जयपुर. शुक्रवार 14 अप्रैल को देशभर में हर साल की तरह भारत रत्न बाबा साहेब अंबेडकर की जयंती मनाई जाएगी. अपना पूरा जीवन संघर्ष में बिताने वाले डॉ. भीमराव अंबेडकर को बाबासाहेब अंबेडकर के नाम से भी जाना जाता है. अंबेडकर ने जाति आधारित कट्टरता के खिलाफ लंबा संघर्ष किया. उन्होंने पूरे जीवन कमजोर और पिछड़े वर्गों के लोगों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी. अंबेडकर शिक्षा का प्रसार कर समाज के कमजोर, मजदूरों, महिलाओं आदि को सशक्त बनाना चाहते थे. बावजूद इसके आजादी के 75 साल बाद भी हमारे समाज में वो समानता नहीं मिली जिसकी कल्पना बाबा साहब ने भारतीय संविधान का मसौदा तैयार कर जाति, धर्म, नस्ल या संस्कृति की परवाह किए बिना सभी नागरिकों को समान अधिकार देने के लिए कानून बनाए. राजस्थान में आये दिन हो रही दलित हिंसा की घटनाएं इस बात की चिंता बढ़ा रही है कि आज भी कानूनी अधिकारों के बावजूद पिछड़ों को समानता का अधिकार नहीं मिल पा रहा हैं. आंकड़े बताते है देश में राजस्थान दूसरा वो प्रदेश है जहां दलितों पर सबसे ज्यादा अत्याचार हो रहा हैं.
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समानता का अधिकारः 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के मऊ में एक गरीब परिवार में बच्चे का जन्म हुआ. जिसका बचपन का नाम रामजी सकपाल था. जिसे बाद देश में बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के नाम से जाना गया. अंबेडकर उस जाति में जन्मे जिसके साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव किया जाता था. अछूत जाति में जन्म लेने के कारण उनका बचपन कष्टों में बीता. बचपन से जातिवाद और भेदभाव का समाना करते हुए बड़े हुए अंबेडकर ने समानता का सपना देखा. लोगों को उनका हक दिलाने और देश के सभी नागरिकों को समान अधिकार दिलाने के लिए संविधान का निर्माण किया. बाबासाहेब ने पूरे जीवन कमजोर और पिछड़े वर्गों के लोगों के अधिकारों के लिए बात की. सामाजिक न्याय मिले इसको लेकर काम किया. अंबेडकर ने शिक्षा पर जोर दिया. कमजोर वर्ग, मजदूरों, महिलाओं सहित हर तबके को सशक्त बनाना चाहते थे.
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कम नहीं हो रहे दलितों पर अत्याचारः राजस्थान में दलित उत्पीड़न के पिछले 3 साल के आंकड़ों पर नजर डालें तो देश में साल दर साल ये आंकड़े बढ़ते ही जा रहे हैं. दलितों को लेकर संघर्ष करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता और एडवोकेट सतीश कुमार बताते है कि बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने देश को सामाजिक समानता वाला संविधान दिया. इस संविधान में हर वर्ग, जाति, को समानता के सूत्र में बांधने की कोशिश की, लेकिन राजस्थान में स्थिति अभी भी नहीं बदली. आज आजादी के 75 साल भी दलितों पर अत्याचार कम नहीं हो रहे हैं. फिर सवाल सरकार की इच्छा शक्ति पर उठता है. दलित प्रताड़ना के मामलों में राजस्थान दूसरे नंबर है. ये चिंता की बात है किआजाद भारत में आज भी छुआछूत, एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ हो रही है. एक दलित मूंछ नहीं रख सकता, घोड़ी पर नहीं बैठ सकता. क्या ऐसे समाज की कल्पना बाबा साहेब ने की थी ? स्कूल के बच्चे को मटके से पानी पीने के लिए इस कदर मारा की उसकी मौत हो जाती है.
क्या कहते हैं आंकड़ेः एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि 2017 में दलित उत्पीड़न के कुल 43 हजार 203 प्रकरण दर्ज किए गए. जिसमें से 4 हजार 238 मामले राजस्थान में दर्ज हुए. वहीं साल 2018 में देश में दलित उत्पीड़न के 42 हजार 793 मामले दर्ज किए गए. जिसमें से 4 हजार 607 मामले राजस्थान में दर्ज हुए. इसी तरह से साल 2019 में देश में दलित उत्पीड़न के 45 हजार 935 मामले दर्ज किए गए. जिसमें से 6 हजार 794 मामले राजस्थान में दर्ज हुए. राजस्थान के आंकड़े देखे तो 2019 कुल 6794 मामले, 2020 में 7017 मामले, 2021 में 7525 मामले दलित उत्पीड़न के दर्ज किये गए. यानी हर साल ये आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं. एडवोकेट सतीश बताते हैं कि कानून से कुछ नहीं होगा. जब तक उसका सही तरीके से इम्प्लिमेंट नहीं होगा. हालात ये है कि दलितों के मामले की समीक्षा के लिए मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में साल में दो बार बैठक होनी होती है, लेकिन इस सरकार में एक भी बार भी बैठक नहीं हुई. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकारें दलितों को लेकर कितनी गंभीर हैं.