जयपुर. एसीबी मामलों की विशेष अदालत महानगर प्रथम ने योजना भवन के बेसमेंट में रखी अलमारी से करीब 2.31 करोड़ रुपए नकद व करीब 1 किलो सोने के बिस्किट बरामद करने से जुड़े मामले में डीओआईटी के निलंबित संयुक्त निदेशक वेदप्रकाश की जमानत अर्जी को खारिज कर दिया है.
अदालत ने कहा कि आरोपी पर गंभीर आरोप हैं और मामले में अनुसंधान लंबित है. ऐसे में आरोपी को जमानत का लाभ नहीं दे सकते. आरोपी की ओर से जमानत अर्जी में कहा गया कि अलमारी में रखी नगदी व सोने से उसका कोई संबंध नहीं है. अलमारी खोलने के लिए उससे चाबी नहीं ली, बल्कि ताला तोड़ा है. कोई भी अफसर इतनी राशि ऑफिस में क्यों रखेगा. उसे मामले में झूठा फंसाया है. इसलिए उसे जमानत दी जाए.
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वहीं एसीबी ने जमानत देने का विरोध करते हुए कहा कि आरोपी की अलमारी से बड़ी राशि बरामद हुई है और प्रकरण में अनुसंधान लंबित है. एसीबी पता लगा रही है कि आरोपी ने इतनी बड़ी रकम रिश्वत के तौर पर किस-किससे ली थी और इसमें उसके साथ कौन अफसर व कर्मचारी शामिल रहे हैं. वहीं एसीबी टेंडर देने वाली कंपनियों के प्रतिनिधियों से भी पूछताछ कर रही है. ऐसे में आरोपी को जमानत नहीं दी जाए. कोर्ट ने दोनों पक्षों की बहस सुनकर आरोपी की जमानत अर्जी खारिज कर दी.
रिव्यू डीपीसी कर अपीलार्थी को समस्त परिलाभ देने को कहा: राजस्थान सिविल सेवा अपीलीय अधिकरण ने रेंजर की वार्षिक वेतन वृद्धि रोकने के आधार पर पदोन्नति से वंचित करने के मामले में कहा है कि कर्मचारी के खिलाफ दंडादेश का प्रभाव आरोप पत्र जारी होने की तिथि से माना जाता है. वहीं पदोन्नति के लिए रिक्ति वर्ष से पूर्ववर्ती सात साल का सेवा रिकॉर्ड देखा जाता है. इसके साथ ही अधिकरण ने आदेश दिए हैं कि वर्ष 2017-18 की एसीएफ पद की पदोन्नति के लिए रिव्यू डीपीसी कर अपीलार्थी को पदोन्नत करने पर विचार किया जाए. अधिकरण ने तीन माह में रिव्यू डीपीसी कर अपीलार्थी को समस्त परिलाभ देने को कहा है. अधिकरण ने यह आदेश अनिल कुमार गुप्ता की अपील पर सुनवाई करते हुए दिए.
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अपील में कहा गया कि अपीलार्थी को वर्ष 1997 में रेंजर ग्रेड-1 के पद पर नियुक्त किया गया था। वहीं सितंबर 2002 में उसे आरोप पत्र देकर उसके आधार पर जून, 2015 में दो वर्ष की वेतन वृद्धि रोकने की सजा दी गई। इसके विरुद्ध राज्यपाल के समक्ष अपील करने पर नवंबर 2017 में दंड कम कर एक साल की वेतन वृद्धि संचयी प्रभाव से रोकने के आदेश दिए गए. अपील में कहा गया कि वर्ष 2017-18 की पदोन्नति के लिए एसीएफ पद 46 पद रिक्त थे.
वहीं अपीलार्थी के खिलाफ दंडादेश के कारण विभागीय पदोन्नति समिति ने सिफारिश नहीं की. जबकि कार्मिक विभाग के 5 अक्टूबर 2018 के परिपत्र के तहत दंडादेश का प्रभाव आरोप पत्र जारी होने के दिन से प्रभावी माना जाता है और पदोन्नति के संबंध में कर्मचारी के दंडादेश का प्रभाव 7 साल तक ही रहता है. दोनों पक्षों को सुनकर अधिकरण ने माना कि दंडादेश का प्रभाव आरोप पत्र जारी होने की तिथि से माना जाता है और पदोन्नति के लिए पूर्ववर्ती 7 साल का सेवा रिकॉर्ड ही देखा जाता है. इसलिए रिव्यू डीपीसी कर अपीलार्थी को पदोन्नत करने के लिए विचार किया जाए और उसे समस्त परिलाभ दिए जाए.