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गुमशुदगी की रिपोर्ट में देरी साबित हो रही जानलेवा, जानें कैसे 'इंतजार' पड़ रहा भारी

किसी परिजन के लापता होने पर तुरंत पुलिस को जानकारी देने की बजाए अपने स्तर पर उसे तलाश करने के प्रयास कभी-कभी जानलेवा साबित हो जाते हैं. खास तौर पर तब जब लापता व्यक्ति किसी अपराधी के (Delay in missing report is proving fatal) चंगुल में फंसा हो.

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Published : Jun 2, 2023, 10:46 PM IST

कैलाशचंद विश्नोई...

जयपुर. किसी व्यक्ति के लापता होने या फिर अपहरण होने पर पुलिस को देर से सूचना देना कई बार इतना भारी पड़ जाता है कि इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ जाती है. खास तौर पर तब जब गुमशुदा या लापता व्यक्ति किसी आपराधिक प्रवृत्ति के व्यक्ति के चंगुल में फंसा हो. पिछले कुछ दिनों में राजधानी जयपुर में हुई दो वारदातों की पड़ताल में यह बात सामने आई है कि किसी व्यक्ति के लापता होने या उसका अपहरण होने पर पुलिस को देरी से जानकारी देने या मामला दर्ज करवाने में देरी होने पर जान पर बन आती है. इन दोनों मामलों में परिजनों की ओर से थाने में मामला दर्ज करवाने से पहले ही बदमाशों ने हत्या की वारदात को अंजाम दे दिया. हालांकि, बाद में अपराधी पकड़े गए, लेकिन परिजनों के पास मलाल करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा.

अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (प्रथम) कैलाशचंद विश्नोई का कहना है कि आठ दिन पहले लापता 12 साल के बच्चे की हत्या और कुछ दिन पहले हनुमान मीना की हत्या की वारदात में बदमाशों को अपराध करने के लिए समय मिल गया. क्योंकि परिजनों ने थाने पर सूचना देने और मामला दर्ज करवाने में देरी कर दी. तब तक बदमाशों ने हत्या की वारदात को अंजाम दे दिया.

इसे भी पढ़ें - 30 लाख रंगदारी नहीं देने पर दी, गोली मारने की धमकी, मुखा गैंग सरगना सहित 5 गिरफ्तार

केस 1- हनुमान का फोन बंद आया तो भी रात तक किया इंतजार - पुलिस के अनुसार, सांगानेर इलाके में 22 मई को सुबह 10 बजे हनुमान मीना घर से ऑफिस के लिए निकलता है. दिन में उसका मोबाइल बंद था. इसकी जानकारी परिजनों को थी लेकिन उन्होंने रात 10 बजे तक इंतजार किया और उसके बाद थाने पहुंच कर गुमशुदगी दर्ज करवाई. इसके बाद उनके पास फिरौती के लिए बदमाशों ने वीडियो कॉल किया तो 23 मई को अपहरण का मुकदमा दर्ज करवाया था. लेकिन बदमाशों की गिरफ्तारी के बाद सामने आया कि 22 मई को रात 9:30 बजे से पहले ही उन्होंने हनुमान मीना की हत्या कर दी थी. हत्या के बाद शव को कट्टे में डालकर द्रव्यवती नदी में फेंक दिया.

केस 2- 12 साल के बच्चे की गुमशुदगी में भी देरी - पुलिस के मुताबिक, 24 मई को दोपहर में मोती डूंगरी रोड इलाके से 12 साल का एक बच्चा लापता हो गया था. लेकिन परिजनों ने लालकोठी थाने में 25 मई को रिपोर्ट दी. इसके बाद पुलिस ने बच्चे की तलाश शुरू की लेकिन उसका कोई सुराग नहीं मिला. आखिरकार 8 दिन बाद सामने आया कि बच्चे की चचेरे भाई ने ही दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी. पड़ताल में सामने आया है कि 24 मई को आरोपी चचेरा भाई उसे बहला-फुसलाकर खो नागोरियान इलाके में आयशा कॉलोनी में अपनी बहन के खाली मकान में ले गया. जहां दुराचार के बाद उसकी रस्सी से गला घोंटकर हत्या कर दी.

गुमशुदगी को लेकर यह है सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन - अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (प्रथम) कैलाशचंद विश्नोई का कहना है कि यदि पुलिस के पास समय पर जानकारी पहुंच जाए तो पुलिस प्रयास कर सकती है कि अपराधी अपहृत की हत्या नहीं कर पाए. पुलिस द्वारा मुकदमा दर्ज नहीं करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देश हैं कि 18 साल से कम उम्र के बच्चे या बच्ची की गुमशुदगी पर सीधे अपहरण का मुकदमा दर्ज किया जाए और इसकी पालना भी की जाती है. साथ ही किसी भी व्यक्ति के लापता होने या गुमशुदगी की सूचना मिलने पर जिलेभर में त्वरित मैसेज भेजकर अलग-अलग माध्यमों से तलाश शुरू की जाती है. ऐसे में समय पर पुलिस को जानकारी मिले और पुलिस तलाश में जुटे तो संभव है अपराधी वारदात को अंजाम नहीं दे पाए.

कैलाशचंद विश्नोई...

जयपुर. किसी व्यक्ति के लापता होने या फिर अपहरण होने पर पुलिस को देर से सूचना देना कई बार इतना भारी पड़ जाता है कि इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ जाती है. खास तौर पर तब जब गुमशुदा या लापता व्यक्ति किसी आपराधिक प्रवृत्ति के व्यक्ति के चंगुल में फंसा हो. पिछले कुछ दिनों में राजधानी जयपुर में हुई दो वारदातों की पड़ताल में यह बात सामने आई है कि किसी व्यक्ति के लापता होने या उसका अपहरण होने पर पुलिस को देरी से जानकारी देने या मामला दर्ज करवाने में देरी होने पर जान पर बन आती है. इन दोनों मामलों में परिजनों की ओर से थाने में मामला दर्ज करवाने से पहले ही बदमाशों ने हत्या की वारदात को अंजाम दे दिया. हालांकि, बाद में अपराधी पकड़े गए, लेकिन परिजनों के पास मलाल करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा.

अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (प्रथम) कैलाशचंद विश्नोई का कहना है कि आठ दिन पहले लापता 12 साल के बच्चे की हत्या और कुछ दिन पहले हनुमान मीना की हत्या की वारदात में बदमाशों को अपराध करने के लिए समय मिल गया. क्योंकि परिजनों ने थाने पर सूचना देने और मामला दर्ज करवाने में देरी कर दी. तब तक बदमाशों ने हत्या की वारदात को अंजाम दे दिया.

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केस 1- हनुमान का फोन बंद आया तो भी रात तक किया इंतजार - पुलिस के अनुसार, सांगानेर इलाके में 22 मई को सुबह 10 बजे हनुमान मीना घर से ऑफिस के लिए निकलता है. दिन में उसका मोबाइल बंद था. इसकी जानकारी परिजनों को थी लेकिन उन्होंने रात 10 बजे तक इंतजार किया और उसके बाद थाने पहुंच कर गुमशुदगी दर्ज करवाई. इसके बाद उनके पास फिरौती के लिए बदमाशों ने वीडियो कॉल किया तो 23 मई को अपहरण का मुकदमा दर्ज करवाया था. लेकिन बदमाशों की गिरफ्तारी के बाद सामने आया कि 22 मई को रात 9:30 बजे से पहले ही उन्होंने हनुमान मीना की हत्या कर दी थी. हत्या के बाद शव को कट्टे में डालकर द्रव्यवती नदी में फेंक दिया.

केस 2- 12 साल के बच्चे की गुमशुदगी में भी देरी - पुलिस के मुताबिक, 24 मई को दोपहर में मोती डूंगरी रोड इलाके से 12 साल का एक बच्चा लापता हो गया था. लेकिन परिजनों ने लालकोठी थाने में 25 मई को रिपोर्ट दी. इसके बाद पुलिस ने बच्चे की तलाश शुरू की लेकिन उसका कोई सुराग नहीं मिला. आखिरकार 8 दिन बाद सामने आया कि बच्चे की चचेरे भाई ने ही दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी. पड़ताल में सामने आया है कि 24 मई को आरोपी चचेरा भाई उसे बहला-फुसलाकर खो नागोरियान इलाके में आयशा कॉलोनी में अपनी बहन के खाली मकान में ले गया. जहां दुराचार के बाद उसकी रस्सी से गला घोंटकर हत्या कर दी.

गुमशुदगी को लेकर यह है सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन - अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (प्रथम) कैलाशचंद विश्नोई का कहना है कि यदि पुलिस के पास समय पर जानकारी पहुंच जाए तो पुलिस प्रयास कर सकती है कि अपराधी अपहृत की हत्या नहीं कर पाए. पुलिस द्वारा मुकदमा दर्ज नहीं करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देश हैं कि 18 साल से कम उम्र के बच्चे या बच्ची की गुमशुदगी पर सीधे अपहरण का मुकदमा दर्ज किया जाए और इसकी पालना भी की जाती है. साथ ही किसी भी व्यक्ति के लापता होने या गुमशुदगी की सूचना मिलने पर जिलेभर में त्वरित मैसेज भेजकर अलग-अलग माध्यमों से तलाश शुरू की जाती है. ऐसे में समय पर पुलिस को जानकारी मिले और पुलिस तलाश में जुटे तो संभव है अपराधी वारदात को अंजाम नहीं दे पाए.

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