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Amla Navami 2022: आंवला नवमी आज, जानें पूजा की विधि व शुभ मुहूर्त, ऐसे करें मां लक्ष्मी को प्रसन्न

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नवमी कहा (Amla Navami 2022) जाता है. आज के दिन से ही द्वापर युग की शुरुआत हुई थी. ऐसी मान्यता है कि आज के दिन दान-धर्म करने से व्यक्ति को इस जन्म के साथ ही अगले जन्म में भी उसका पुण्य फल प्राप्त होता है.

Amla Navami 2022
आंवला नवमी आज
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Published : Nov 2, 2022, 7:14 AM IST

जयपुर. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नवमी (Amla Navami 2022) कहा जाता है. आज के दिन से ही द्वापर युग की शुरुआत (Beginning of Dwapar Yuga) हुई थी. ऐसी मान्यता है कि आज के दिन दान-धर्म करने से व्यक्ति को इस जन्म के साथ ही अगले जन्म में भी उसका पुण्य फल प्राप्त होता है. सनातन धर्म में ऐसे तो कई वृक्षों की पूजा होती है, लेकिन आज के दिन आंवला की छाव के नीचे बैठकर भोजन करने का विधान है. वहीं, आंवला नवमी को अक्षय नवमी भी कहा जाता है. आज के दिन आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु का वास होता है. मान्यता है कि सच्चे मन से आंवले के नीचे बैठकर पूजा करने वाले भक्तों की मां लक्ष्मी सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं और उनके घर खुशहाली का प्रवेश होता है.

पूजा का शुभ मुहूर्त: पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि यानी 1 नवंबर, 2022 को रात 11 बजकर 4 मिनट से ही आंवला नवमी की शुरुआत हो चुकी है, जो आज यानी 2 नवंबर, 2022 को रात 9 बजकर 9 मिनट पर तक रहेगा. ऐसे में उदया तिथि को देखते आज इस पर्व को मनाया जाएगा. वहीं, अगर शुभ मुहूर्त की बात करें तो सुबह 6 बजकर 34 से दोपहर 12 बजकर 4 मिनट और अभिजित मुहूर्त सुबह 11 बजकर 55 मिनट से दोपहर 12 बजकर 37 मिनट तक है.

इसे भी पढ़ें - Daily Horoscope 2 November: कैसा बीतेगा आज का दिन जानिए अपना आज का राशिफल

क्यों की जाती है आंवले के पेड़ की पूजा: पौराणिक कथा के अनुसार एक बार मां लक्ष्मी भ्रमण करने के लिए पृथ्वी लोक पर आई थीं. रास्ते में उन्हें भगवान विष्णु और शिव की पूजा एक साथ करने की इच्छा हुई. मां लक्ष्मी ने विचार किया कि एक साथ विष्णु और शिव की पूजा कैसे हो सकती है. ऐसे में तुलसी भगवान विष्णु को तो भगवान शिव को बेलपत्र अति प्रिय है. मां लक्ष्मी को ख्याल आया कि तुलसी और बेलपत्र का गुण एक साथ आंवले के पेड़ में पाया जाता है. ऐसे में उन्होंने आंवले के पेड़ की पूजा कर दोनों देवों को प्रसन्न किया था.

जानें आंवला नवमी का महत्व: आज के दिन आंवला के वृक्ष के नीचे भोजन बनाने व भोजन करने का विशेष महत्व है. आंवला नवमी को भगवान विष्णु ने कुष्माण्डक दैत्य को मारा था. इस दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने कंस वध से पहले तीन वन की परिक्रमा की थी. आज भी लोग अक्षय नवमी पर मथुरा-वृंदावन की परिक्रमा करते हैं. संतान प्राप्ति के लिए भी आज विशेष की जाती है.

जयपुर. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नवमी (Amla Navami 2022) कहा जाता है. आज के दिन से ही द्वापर युग की शुरुआत (Beginning of Dwapar Yuga) हुई थी. ऐसी मान्यता है कि आज के दिन दान-धर्म करने से व्यक्ति को इस जन्म के साथ ही अगले जन्म में भी उसका पुण्य फल प्राप्त होता है. सनातन धर्म में ऐसे तो कई वृक्षों की पूजा होती है, लेकिन आज के दिन आंवला की छाव के नीचे बैठकर भोजन करने का विधान है. वहीं, आंवला नवमी को अक्षय नवमी भी कहा जाता है. आज के दिन आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु का वास होता है. मान्यता है कि सच्चे मन से आंवले के नीचे बैठकर पूजा करने वाले भक्तों की मां लक्ष्मी सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं और उनके घर खुशहाली का प्रवेश होता है.

पूजा का शुभ मुहूर्त: पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि यानी 1 नवंबर, 2022 को रात 11 बजकर 4 मिनट से ही आंवला नवमी की शुरुआत हो चुकी है, जो आज यानी 2 नवंबर, 2022 को रात 9 बजकर 9 मिनट पर तक रहेगा. ऐसे में उदया तिथि को देखते आज इस पर्व को मनाया जाएगा. वहीं, अगर शुभ मुहूर्त की बात करें तो सुबह 6 बजकर 34 से दोपहर 12 बजकर 4 मिनट और अभिजित मुहूर्त सुबह 11 बजकर 55 मिनट से दोपहर 12 बजकर 37 मिनट तक है.

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क्यों की जाती है आंवले के पेड़ की पूजा: पौराणिक कथा के अनुसार एक बार मां लक्ष्मी भ्रमण करने के लिए पृथ्वी लोक पर आई थीं. रास्ते में उन्हें भगवान विष्णु और शिव की पूजा एक साथ करने की इच्छा हुई. मां लक्ष्मी ने विचार किया कि एक साथ विष्णु और शिव की पूजा कैसे हो सकती है. ऐसे में तुलसी भगवान विष्णु को तो भगवान शिव को बेलपत्र अति प्रिय है. मां लक्ष्मी को ख्याल आया कि तुलसी और बेलपत्र का गुण एक साथ आंवले के पेड़ में पाया जाता है. ऐसे में उन्होंने आंवले के पेड़ की पूजा कर दोनों देवों को प्रसन्न किया था.

जानें आंवला नवमी का महत्व: आज के दिन आंवला के वृक्ष के नीचे भोजन बनाने व भोजन करने का विशेष महत्व है. आंवला नवमी को भगवान विष्णु ने कुष्माण्डक दैत्य को मारा था. इस दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने कंस वध से पहले तीन वन की परिक्रमा की थी. आज भी लोग अक्षय नवमी पर मथुरा-वृंदावन की परिक्रमा करते हैं. संतान प्राप्ति के लिए भी आज विशेष की जाती है.

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