जयपुर. राजधानी जयपुर को यहां के किले, महल या हेरिटेज लुक की वजह से ही नहीं, बल्कि मंदिरों की बहुतायत होने की वजह से छोटी काशी के नाम से भी जाना जाता है. इसी छोटी काशी में जहां एक ओर नाहरगढ़ की पहाड़ियों पर बिना सूंड वाले गणेश जी शहर के निगेहबान हैं. तो वहीं परकोटे के सूरजपोल बाजार में भगवान गणेश ने सर्पों का बंधेज धारण किया हुआ है. जयपुर के प्रमुख गणेश मंदिरों पर ईटीवी भारत की ये खास रिपोर्ट...
गढ़ गणेश मंदिर : छोटी काशी का एक ऐसा मंदिर, जहां भगवान गणेश के बाल स्वरूप की प्रतिमा है. नाहरगढ़ की पहाड़ियों पर सवाई जयसिंह द्वितीय ने अश्वमेध यज्ञ करवा कर बिना सूंड वाले भगवान गणेश की प्रतिमा को प्राण प्रतिष्ठित कराया था. इसके बाद जयपुर की विधिवत नींव रखी गई थी. रियासत काल में सिटी पैलेस के इंद्र महल से महाराजा दूरबीन से भगवान गणेश के नियमित दर्शन किया करते थे. खास बात ये है कि मंदिर में पहुंचने के लिए एक पहाड़ी रास्ता और एक सीढ़ियों का रास्ता है. यहां साल के 365 दिन में हर दिन एक सीढ़ी का निर्माण करते हुए 365 सीढ़ियां बनाई गई थी. यहां मंदिर में दो चूहों की प्रतिमा लगी हुई है. मान्यता है कि इन चूहों के कान में इच्छा बताने पर ये बाल गणेश तक उन इच्छाओं को पहुंचाते हैं.
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मोती डूंगरी गणेश मंदिर : मोती डूंगरी की तलहटी में स्थित प्रथम पूज्य का ये मंदिर जयपुर में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है. इसकी स्थापना जयपुर के बसने के कुछ समय बाद 1761 में की गई थी. यहां मावली से प्रतिमा लाई गई. मावली तत्कालीन महाराजा माधो सिंह प्रथम की पटरानी का पीहर था. इस प्रतिमा को जयपुर के नगर सेठ पल्लीवाल लेकर आए थे और उनकी देखरेख में इस प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की गई. बताया जाता है कि ये प्रतिमा 500 साल से भी ज्यादा पुरानी हैं और इसे मावली भी गुजरात से लाया गया था.
नहर के गणेश मंदिर : नाहरगढ़ पहाड़ियों की तलहटी में बसे प्राचीन नहर के गणेश मंदिर में ब्रह्मचारी बाबा के मंत्रों के साथ दी गई आहुति से तैयार भस्म से भगवान गणेश का विग्रह तैयार किया गया था. जिसकी तंत्र विधि से रामचंद्र द्विवेदी व्यास ने प्राण प्रतिष्ठा की थी. खास बात ये है कि गणेश पुराण के अनुसार यहां दक्षिणावर्ती सूंड और दक्षिण विमुख भगवान गणेश की प्रतिमा है. इसे सिद्धिविनायक स्वरूप भी कहा जाता है. यहां भगवान का दूर्वा मार्जन से अभिषेक किया जाता है. ये पद्धति सिर्फ नहर के गणेश मंदिर में ही देखने को मिलती है.
श्वेत सिद्धि विनायक मंदिर : छोटी काशी का एक और प्राचीन गणेश मंदिर जहां भगवान गणेश ने सर्प की जनेऊ धारण कर रखी है. मान्यता है कि यहां सूर्य की पहली किरण भगवान के चरणों में मंगल अभिषेक करती है. सूरजपोल बाजार स्थित ये एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां भगवान को सिंदूर नहीं चढ़ाया जाता. यहां सिर्फ दूध और जल का अभिषेक होता है. बताया जाता है कि यहां भी भगवान गणेश की प्राण प्रतिष्ठा तांत्रिक विधि- विधान से की गई थी. खास बात ये है कि यहां भगवान गणेश के पांच सर्पों का बंधेज है.