां एंट्री फ्री रखी गई है। अल्बर्ट हॉल के एकदम पास में शहर का इकलौता चिड़ियाघर मौजूद है जिसमें बच्चों के देखने के लिए शेर, बाघ, सफेद बाघ, अजगर, हिरण-चीतल और मगर-घडियाल के साथ कई तरह के पशु पक्षी मिलेंगे। शाम के समय अल्बर्ट हॉल के आसपास का नजारा एक चौपाटी जैसा लगने लगता है। आज यहां कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ संगीत संध्या के कार्यक्रम रखे गए है.


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