जयपुर. प्रदेश के सबसे पुराने म्यूजियम अल्बर्ट हॉल का गुरुवार को 133वां स्थापना दिवस मनाया गया अल्बर्ट हॉल के मेन गेट पर कबूतरों का जमावड़ा, चारों तरफ हरे-भरे पेड़ों का नजारा देखते ही बनता है. हॉल में पंचमार्क से लेकर ब्रिटिश काल तक के 93 हजार सिक्के मौजूद है, जो देश-विदेशी पर्यटकों का आकर्षण का केंद्र रहते हैं.
अल्बर्ट हॉल में देश-विदेश की कला के नमूनों को सहेज के रखा गया है. इसी बीच पुरातत्व निदेशालय स्थित मुद्रा शाखा में लगभग 93 हजार सिक्के सुरक्षित हैं. सिक्को का समय-समय पर संरक्षण और रासायनिक उपचार किया जाता है. इसमें पंचमार्क, इंडो ग्रीक, ट्राइबल कुषाण, गुप्त कालीन स्वर्ण सिक्के, राजपूत कालीन, मुग़ल कालीन, ब्रिटिश कालीन सहित अनेक प्रकार के सिक्के मौजूद है. इन सिक्कों को पर्यटकों के लिए भी प्रदर्शित किया गया है. इसी बीच अल्बर्ट हॉल में 2340 साल पुरानी एक महिला की ममी आकर्षण का केंद्र है.
महिला की ममी को साल 1880 में ब्रिटिश सरकार मिस्र से भारत लेकर आई थी. उसके बाद से ही इसे जयपुर के अल्बर्ट म्यूजियम में संभालकर रखा गया है. इस ममी को देखने हर साल सैकड़ों की संख्या में सैलानी आते हैं. इनमें विदेशी सैलानी की भी अच्छी खासी संख्या होती है. विभिन्न प्रकार की रासायनिक दवाएं और अन्य चीजे यहां निश्चित तौर पर दर्शनीय हैं. अलबर्ट हॉल की स्थापत्य कला में भारतीय-ईरानी के साथ पाषाण अलंकरण मुगल-राजपूत स्थापत्य कला का प्रतिबिंब साफ तौर पर नजर आता है. इस महल के गलियारों और बरामदों को भित्ति चित्रों से सुसज्जित किया गया है.
बरामदों में यूरोप, मिश्र, चीन, ग्रीक और बेबिलोनिया सभ्यता की प्रमुख घटनाएं चित्रित की गई हैं, ताकि संग्रहालय में आने वाले दर्शक अपनी संस्कृति के साथ-साथ अन्य देशों की संस्कृति और सभ्यता से भी परिचित हों और उनका ज्ञानवर्द्धन हो. गुरुवार को अल्बर्ट हॉल के स्थापना दिवस के मौके पर एंट्री फ्री रखी गई. अल्बर्ट हॉल के एकदम पास में शहर का इकलौता चिड़ियाघर मौजूद है. जिसमें बच्चों के देखने के लिए कई तरह के पशु पक्षी मिलेंगे. शाम के समय अल्बर्ट हॉल के आसपास का नजारा एक चौपाटी जैसा लगने लगता है. साथ ही गुरुवार को यहां कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ संगीत संध्या के कार्यक्रम भी रखे गए.
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गौरतलब है कि महारानी विक्टोरिया के पुत्र प्रिंस ऑफ वेल्स अल्बर्ट एडवर्ड ने वर्ष 1876 ई. में जयपुर आगमन के दौरान अल्बर्ट हॉल की नींव रखी थी. हालांकि, उस समय यह निर्धारित नहीं था कि इस भवन का उपयोग किस लिए किया जाने वाला है. अल्बर्ट हॉल का निर्माण वर्ष 1887 में पूर्ण हुआ और अस्थायी संग्रहालय और प्रदर्शनी जिसमें कला वस्तुओं को भारत के विभिन्न भागों और आसपास के क्षेत्रों से एकत्रित किया गया था. उनको सम्मिलित कर इस नए संग्रहालय भवन में स्थानांतरित कर दिया गया. आज अल्बर्ट हॉल जयपुर शहर की एक खास पहचान बन गया है. एक अनुमान के अनुसार, प्रतिवर्ष करीब तीन लाख से ज्यादा सैलानी अल्बर्ट हॉल का दीदार करने यहां आते हैं.