जयपुर. प्रदेश में लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों का उल्लंघन होने और राजकीय विश्वविद्यालयों में न्यू एजुकेशन पॉलिसी के तहत सेमेस्टर सिस्टम लागू करने में हो रही असुविधा का हवाला देते हुए छात्र संघ चुनाव पर रोक लगा दी गई. इसके खिलाफ महज 44 घंटे में राजस्थान विश्वविद्यालय के अंदर और बाहर करीब छह बार छात्र नेता अपना विरोध दर्ज करा चुके हैं. इस क्रम में भूख हड़ताल पर बैठे एनएसयूआई और निर्दलीय छात्र नेताओं ने अपने समर्थकों के साथ सोमवार शाम विवेकानंद पार्क से विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार तक दंडवत मार्च किया.
भूख हड़ताल पर बैठे एनएसयूआई और निर्दलीय छात्र नेताओं से अब तक प्रशासन और सरकार की ओर से वार्ता नहीं की गई है. ऐसे में सरकार का ध्यान आकर्षित कराने के लिए छात्र नेताओं ने दंडवत मार्च किया. इस दौरान एनएसयूआई के छात्रों ने कांग्रेस सरकार और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ जमकर नारेबाजी की. इससे पहले छात्र भगत सिंह, स्वामी विवेकानंद, भीमराव अंबेडकर और महात्मा गांधी की तस्वीर लेकर भूख हड़ताल पर बैठे रहे.
यहां एनएसयूआई के छात्र नेताओं ने सवाल उठाया कि प्रदेश के मुखिया खुद छात्र राजनीति से निकले हैं फिर छात्रों की राजनीति को दबाने का प्रयास क्यों कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों को लागू कराना प्रशासन की जिम्मेदारी है, यदि कोई छात्र उनकी धज्जियां उड़ा रहा है, तो प्रशासन को कार्रवाई करनी चाहिए. लेकिन छात्रसंघ चुनाव को बैन करना उचित नहीं. वहीं एक अन्य छात्र नेता ने कहा कि यदि छात्रसंघ की कुर्सियां खाली रहेंगी, तो वर्ष भर छात्रों से जुड़े मुद्दों को कौन उठाएगा. इससे विश्वविद्यालय प्रशासन की मनमानी भी बढ़ेगी.
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वहीं एक छात्र नेता ने यह तक कह दिया कि प्रदेशभर की यूनिवर्सिटीज में एनएसयूआई का पिछले साल भी सूपड़ा साफ हुआ था और इस बार भी यही स्थिति बन रही है. ऐसे में सरकार विधानसभा चुनाव से पहले कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती. इस वजह से उन्होंने छात्रसंघ चुनाव पर रोक लगाई है. इससे पहले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने कुलपति सचिवालय पहुंच अपना विरोध दर्ज कराया.
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वहीं जब राज्य सरकार ने छात्रसंघ चुनाव पर रोक लगाने का आदेश जारी किया, उसके ठीक 1 घंटे बाद शनिवार देर रात से ही छात्रों ने विरोध दर्ज कराते हुए सीएम का पुतला भी फूंका था. उधर, राज्य सरकार की ओर से छात्रसंघ चुनाव को लेकर हाईकोर्ट में केविएट भी दायर की गई है. ताकि यदि कोई छात्र नेता या छात्र संघ सरकार के आदेश को कोर्ट में चुनौती देगा, तो राज्य सरकार का भी पक्ष सुना जाएगा. इससे लगता है कि इस वर्ष छात्र नेताओं की तमाम जद्दोजहद के बाद भी राज्य सरकार छात्रसंघ चुनाव कराने के बिल्कुल पक्ष में नहीं है.