जयपुर. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बीते बुधवार को केशवानंद भारती मामले में उस ऐतिहासिक फैसले पर सवाल उठाया, जिसने देश में 'संविधान के मूलभूत ढांचे का सिद्धांत' दिया था. धनखड़ ने बुनियादी ढांचे के सिद्धांत पर सवाल उठाया और संकेत दिया कि न्यायपालिका को अपनी सीमाएं पता होनी चाहिए. धनखड़ के इस बयान पर कांग्रेस नेताओं की तीखी प्रतिक्रिया आ रही हैं. इस पर प्रदेश के सीएम अशोक गहलोत ने कहा कि उपराष्ट्रपति का इस तरह से न्यायपालिका पर टिप्पणी करना उचित प्रतीत नहीं होता है.
न्यायपालिका पर टिपण्णी अनुचित: उपराष्ट्रपति जगदीप घनखड़ की कमेंट्स पर सीएम गहलोत ने ट्वीट कर प्रतिक्रिया दी है. सीएम ने लिखा कि जयपुर में आयोजित अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की ओर से न्यायपालिका को लेकर की गईं टिप्पणियों से देश में एक अनावश्यक बहस छिड़ गई है. आज के इस दौर में ऐसी टिप्पणियां करना उचित प्रतीत नहीं होता है. न्यायपालिका और विधायिका दोनों लोकतंत्र के मजबूत स्तंभ हैं और दोनों ही अत्यंत अहम हैं.
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जयपुर में आयोजित अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन में उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनकड़ द्वारा न्यायपालिका को लेकर की गईं टिप्पणियों से देश में एक अनावश्यक बहस छिड़ गई है।
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उपराष्ट्रपति ने की ये टिप्पणी: बीते बुधवार को राजस्थान विधानसभा में आयोजित 83वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन को संबोधित करने के दौरान उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका को लेकर टिप्पणी की थी. उन्होंने केशवानंद भारती मामले में उस ऐतिहासिक फैसले पर सवाल उठाया, जिसने देश में 'संविधान के मूलभूत ढांचे का सिद्धांत' दिया था. धनखड़ ने बुनियादी ढांचे के सिद्धांत पर सवाल उठाया और संकेत दिया कि न्यायपालिका को अपनी सीमाएं पता होनी चाहिए.
उपराष्ट्रपति ने कहा था, ''संविधान में संशोधन का संसद का अधिकार क्या किसी और संस्था पर निर्भर कर सकता है? क्या भारत के संविधान में कोई नया 'थियेटर' (संस्था) है, जो कहेगा कि संसद ने जो कानून बनाया है उस पर हमारी मुहर लगेगी, तभी कानून होगा. 1973 में एक बहुत गलत परंपरा पड़ी. 1973 में केशवानंद भारती के मामले में उच्चतम न्यायालय ने मूलभूत ढांचे का विचार रखा कि संसद, संविधान में संशोधन कर सकती है, लेकिन मूलभूत ढांचे में नहीं.''
उन्होंने कहा था, ''यदि संसद के बनाए गए कानून को किसी भी आधार पर कोई भी संस्था अमान्य करती है तो यह प्रजातंत्र के लिए ठीक नहीं होगा. बल्कि यह कहना मुश्किल होगा क्या हम लोकतांत्रिक देश हैं.'' इसके साथ ही उन्होंने उच्चतम न्यायालय की ओर से 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम को निरस्त किए जाने पर कहा कि ''दुनिया में ऐसा कहीं नहीं हुआ है.'' उपराष्ट्रपति ने कहा कि लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए संसदीय संप्रभुता और स्वायत्तता सर्वोपरि है और कार्यपालिका या न्यायपालिका को इससे समझौता करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. वहीं, उपराष्ट्रपति के इस बयान के बाद न केवल कांग्रेस के नेता, बल्कि न्यायपालिका से जुड़े लोग भी तीखी प्रतिक्रिया दे रहे हैं.