जयपुर. सरदारशहर उप चुनाव को लेकर बीजेपी नतीजे आने से पहले ही बैकफुट (Anti incumbency factor for BJP) पर दिख रही है. बीजेपी के नेता लगातार कहते रहते हैं कि यह चुनाव सिम्पेथी वाला होगा. इस उप चुनाव को 2023 का सेमीफाइनल नहीं कह सकते. उपचुनाव में हमेशा सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में जाता है, लेकिन पिछले दो साल के आंकड़े देखें तो बीजेपी हमेशा उपचुनाव (BJP in by elections) में हारती रही है. बीजेपी को न विपक्ष में एंटी इंकम्बेंसी लाभ मिला न सत्ता पक्ष में. 2013 से 2022 तक कुल 15 विधानसभा और लोकसभा उप चुनाव में बीजेपी के हिस्से में महज तीन सीटें ही आई हैं.
उप चुनाव में एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर
कांग्रेस के दिग्गज विधायक रहे भंवर लाल शर्मा के निधन के चलते सरदारशहर सीट पर उपचुनाव होने जा रहा है. उप चुनावों में एक बार फिर जहां सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी ने गुड गवर्नेंस के जरिए जीत का दावा किया है तो वहीं प्रमुख विपक्षी दल बीजेपी भी उप चुनाव में जीत दर्ज करने के लिए मैदान में है. बीजेपी प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया, उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठोड ये वो बड़े नाम हैं जो इन दिनों सरदारशहर उपचुनाव की बागडोर संभाले हुए हैं, लेकिन फिर भी बीजेपी कार्यकर्ता इस चुनाव को लेकर कोई खास उत्साहित नहीं है.
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इसकी वजह है इन तीनों बड़े नेताओं के वो बयान जो उन्होंने सरदार शहर उप चुनाव को लेकर दिए हैं. इन तीनों नेताओं ने पहले ही कहा कि सरदारशहर चुनाव सिम्पेथी का होगा. इसे 2023 का सेमीफाइनल नहीं मान जा सकता है. मौजूदा शासन में 7 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव में से 5 सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की जबकि एक सीट पर हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने जीत दर्ज की. बीजेपी के खाते में सिर्फ एक सीट ही आई है.
पक्ष और विपक्ष में बीजेपी को नहीं मिला एंटी इंकम्बेंसी का लाभ
उप चुनाव को लेकर कहा जाता है कि इसमें विपक्षी दल को एंटी इंकम्बेंसी का फायदा मिलता है, लेकिन बीजेपी के आंकड़ों को देखें तो पिछले दो कार्यकाल में पक्ष और विपक्ष दोनों ही मौकों पर उसे एंटी इंकम्बेंसी का लाभ नहीं मिला है. 2018 से 2022 के बीच प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है. इस मौजूदा कार्यकाल में 7 विधानसभा के उपचुनाव हुए जिसमें बीजेपी को सिर्फ एक सीट पर जीत दर्ज हुई, जबकि पिछले 2013 से 2018 के बीजेपी शासन की बात करें तो 6 विधानसभा और 2 लोकसभा उप चुनाव हुए जिसमें बीजेपी सिर्फ दो ही सीटों पर जीत हासिल कर सकी. दिलचस्प बात तो यह है कि 2013 में मोदी लहर के चलते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 21 सीटों पर सिमट गई थी. साथ में 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी को सभी 25 लोकसभा सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था. लेकिन इसके बाद हुए विधानसभा और लोकसभा उपचुनाव बीजेपी के लिए सिम्पेथी वाले नहीं बल्कि एंटी इंकम्बेंसी वाले रहे.
ये रहा दो शासन काल का आंकड़ा
2014 से 2018 तक 8 सीटों पर उपचुनाव हुए जिसमे कांग्रेस 6 और बीजेपी 2 सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई. दरअसल 2013 के विधानसभा चुनाव में वैर से बहादुर कोली, कोटा दक्षिण से चुनाव ओम बिरला, नसीराबाद से सांवरलाल जाट और सूरतगढ़ से संतोष अहलावत को 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने टिकट देकर लोकसभा चुनाव लड़ाया था. बहादुर कोली भरतपुर, ओम बिरला कोटा, सांवरलाल जाट अजमेर और संतोष अहलावत झुंझुनू से लोकसभा का चुनाव जीत गए. इसके 5 महीने बाद 4 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने नसीराबाद, सूरतगढ़ और वैर में जीत दर्ज की. जबकि सत्तारूढ़ बीजेपी को बड़ा झटका है. बीजेपी को केवल कोटा दक्षिण में ही जीत हासिल हो सकी.
2013 के विधानसभा चुनाव और 2014 के लोकसभा चुनाव में शर्मनाक हार का सामना कर चुकी कांग्रेस ने विधानसभा उपचुनाव में शानदार प्रदर्शन कर मोदी लहर में सब को हैरान कर दिया था. साल 2018 की जनवरी की शुरुआत में ही सत्तारूढ़ बीजेपी को उस वक्त बड़े झटके लगे थे जब दो लोकसभा और एक विधानसभा सीट पर हुए उपचुनावों में कांग्रेस पार्टी ने जीत दर्ज की थी. कांग्रेस पार्टी ने अजमेर और अलवर लोकसभा उपचुनाव में जीत दर्ज की तो वहीं मांडलगढ़ विधानसभा सीट पर भी जीत दर्ज की थी. अजमेर लोकसभा उपचुनाव में रघु शर्मा सांसद चुने गए तो अलवर लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस के करण सिंह यादव सांसद चुने गए.
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मांडलगढ़ उपचुनाव में विवेक धाकड़ ने चुनाव जीता. हालांकि इससे पहले साल 2017 में धौलपुर से बसपा विधायक रहे बीएल कुशवाह की विधायकी रद्द होने के बाद बीजेपी ने उनकी पत्नी को धौलपुर सीट पर भाजपा का टिकट देकर चुनाव लड़ाया जहां पर बीजेपी को जीत मिल पाई. 2018 से 2022 तक 7 उपचुनाव हुए जिसमें 5 सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी ने जबकि सिर्फ 1 सीट बीजेपी के खाते में आई. हालांकि 1 सीट पर लोकतांत्रिक पार्टी ने जीत दर्ज की जहां बीजेपी ने अपना उम्मीदवार नहीं उतरा था बल्कि रालोपा को समर्थन कर रही थी.
आमतौर पर माना जाता है कि सत्तारूढ़ पार्टी की एंटी इनकंबेंसी का फायदा उप चुनावों में विपक्षी पार्टियों को मिलता है. ऐसा पिछले बीजेपी शासन में कांग्रेस को मिला , लेकिन यहां भी बीजेपी को अब तक हुए 7 उपचुनाव में से 5 में हार का सामना करना पड़ा. धरियावद और मंडावा सीट पर 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जीत दर्ज की थी, लेकिन इन दोनों सीटों पर भी हुए उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी ने जीत दर्ज करके दोनों सीटें बीजेपी से छीन ली थी.
वल्लभनगर से कांग्रेस के दिवंगत विधायक गजेंद्र सिंह शक्तावत की पत्नी प्रीति शक्तावत, सहाड़ा सीट से कांग्रेस के दिवंगत विधायक कैलाश त्रिवेदी की पत्नी गायत्री देवी, सुजानगढ़ से कांग्रेस के दिवंगत विधायक मास्टर भंवरलाल मेघवाल के पुत्र मनोज मेघवाल को मतदाताओं ने अपना विधायक चुना. इन सभी सीटों पर सहानुभूति वोट और सिम्पैथी फैक्टर हावी रहा, लेकिन जब बीजेपी ने धरियावद से पार्टी विधायक गौतम लाल मीणा के निधन से हुए उपचुनाव में उनके बेटे कन्हैयालाल मीणा का टिकट काटकर खेत सिंह को चुनाव लड़ाया तो कांग्रेस के पूर्व विधायक नगराज मीणा के हाथों उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा. सहानुभूति वोट लेने से बीजेपी चूक गई क्योंकि सिम्पैथी का वह वोट बीजेपी से नाराज होकर कांग्रेस प्रत्याशी के खाते में चला गया. हालांकि जब बीजेपी ने राजसमंद से अपनी दिवंगत विधायक किरण माहेश्वरी की बेटी दीप्ति माहेश्वरी को टिकट देकर चुनाव लड़ाया था, तो सिम्पैथी वोटों से उनकी जीत हुई थी.
खींवसर सीट पर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने अपना कब्जा बरकरार रखा. मंडावा से साल 2018 में विधायक बने नरेंद्र कीचड़ 2019 के लोकसभा चुनाव में सीकर से सांसद चुने गए थे, तो वही खींवसर से विधायक रहे हनुमान बेनीवाल भी गठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर नागौर से लोकसभा का चुनाव जीत का सांसद बन गए थे . इन दोनों के सांसद बनने के बाद मंडावा और खींवसर सीट पर उपचुनाव हुआ था.