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राजस्थान में एक बार फिर बिजली संकट, मैनेजमेंट में विफल रहा ऊर्जा विकास निगम

शुक्रवार से राजस्थान के ग्रामीण व शहरी इलाकों (Rajasthan power crisis) के साथ ही औद्योगिक क्षेत्रों में बिजली की कटौती शुरू हो गई. लेकिन जारी शेड्यूल से फिलहाल जिला मुख्यालयों को दूर रखा गया है. खैर, ऐसी स्थिति क्यों आई, इसके पीछे की क्या वजहें रही, चलिए जानते हैं...

electricity crisis again in rajasthan
electricity crisis again in rajasthan
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Published : Dec 23, 2022, 1:07 PM IST

जयपुर. शुक्रवार से राजस्थान में एक से तीन घंटे तक बिजली की कटौती शुरू ( Electricity crisis again in Rajasthan) हो गई. जिसकी जद में गांव से लेकर शहरी इलाके व औद्योगिक क्षेत्र तक शामिल हैं. हालांकि, इस बिजली संकट से संभागीय मुख्यालयों को फिलहाल दूर रखा गया है. यानी जयपुर, जोधपुर, अजमेर, कोटा, बीकानेर, उदयपुर और भरतपुर शहर में बिजली की कटौती नहीं होगी. ऐसे में समझने वाली बात यह भी है कि इस बिजली संकट के पीछे आखिर वजह क्या हो सकती है. शुरुआत में सामने आया है कि ऊर्जा विकास निगम की तरफ से डिमांड का आकलन होने के बावजूद मैनेजमेंट ठीक से नहीं किया गया. जिसका नतीजा बिजली व्यवस्था में विफलता और प्रदेश में बिजली संकट से जूझ रहे प्रदेशवासियों की परेशानी के रूप में सामने आया. मौजूदा समय में प्रदेश में विद्युत उत्पादन निगम की चार यूनिट्स ठप पड़े हैं. लेकिन जिम्मेदार अफसरों की जवाबदेही अब तक तय नहीं की जा सकी है.

इस बिजली कटौती के तहत शहरों और गांवों में सुबह, जबकि औद्योगिक इलाकों में शाम को कटौती करने की बात कही गई है. वहीं, औद्योगिक क्षेत्रों में 125 केवीए से ज्यादा लोड वाले उद्योग शामिल हैं. जिन्हें 3 घंटे तक निर्धारित क्षमता से 50 फीसदी कम लोड पर इकाई संचालित करनी होगी. पावर मैनेजमेंट फेल होने के बाद ऊर्जा विकास निगम ने (Energy Development Corporation failed) कटौती का शेड्यूल जारी किया था. हालांकि, इस कटौती से संभागीय मुख्यालयों को बाहर रखा गया है. उक्त विषय पर ऊर्जा विकास निगम की ओर से कहा गया कि रबी के सीजन में खेती की वजह से डिमांड में अचानक वृद्धि हो गई है. जिसके कारण नए सिरे से शेड्यूल जारी किए गए. बताया गया कि 5 हजार से अधिक आबादी वाले गांव में सुबह 6:30 से 7:30 तक बजे और सभी औद्योगिक इकाइयों वाले क्षेत्र, जहां 125 केवीए से ज्यादा लोड होंगे, वहां शाम को 5 बजे से 8 बजे तक कटौती की होगी.

इसे भी पढ़ें - राजस्थान में बिजली संकट! मई के पहले पखवाड़े तक मिलेगी कुछ राहत, जल्द ही छत्तीसगढ़ से मिलेगा कोयला

बड़े उद्योगों के उत्पादन पर पड़ेगा असर - मैनेजमेंट की चूक की वजह से बिजली कटौती के बाद प्रदेश में लगभग 14 हजार 184 बड़ी औद्योगिक इकाइयों (Power Crisis in Rajasthan) पर इसका सीधा असर देखने को मिलेगा. जिनमें सीमेंट, टेक्सटाइल और अन्य बड़े उद्योग शामिल है. जाहिर है कि जयपुर डिस्कॉम के तहत करीब 5 हजार 423 औद्योगिक इकाइयों को इसका नुकसान भुगतना पड़ेगा. वहीं, जोधपुर डिस्कॉम में 3 हजार 169 और अजमेर डिस्कॉम 5 हजार 593 औद्योगिक इकाइयां इस कटौती के दायरे में आएगी.

बता दें कि प्रदेश में ऊर्जा विकास निगम की जिम्मेदारी है कि वह बिजली की डिमांड का आकलन करने के बाद इसकी उपलब्धता को सुनिश्चित करें. लेकिन मौजूदा वक्त में आकलन किए जाने के बाद भी बिजली की उपलब्धता में निगम फेल रहा है. विद्युत उत्पादन निगम से करीब 5000 मेगावाट बिजली मिलने का आकलन किया गया था, लेकिन औसतन 4440 मेगावाट बिजली ही मिल रही है. इस बीच चार यूनिट बंद होने के बाद ये आकलन सुनिश्चित नहीं किया जा सका. प्राप्त जानकारी के मुताबिक दूसरी कंपनियों के साथ अनुबंध से 6000 मेगावाट बिजली मिलनी थी. लेकिन इसमें भी लगातार उतार-चढ़ाव की स्थिति बनी हुई है.

इधर, अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग प्रक्रिया के तहत उत्तर प्रदेश की बिजली वितरण कंपनियों से 15 मेगावाट तक बिजली ली जा रही है, जो मौजूदा डिमांड के हिसाब से काफी नहीं है. साथ ही सोलर पावर प्लांट से भी उम्मीद के मुताबिक बिजली नहीं मिल पा रही है. राज्य में विद्युत उत्पादन निगम की 7580 मेगावाट की 23 यूनिट है, जिनमें से चार यूनिट से (Power cut declared in Rajasthan) गुरुवार शाम तक बिजली का उत्पादन बंद रहा. वहीं, सूरतगढ़ पावर प्लांट की 250-250 मेगा वाट यूनिट की दो इकाइयां और 660 मेगावाट की एक यूनिट बंद है तो कोटा थर्मल पावर प्लांट की 195 मेगावाट की यूनिट भी रखरखाव के कारण फिलहाल बंद पड़ी है.

ऊर्जा विकास निगम का आकलन - राजस्थान में ऊर्जा विकास निगम का पूर्व अनुमान था कि रबी के सीजन में डिमांड बढ़ने के बाद करीब 17000 मेगावॉट तक यह मांग पहुंच जाएगी. लेकिन निगम ने इसके लिए अतिरिक्त बिजली की व्यवस्था नहीं की. इसी मौसम में पिछले साल सुबह 6:00 से 8:30 के बीच लोड करीब 11500 मेगा वॉट रहा था. इस साल बढ़कर 12500 मेगावॉट तक पहुंच गया. लेकिन निगम को इस बात का अंदाजा नहीं रहा. ये वो वक्त है जब न तो सोलर एनर्जी मिलती है और न ही एक्सचेंज रेट में सस्ती बिजली की उपलब्धता रहती है. ऐसे में सीधा-सीधा एक हजार मेगावाट तक बिजली की कमी आ जाती है. इसका खामियाजा छोटे शहरों और गांवों को घोषित रूप से बिजली कटौती के रूप में भुगतना पड़ा. जाहिर है कि ऐसे में सरकार जिम्मेदार अफसरों की लापरवाही का नुकसान आम आदमी को होने वाली परेशानी के रूप में पेश कर रही है.

जयपुर. शुक्रवार से राजस्थान में एक से तीन घंटे तक बिजली की कटौती शुरू ( Electricity crisis again in Rajasthan) हो गई. जिसकी जद में गांव से लेकर शहरी इलाके व औद्योगिक क्षेत्र तक शामिल हैं. हालांकि, इस बिजली संकट से संभागीय मुख्यालयों को फिलहाल दूर रखा गया है. यानी जयपुर, जोधपुर, अजमेर, कोटा, बीकानेर, उदयपुर और भरतपुर शहर में बिजली की कटौती नहीं होगी. ऐसे में समझने वाली बात यह भी है कि इस बिजली संकट के पीछे आखिर वजह क्या हो सकती है. शुरुआत में सामने आया है कि ऊर्जा विकास निगम की तरफ से डिमांड का आकलन होने के बावजूद मैनेजमेंट ठीक से नहीं किया गया. जिसका नतीजा बिजली व्यवस्था में विफलता और प्रदेश में बिजली संकट से जूझ रहे प्रदेशवासियों की परेशानी के रूप में सामने आया. मौजूदा समय में प्रदेश में विद्युत उत्पादन निगम की चार यूनिट्स ठप पड़े हैं. लेकिन जिम्मेदार अफसरों की जवाबदेही अब तक तय नहीं की जा सकी है.

इस बिजली कटौती के तहत शहरों और गांवों में सुबह, जबकि औद्योगिक इलाकों में शाम को कटौती करने की बात कही गई है. वहीं, औद्योगिक क्षेत्रों में 125 केवीए से ज्यादा लोड वाले उद्योग शामिल हैं. जिन्हें 3 घंटे तक निर्धारित क्षमता से 50 फीसदी कम लोड पर इकाई संचालित करनी होगी. पावर मैनेजमेंट फेल होने के बाद ऊर्जा विकास निगम ने (Energy Development Corporation failed) कटौती का शेड्यूल जारी किया था. हालांकि, इस कटौती से संभागीय मुख्यालयों को बाहर रखा गया है. उक्त विषय पर ऊर्जा विकास निगम की ओर से कहा गया कि रबी के सीजन में खेती की वजह से डिमांड में अचानक वृद्धि हो गई है. जिसके कारण नए सिरे से शेड्यूल जारी किए गए. बताया गया कि 5 हजार से अधिक आबादी वाले गांव में सुबह 6:30 से 7:30 तक बजे और सभी औद्योगिक इकाइयों वाले क्षेत्र, जहां 125 केवीए से ज्यादा लोड होंगे, वहां शाम को 5 बजे से 8 बजे तक कटौती की होगी.

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बड़े उद्योगों के उत्पादन पर पड़ेगा असर - मैनेजमेंट की चूक की वजह से बिजली कटौती के बाद प्रदेश में लगभग 14 हजार 184 बड़ी औद्योगिक इकाइयों (Power Crisis in Rajasthan) पर इसका सीधा असर देखने को मिलेगा. जिनमें सीमेंट, टेक्सटाइल और अन्य बड़े उद्योग शामिल है. जाहिर है कि जयपुर डिस्कॉम के तहत करीब 5 हजार 423 औद्योगिक इकाइयों को इसका नुकसान भुगतना पड़ेगा. वहीं, जोधपुर डिस्कॉम में 3 हजार 169 और अजमेर डिस्कॉम 5 हजार 593 औद्योगिक इकाइयां इस कटौती के दायरे में आएगी.

बता दें कि प्रदेश में ऊर्जा विकास निगम की जिम्मेदारी है कि वह बिजली की डिमांड का आकलन करने के बाद इसकी उपलब्धता को सुनिश्चित करें. लेकिन मौजूदा वक्त में आकलन किए जाने के बाद भी बिजली की उपलब्धता में निगम फेल रहा है. विद्युत उत्पादन निगम से करीब 5000 मेगावाट बिजली मिलने का आकलन किया गया था, लेकिन औसतन 4440 मेगावाट बिजली ही मिल रही है. इस बीच चार यूनिट बंद होने के बाद ये आकलन सुनिश्चित नहीं किया जा सका. प्राप्त जानकारी के मुताबिक दूसरी कंपनियों के साथ अनुबंध से 6000 मेगावाट बिजली मिलनी थी. लेकिन इसमें भी लगातार उतार-चढ़ाव की स्थिति बनी हुई है.

इधर, अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग प्रक्रिया के तहत उत्तर प्रदेश की बिजली वितरण कंपनियों से 15 मेगावाट तक बिजली ली जा रही है, जो मौजूदा डिमांड के हिसाब से काफी नहीं है. साथ ही सोलर पावर प्लांट से भी उम्मीद के मुताबिक बिजली नहीं मिल पा रही है. राज्य में विद्युत उत्पादन निगम की 7580 मेगावाट की 23 यूनिट है, जिनमें से चार यूनिट से (Power cut declared in Rajasthan) गुरुवार शाम तक बिजली का उत्पादन बंद रहा. वहीं, सूरतगढ़ पावर प्लांट की 250-250 मेगा वाट यूनिट की दो इकाइयां और 660 मेगावाट की एक यूनिट बंद है तो कोटा थर्मल पावर प्लांट की 195 मेगावाट की यूनिट भी रखरखाव के कारण फिलहाल बंद पड़ी है.

ऊर्जा विकास निगम का आकलन - राजस्थान में ऊर्जा विकास निगम का पूर्व अनुमान था कि रबी के सीजन में डिमांड बढ़ने के बाद करीब 17000 मेगावॉट तक यह मांग पहुंच जाएगी. लेकिन निगम ने इसके लिए अतिरिक्त बिजली की व्यवस्था नहीं की. इसी मौसम में पिछले साल सुबह 6:00 से 8:30 के बीच लोड करीब 11500 मेगा वॉट रहा था. इस साल बढ़कर 12500 मेगावॉट तक पहुंच गया. लेकिन निगम को इस बात का अंदाजा नहीं रहा. ये वो वक्त है जब न तो सोलर एनर्जी मिलती है और न ही एक्सचेंज रेट में सस्ती बिजली की उपलब्धता रहती है. ऐसे में सीधा-सीधा एक हजार मेगावाट तक बिजली की कमी आ जाती है. इसका खामियाजा छोटे शहरों और गांवों को घोषित रूप से बिजली कटौती के रूप में भुगतना पड़ा. जाहिर है कि ऐसे में सरकार जिम्मेदार अफसरों की लापरवाही का नुकसान आम आदमी को होने वाली परेशानी के रूप में पेश कर रही है.

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