जयपुर. राजस्थान की राजनीति में साल 1998 यानी करीब ढाई दशक से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के हाथ में ही सत्ता रही है. दोनों नेताओं ने बारी-बारी से राज्य की सियासत में अपनी भागीदारी निभाई है. इस तरह से 1998, 2008 और 2018 में गहलोत सीएम पद पर काबिज हुए तो वहीं 2003 और 2013 में वसुंधरा राजे ने सूबे के मुखिया के रूप में गद्दी संभाली. राजस्थान में राजे और गहलोत को जमीनी पकड़ वाले नेताओं में शुमार किया जाता है. माना जाता है कि दोनों ही दलों को आज की तारीख में इन नेताओं की जरूरत है. सत्ता से लेकर संगठन में वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत गहरी समझ रखते हैं, लेकिन मौजूदा दौर में विपक्षी दलों की अदावत से ज्यादा राजे और गहलोत के संबंधों को लेकर सियासी गलियारों में चर्चा तेज है.
रविवार को धौलपुर में मंच से अशोक गहलोत ने जो कुछ कहा, उसके प्रतिकार के बावजूद वसुंधरा राजे को लेकर मौजूदा मुख्यमंत्री की दोस्ती पर एक दफा फिर चर्चा लाजमी है. साल 2013 में जब मुख्यमंत्री के रूप में वसुंधरा राजे ने गद्दी संभालने से पहले शपथ ली थी तो विधानसभा के आगे जनपथ पर हुए शपथ ग्रहण समारोह में शिरकत करने के लिए अशोक गहलोत पहुंचे थे. वहीं, जब अल्बर्ट हॉल पर हुए शपथ ग्रहण समारोह में गहलोत सीएम पद के लिए शपथ ले रहे थे तो उनको बधाई देने के लिए जाने वालों की लिस्ट में वसुंधरा राजे का नाम भी शामिल रहा.
2020 के राजनीतिक संकट में सांठगांठ का किस्सा - राजस्थान की सत्ताधारी कांग्रेस सरकार के कुनबे में साल 2020 में बगावत के बाद संकट गहरा गया था. पायलट समर्थक नेताओं ने मुखालफत की, लेकिन नाकामयाब साबित हुए. ऐसे हालात में गहलोत के वफादारों की फेहरिस्त जब तैयार हुई तो उनमें सत्ताधारी दल के विधायकों के साथ-साथ विपक्ष में बैठी भाजपा के चंद नेताओं के नाम भी शामिल थे. खुद सचिन पायलट ने भी कई दफा इस बारे में इल्जाम लगाए हैं. लेकिन इन आरोपों को हवा तब मिली, जब सीएम गहलोत ने खुलकर अपना साथ देने वाले विधायकों का नाम जगजाहिर किया. भाजपा के कमलधारी परिवार में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल के साथ-साथ वसुंधरा राजे के गढ़ समझे जाने वाले धौलपुर की विधायक शोभारानी कुशवाह को गहलोत ने शुक्रिया कहते हुए अपनी सरकार बचाने वाले नामों में शुमार किया. ऐसे में यह बात तेजी से निकली की दोनों नेता हर सियासी संकट में एक दूसरे के साथ खड़े हैं.
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पायलट ने अपनी ही सरकार को घेरा - हाल ही में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष व राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने जयपुर के शहीद स्मारक पर एक दिन के लिए अनशन किया था. पायलट ने भी वसुंधरा राजे को लेकर जमकर आरोप लगाए थे और अपनी ही पार्टी की सरकार पर सवाल खड़े किए थे. पायलट ने कहा था कि जब कांग्रेस सत्ता पर काबिज हो रही थी तो राजस्थान की जनता से कई वादे किए गए थे. इन वादों में पूर्ववर्ती वसुंधरा सरकार के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार की जांच का मुद्दा भी शामिल था. लेकिन साढ़े 4 साल बीत जाने के बावजूद जांच का काम कितना आगे बढ़ पाया, इसका जवाब कांग्रेस के पास नहीं है.
पायलट ने कहा था कि चुनावी साल में जनता के बीच जाने से पहले पूर्व में किए गए वादों को याद रखा जाना चाहिए. इसके बाद गुजरात के प्रभारी और पूर्व मंत्री रघु शर्मा ने भी पायलट की बात का समर्थन करते हुए कहा था कि कांग्रेस ने चुनावी साल में वसुंधरा राजे सरकार के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर इलेक्शन लड़ा था. ऐसे में सभी को इंतजार है कि कांग्रेस का रुख आज चुनावी मुद्दे पर क्या है. विशेष रूप से खनन घोटाले को लेकर पूर्ववर्ती सरकार पर जमकर आरोप लगे थे. जाहिर है कि वसुंधरा राजे भी जब सत्ता पर काबिज हुई थी तो उन्होंने गहलोत राज्य में भ्रष्टाचार की बात कह कर जांच के लिए एक आयोग का गठन किया था.
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दरअसल, साल 2008 में सत्ता में आने के बाद राज्य सरकार पर 22 हजार करोड़ रुपए के घोटाले का आरोप लगाते हुए गहलोत ने एक जांच आयोग बनाया था. लेकिन गठन में हुई तकनीकी खामी के चलते हाईकोर्ट ने इस आयोग के गठन को ही गलत करार दे दिया और मामला लोकायुक्त तक सीमित रह गया. इसके पहले वसुंधरा राज्य सरकार में गहलोत सरकार में हुए भूमि आवंटन और एंबुलेंस घोटाले को लेकर जांच सीबीआई को सौंपी गई थी. पर किसी भी मामले में आज तक कोई नतीजा नहीं पहुंचा. जुलाई 2020 में जब कांग्रेस सियासी संकट से घिरी हुई थी, तब राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी की नेता और सांसद हनुमान बेनीवाल ने भी राजे गहलोत के बीच सांठगांठ के आरोप लगाए थे. उन्होंने ट्विटर पर कहा था कि दोनों नेता एक दूसरे की मदद कर रहे हैं.
केजरीवाल भी लगा चुके हैं आरोप - इसी साल मार्च में आम आदमी पार्टी ने राजस्थान में अपने चुनावी कैंपेन का आगाज किया था. इस दौरान दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप नेता अरविंद केजरीवाल का जयपुर में एक रोड शो रखा गया. इस रोड शो में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने भी शिरकत की थी. शो के दौरान जनता से मुखातिब हुए केजरीवाल ने सरेआम अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे के एक होने की बात कही थी. केजरीवाल ने कहा था कि दोनों नेता सियासत में अदावत का दिखावा करते हैं, लेकिन असल हकीकत यह है कि दोनों अंदरखाने एक हैं. उन्होंने कहा था कि गहलोत पर थोड़ी आंच आ जाए तो वसुंधरा राजे पूरी भाजपा को लगा देंगी और वसुंधरा पर संकट आ जाए तो गहलोत पूरी कांग्रेस को झोंक देंगे. अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि राजे और गहलोत अलग-अलग दलों में होने के बावजूद एक पार्टी हैं.
गहलोत पर लगा राजे का मददगार बनने का आरोप - जिस तरह से वसुंधरा राजे पर फिलहाल गहलोत के मददगार होने की चर्चा चल रही है. उसी तरह से गहलोत पर भी राजे का साथ देने के आरोप लगते रहे हैं. फिर चाहे मामला मुख्यमंत्री आवास छोड़कर अलग से दो सरकारी बंगलों की जमीन पर वसुंधरा राजे के मौजूदा निवास का ही क्यों ना हो, गौरतलब है कि आधिकारिक रूप से पूर्व मुख्यमंत्री के नाते वसुंधरा राजे सिविल लाइंस के 13 नंबर बंगले में निवास करती हैं. राजे को इस बंगले के आवंटन किए जाने पर मामला कोर्ट तक चला गया था. लेकिन कहा जाता है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की वजह से उनका सरकारी आवास बच गया था.
शुरुआत में हाईकोर्ट ने बंगले के आवंटन की प्रक्रिया को गलत ठहराया था, लेकिन इसके बाद गहलोत सरकार की ओर से कोर्ट में एक शपथ पत्र दायर किया गया. इस शपथ पत्र में कहा गया कि राजे एक वरिष्ठ विधायक हैं और पूर्व में दो बार मुख्यमंत्री रही हैं. इस नाते से उन्हें आवंटित किया गया बंगला गलत नहीं है. बाद में हाईकोर्ट ने इस शपथ पत्र को स्वीकार करते हुए वसुंधरा राजे को राहत दी थी. इसी तरह से 8 मार्च को पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के जन्मदिन के मौके पर आयोजित शक्ति प्रदर्शन के कार्यक्रम में भाजपा की अंदरूनी तकरार के बीच विधानसभा के बजट सत्र के बीच कभी छुट्टी, तो कभी अहम मसलों को टाले जाने के आरोप भी सत्ताधारी दल पर लगते रहे हैं.