जयपुर. रहीम और रसखान की बात आज के दौर की नहीं है पर हारमोनियम पर कृष्ण की गाथा को गाते रमजान खान को देखकर कोई यही मानेगा की यह आज के दौर में मजहब और जात पात से परे एक कृष्ण भक्तों का अंदाज भी हो सकता है. बगरू कस्बे के रमजान खान संस्कृत में स्नातक हैं और उनका बेटा फिरोज भी संस्कृत में पीएचडी करने के बाद बनारस के हिंदू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर पद पर नियुक्ति प्राप्त कर चुके हैं. हालांकि बीएचयू में फिरोज की नियुक्ति का विरोध हो रहा है. लेकिन इसके बाद भी पिता रमजान खान और उनका अंदाज आज भी जस का तस है.
परिजन कहते हैं कि जिस दिन रमजान खान के परिवार में उनके मंजिलें बेटे फिरोज की सरकारी नौकरी लगी थी उस शाम रमजान खान ने अपने भजनों से श्री कृष्ण को रिझाने की कोशिश की. और जिस शाम ये खबर लगी कि फिरोज का नौकरी वाली जगह पर विरोध होने लगा है तो फिर रमजान उसी कृष्ण के आसरे हो गए.
बगरू कस्बे के लोगों के मुताबिक रमजान खान एक गौ भक्त है जो रोजाना कस्बे से करीब 2 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद रामदेव गौशाला जाते हैं और गायों की सेवा के साथ-साथ मंदिर में आरती के वक्त भजन कीर्तन भी करते हैं. बगरू की रामदेव गौशाला का हर शख्स रमजान खान की भजनों का मुरीद है गौशाला प्रबंधक बाबूलाल के मुताबिक तीन पीढ़ी से रमजान खान का परिवार मंदिर में सेवा कीर्तन और गौशाला से अपना जुड़ाव रखे हुए हैं. वक्त मिलने पर फिरोज भी अपने पिता को हारमोनियम पर संगत करते थे.
कहा जाता है कि फिरोज़ के दादा यानी रमजान खान के पिता भी गोभक्त थे. यूं ही भजन गाया करते थे इसके बाद रमजान खान और अब उनके तीनों बेटे भी इस कृष्ण भक्ति की बयार में बहते देख रहे हैं. गौशाला के लोग इस बात से भी परेशान है कि उनके बीच रचे बसे रमजान और फिरोज को आखिर क्यों मजहब के रंग में डालकर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में नौकरी से रोका जा रहा है.
जबकि फिरोज खान और रमजान खान का परिवार ना सिर्फ बगरू बल्कि पूरे देश में गंगा जमुनी तहजीब की जीती जागती मिसाल है. लेकिन अब रमजान और उनका परिवार लोगों के सवालों से परेशान हैं. आलम यह है कि अब घर के दरवाजे भी बंद दिखते हैं, मोबाइल बाद है ताकि बाहर के शोर से शांति में सांस ले सकें. याकिनन किसी ने क्या खूब कहा है कि इस देश को हिन्दू ना मुसलमान चाहिए, हर मजहब जिसको प्यारा वो इंसान चाहिए.