जयपुर. राजस्थान में लगातार स्टूडेंट सुसाइड के बढ़ते मामलों के बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने चिंता जताई है. सीएम गहलोत ने शुक्रवार को मुख्यमंत्री निवास पर आपात बैठक बुलाकर स्टूडेंट सुसाइड को किस तरह से रोका जाए, इसको लेकर चर्चा की. इस दौरान सीएम गहलोत ने एक कमेटी का गठन भी किया, जो सभी वर्गों से सुझाव लेकर अपनी रिपोर्ट 15 दिन में सरकार को सौंपेगी. बैठक के दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कोचिंग संचालकों को जमकर निशाने पर लिया.
15 दिन में देगी कमेटी रिपोर्ट: प्रदेश में लगातार हो रहे स्टूडेंट सुसाइड को किस तरह से रोका जाए, इसको लेकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक कमेटी का गठन किया है. यह कमेटी 15 दिन में अलग-अलग वर्ग के लोगों से सुझाव लेकर अपनी रिपोर्ट सरकार को देगी. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि आज की बैठक में काफी लोग जुड़े हुए थे, जिसमें एक्सपर्ट भी थे और कोचिंग संचालक भी.
ऐसे में सभी के सुझावों को शामिल करके किस तरह से एक भी बच्चों की जान नहीं जाए. इसको लेकर एक रिपोर्ट तैयार की जाए. यह कमेटी 15 दिन में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपे ताकि इसके आधार पर आगे की गाइडलाइन तैयार की जा सके. मुख्यमंत्री ने कहा कि एक भी बच्चे की मौत होती है, तो उस पर क्या आघात होता है. उसको समझना होगा. मुख्यमंत्री ने कहा कि आईआईटी का पहले जो जमाना था, अब वो नहीं रहा. अब ट्रेंड बदल रहा है. आईआईटी करने के बाद कंपनी बना लेते हैं और वह पॉलिटिकल सर्वे का कार्य करते हैं, राजनेताओं के चक्कर काटते हैं, चुनाव जिताने और हारने के लिए जो कंपनियां बनी हुई हैं, वे आईआईटी के लोगों की टीम है.
डमी एडमिशन पर भड़के गहलोत: डमी एडमिशन को लेकर मुख्यमंत्री ने कोचिंग संचालकों को जमकर खरी-खोटी सुनाई. उन्होंने कहा कि शिक्षा को पैसा कमाने का एक जरिया बना लिया गया है. इसे एक बड़ी इंडस्ट्री के रूप में खड़ा किया गया है. गहलोत ने कहा कि अखबारों में आए दिन फ्रंट पर जो बड़े-बड़े विज्ञापन देखे जाते हैं. इस तरह के विज्ञापन तो पॉलिटिकल पार्टियां भी नहीं देती हैं. अखबारों के फ्रंट पेज पर कितना महंगा विज्ञापन होता है. यह सबको पता है, आखिर कोचिंग संचालकों के पास इतना पैसा कहां से आ रहा है? और इसका भी हिसाब-किताब होना चाहिए. गहलोत ने कहा कि अगर कोचिंग संचालक पैसे कमा रहे हैं, तो उनको अपनी जवाबदेही भी समझनी होगी.
सीएम गहलोत ने कहा कि कोचिंग संचालक अपने लाभ के लिए बच्चों के डमी एडमिशन स्कूलों में करवा रहे हैं, यह क्राइम है. इसमें पेरेंट्स की भी गलती है. उन्हें भी इस बात को समझना होगा कि बच्चा स्कूल और कोचिंग दोनों जगह की पढ़ाई का बोझ कैसे उठाएगा. सीएम गहलोत ने कहा कि कोचिंग क्लासेस वालों की गलती है कि वह डमी नाम पर बच्चों को कोचिंग करवा रहे हैं. बच्चा स्कूल नहीं जा रहा है यह कितना गलत है. बेवजह बच्चों को दबाव में नहीं डाला जा सकता. इन कमियों को कैसे दूर किया जाए. इसको लेकर भी एक सिस्टम बनाने की जरूरत है.
कोचिंग संस्थान कमर्शियल इंटरेस्ट को दूर रखें: सीएस उषा शर्मा ने कहा कि पेरेंट्स यह सोचते हैं कि कोटा भेजने से इंजीनियर और डॉक्टर बन जाएगा. वह भूल जाते हैं कि कोटा में बच्चों की कोई लाइफ नहीं है. वह 15 घंटे तक पिसता है. महज 13 से 15 साल की उम्र के बच्चे से अपेक्षा की जाती है. परिवार की इमोशन वह नहीं देख पाता है. टॉपर बच्चों के बैच अलग होने से भी प्रेशर उस पर बनता है. उसे नंबर कम या रैंकिंग नीचे जाने पर सुसाइड सबसे आसान रास्ता लगता है.कोचिंग संस्थानों को अपने कमर्शियल इंटरेस्ट्स को दूर रखना होगा.
आईआईटी एग्जाम पेपर का लेवल काफी हाई: एलेन कोचिंग संस्थान के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट सीआर चौधरी ने कहा कि आईआईटी की परीक्षा का लेवल काफी हाई होता है. बड़े स्कूलों को छोड़ दिया जाए तो अन्य स्कूल के कई टीचर इस पेपर को सॉल्व भी नहीं कर सकते हैं. इसीलिए कोचिंग की पैरेलल व्यवस्था है. इसीलिए कमजोर बच्चों को ऐसी परीक्षाओं में सफलता दिलाने का ही प्रयास कोचिंग संस्थान करता है.
टीचर्स ध्यान रखें कौन सा बच्चा अवसाद में: मंत्री शांति धारीवाल ने कहा कि कोरोना के बाद वर्ल्ड वाइड सुसाइड के केस बढ़े हैं. कोटा में लगातार हो रहे सुसाइड पर कोचिंग संस्थान को भी ध्यान रखना चाहिए. फैकल्टी को ध्यान रखना चाहिए कि कौनसा बच्चा अवसाद में है. इसके लिए भले ही कोचिंग संस्थान में क्लास का समय बढ़ा दिया जाए. ऐसे बच्चों को आईडेंटिफाई करने के बाद उनकी काउंसलिंग करवा दी जाए. इस संबंध में मां-बाप की भी काउंसलिंग करवाई जाए कि वह बच्चे पर प्रेशर नहीं बनाएं.
बच्चों को कोचिंग संस्थानों में मिले छुट्टियां: आईएएस नवीन जैन ने कहा कि बच्चों को हॉलीडे मिलना चाहिए. ताकि वह रिलेक्स होकर अपने माता-पिता से मिले और उनसे मिलकर अच्छा फील करें. कोचिंग संस्थानों में सघन निरीक्षण होना चाहिए. छोटी-मोटी कंप्लायंस रिपोर्ट बना देने से ही यह समस्या हो रही है.
ऐप के जरिए हो अटेंडेंस के मॉनिटरिंग: मोशन कोचिंग के निदेशक नितिन विजय का कहना है कि सभी कोचिंग संस्थान को बच्चों की अटेंडेंस मॉनिटरिंग का तगड़ा सिस्टम बनाना चाहिए. इसके साथ ही इन एप्स को जब भी बच्चा खुलेगा, तब उसके मूड के बारे में भी जानकारी उनसे मांगे. अगर वह अपना मूड स्ट्रेस वाला बताता है, तब ऐसे बच्चों की जानकारी भी संस्थाओं के पास पहुंच जाएगी और इसका पूरा डाटा भी बनेगा. ऐसे बच्चों की काउंसलिंग भी की जा सकेगी.
एडमिशन के पहले बने कट ऑफ का क्राइटेरिया: डीजीपी उमेश मिश्रा ने इस दौरान कहा कि अधिकांश आत्महत्या करने वाले बच्चों ने टॉप नहीं करने के चलते की. कोचिंग संस्थान में कोई स्क्रीनिंग या टेस्ट स्थापित करके एडमिशन भी नहीं दिया था. ज्यादातर टेस्ट दे नहीं रहे थे या फिर टेस्ट में पुअर परफॉर्मेंस टेस्ट में दे रहे थे. इसलिए स्क्रीनिंग टेस्ट होना चाहिए.