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Face To Face: कांग्रेस में बगावत पार्ट 2 पर बोले महेश जोशी- मानेसर वाले थे बागी, हम नहीं

राजस्थान कांग्रेस में विधायकों के बागी तेवर 2020 की याद दिला रहे हैं (Congress Political Crisis). यही वजह है कि इसे बगावत पार्ट 2 (Mahesh Joshi justifies his action) का नाम दिया जा रहा है लेकिन आलाकमान को आंख दिखाने वाले विधायक ऐसा नहीं मानते. ईटीवी भारत से Exclusive बातचीत में जलदाय मंत्री और मुख्य सचेतक महेश जोशी ने कहा बागी तो मानेसर वाले थे हम नहीं!

Congress Political Crisis
महेश जोशी फेस टू फेस
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Published : Sep 27, 2022, 10:38 AM IST

जयपुर. राजस्थान में चल रही सियासी उठापटक के बीच अब यह कहा जा रहा है कि 2 साल के अंदर ही कांग्रेस पार्टी को राजस्थान में दूसरी बार बगावत झेलनी पड़ी है (Rebel In Rajasthan PCC). लोग पूछ रहे हैं कि अगर सचिन पायलट का विरोध बगावत था ,तो क्या अशोक गहलोत कैम्प का हालिया रवैया बगावत नहीं? वो भी जब सीधे सीधे आलाकमान के निर्देशों पर बुलाई गई विधायक दल बैठक का बहिष्कार कर स्पीकर को इस्तीफा सौंप दिया गया हो? क्या आलाकमान पर दबाव बनाना बगावत की श्रेणी में नहीं आता?

इस पूरे घटनाक्रम में सबसे ज्यादा अंगुली महेश जोशी पर उठ रही है जिन्होंने 25 सितंबर को फोन कर सभी विधायकों को धारीवाल के आवास पर बुलाया था. अंदरखाने खबर है कि उन्हें कारण बताओ नोटिस दिया जा चुका है हालांकि जोशी ने कहा है कि उन्हें किसी नोटिस की जानकारी नहीं है.

महेश जोशी फेस टू फेस

अपने तरीके को किया Justify: जोशी अपने तरीके को जस्टिफाइ कर रहे हैं (Mahesh Joshi justifies his action). उन्होंने बगावत को लेकर ये साफ किया कि उन्होंने तो केवल आलाकमान के सामने अपने उस अधिकार का इस्तेमाल किया है जो अपनी बात अपने मुखिया तक पहुंचाने के लिए कोई भी विधायक करता है. उन्होंने कहा कि मानेसर के साथ इस घटना की तुलना किया जाना गलत है, हम मानेसर की तरह न तो कहीं बाड़ेबंदी में होटल में इकट्ठे हुए हैं, न ही कोई वैसा कृत्य कर रहे हैं.

फोन की बात स्वीकारी: महेश जोशी को लेकर यह कहा जा रहा है कि उन्होंने ही विधायकों को विधायक दल की बैठक से पहले शांति धारीवाल के निवास पर आने के लिए फोन किए थे. जोशी ने ये बात स्वीकारी (Mahesh Joshi On High Command). उन्होंने कहा- हम चाहते थे कि विधायक दल से पहले आपस में विचार विमर्श करें, ताकि विधायक अलग-अलग राय और अलग-अलग सुर में कांग्रेस आलाकमान के प्रतिनिधियों से बात नहीं करें. जोशी ने कहा कि जब हम सब ने आपस में अलग से बात कर ली, तो ये सामूहिक फैसला लिया की सभी विधायकों की भावना एक है और इस भावना को आलाकमान तक पहुंचा दिया जाए, उसके बाद आलाकमान जो भी निर्देश देगा वह हमें मान्य होगा.

पढ़ें. राजस्थान में कौन होगा सरकार का चेहरा, गुजरात में क्या होगा कांग्रेस का भविष्य? बगावत के बाद नए समीकरण की तलाश

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'किया अधिकार का प्रयोग': जोशी ने कहा की हमारे साथ उस दिन 90 के आसपास विधायक थे. हमने इस्तीफा देकर आलाकमान पर कोई प्रेशर बनाने का काम नहीं किया, हमने तो केवल अपनी बात आलाकमान तक पहुंचाई जो हमारा अधिकार है. वहीं जब उनसे पूछा गया कि क्या इसे आलाकमान पर दबाव का प्रयास नहीं माना जाएगा? तो उन्होंने कहा कि हमने आलाकमान पर कोई दबाव नहीं बनाया है, हमने अपनी बात आलाकमान तक पहुंचाई है.

'आलाकमान ने मांगा तो दूंगा स्पष्टीकरण': जोशी का कहना है कि वो आलाकमान के फैसले का सम्मान करेंगे. उन्होंने कहा- अब जो भी फैसला होगा मुझे मंजूर होगा. आलाकमान को ये अधिकार है कि वह मुझसे स्पष्टीकरण मांगे. अगर ऐसा हुआ तो मेरी भी जिम्मेदारी बनती है कि आलाकमान के मन में अगर मेरे प्रति कोई शंका होगी तो मैं निष्ठा और सम्मान के साथ उन्हें अपना जवाब भी पेश कर दूं.

ये भी पढ़ें-Big News : कांग्रेस आलाकमान का सख्त रुख, मंत्री धारीवाल और जोशी को कारण बताओ नोटिस

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मध्यावधि चुनाव को लेकर बोले ये: एक ओर कांग्रेस समर्थक विधायकों की ओर से इस्तीफा दिया गया तो दूसरी ओर कांग्रेस आलाकमान की ओर से इस पर सख्त नाराजगी जताई गई. सख्त कार्रवाई को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं. ऐसे में सुगबुगाहट राजस्थान में मध्यावधि चुनाव (Mid Term Poll in Rajasthan) को लेकर भी हो रही है. इसकी एक वजह कांग्रेस विधायक गिर्राज मलिंगा हैं. जिन्होंने अपनी ही सरकार को इस्तीफों के बाद अल्पमत में बताते हुए मध्यावधि चुनाव करवाने की मांग आलाकमान से कही है. जब यही सवाल महेश जोशी से किया गया तो उन्होंने कहा की आलाकमान का जो भी फैसला होगा उन्हें मंजूर होगा.

जयपुर. राजस्थान में चल रही सियासी उठापटक के बीच अब यह कहा जा रहा है कि 2 साल के अंदर ही कांग्रेस पार्टी को राजस्थान में दूसरी बार बगावत झेलनी पड़ी है (Rebel In Rajasthan PCC). लोग पूछ रहे हैं कि अगर सचिन पायलट का विरोध बगावत था ,तो क्या अशोक गहलोत कैम्प का हालिया रवैया बगावत नहीं? वो भी जब सीधे सीधे आलाकमान के निर्देशों पर बुलाई गई विधायक दल बैठक का बहिष्कार कर स्पीकर को इस्तीफा सौंप दिया गया हो? क्या आलाकमान पर दबाव बनाना बगावत की श्रेणी में नहीं आता?

इस पूरे घटनाक्रम में सबसे ज्यादा अंगुली महेश जोशी पर उठ रही है जिन्होंने 25 सितंबर को फोन कर सभी विधायकों को धारीवाल के आवास पर बुलाया था. अंदरखाने खबर है कि उन्हें कारण बताओ नोटिस दिया जा चुका है हालांकि जोशी ने कहा है कि उन्हें किसी नोटिस की जानकारी नहीं है.

महेश जोशी फेस टू फेस

अपने तरीके को किया Justify: जोशी अपने तरीके को जस्टिफाइ कर रहे हैं (Mahesh Joshi justifies his action). उन्होंने बगावत को लेकर ये साफ किया कि उन्होंने तो केवल आलाकमान के सामने अपने उस अधिकार का इस्तेमाल किया है जो अपनी बात अपने मुखिया तक पहुंचाने के लिए कोई भी विधायक करता है. उन्होंने कहा कि मानेसर के साथ इस घटना की तुलना किया जाना गलत है, हम मानेसर की तरह न तो कहीं बाड़ेबंदी में होटल में इकट्ठे हुए हैं, न ही कोई वैसा कृत्य कर रहे हैं.

फोन की बात स्वीकारी: महेश जोशी को लेकर यह कहा जा रहा है कि उन्होंने ही विधायकों को विधायक दल की बैठक से पहले शांति धारीवाल के निवास पर आने के लिए फोन किए थे. जोशी ने ये बात स्वीकारी (Mahesh Joshi On High Command). उन्होंने कहा- हम चाहते थे कि विधायक दल से पहले आपस में विचार विमर्श करें, ताकि विधायक अलग-अलग राय और अलग-अलग सुर में कांग्रेस आलाकमान के प्रतिनिधियों से बात नहीं करें. जोशी ने कहा कि जब हम सब ने आपस में अलग से बात कर ली, तो ये सामूहिक फैसला लिया की सभी विधायकों की भावना एक है और इस भावना को आलाकमान तक पहुंचा दिया जाए, उसके बाद आलाकमान जो भी निर्देश देगा वह हमें मान्य होगा.

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'किया अधिकार का प्रयोग': जोशी ने कहा की हमारे साथ उस दिन 90 के आसपास विधायक थे. हमने इस्तीफा देकर आलाकमान पर कोई प्रेशर बनाने का काम नहीं किया, हमने तो केवल अपनी बात आलाकमान तक पहुंचाई जो हमारा अधिकार है. वहीं जब उनसे पूछा गया कि क्या इसे आलाकमान पर दबाव का प्रयास नहीं माना जाएगा? तो उन्होंने कहा कि हमने आलाकमान पर कोई दबाव नहीं बनाया है, हमने अपनी बात आलाकमान तक पहुंचाई है.

'आलाकमान ने मांगा तो दूंगा स्पष्टीकरण': जोशी का कहना है कि वो आलाकमान के फैसले का सम्मान करेंगे. उन्होंने कहा- अब जो भी फैसला होगा मुझे मंजूर होगा. आलाकमान को ये अधिकार है कि वह मुझसे स्पष्टीकरण मांगे. अगर ऐसा हुआ तो मेरी भी जिम्मेदारी बनती है कि आलाकमान के मन में अगर मेरे प्रति कोई शंका होगी तो मैं निष्ठा और सम्मान के साथ उन्हें अपना जवाब भी पेश कर दूं.

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