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Sister Is Everything : छोटी बहन ने भाई को दिया जीवन का तोहफा...बोन मैरो डोनेट कर बचाई जान - Thalassemia Carrier

यूं तो रक्षाबंधन बहन की रक्षा का त्योहार है. लेकिन हनुमानगढ़ में एक बहन ने बोन मैरो देकर अपने बड़े भाई की जान बचाई है. इस बहन ने अपने भाई के लिए जो कुछ किया है, वह अपने आप में एक अनूठी मिसाल बन गया है.

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Sister Is Everything
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Published : Aug 21, 2021, 5:38 PM IST

Updated : Aug 21, 2021, 7:43 PM IST

हनुमानगढ़. शहर के जक्शन दुर्गा कॉलोनी के रहने वाले बब्बर परिवार के बेटे नमन का जन्म 2003 में हुआ था. जन्म से ही नमन थैलेसीमिया रोग (Thalassemia disease) से पीड़ित था. माता-पिता ने 8 साल के लम्बे समय तक इलाज करवाया. इस दौरान नमन का ब्लड ट्रांसमिशन (blood transmission) होता रहा, लेकिन ये स्थाई इलाज नहीं था.

ऐसे में डॉक्टरों की सलाह पर नमन के ऑपरेशन का फैसला किया गया. लेकिन सवाल ये आया कि इस ऑपरेशन के लिए बोन मैरो (Bone marrow) डोनेट (Donate) कौन करेगा. नमन के माता-पिता और बहन जिया के बोने मैरो से नमन के बोन मैरो का मैच करवाया गया. जिया का बोन मैरो मैच हो गया और जिया ने खुशी-खुशी अपने भाई की जिंदगी के लिए बोन मैरो डोनेट (bone marrow donation) करने का फैसला कर लिया.

जिया और नमन अब स्वस्थ और खुश हैं.

नमन की बहन जिया जानती थी कि उसका भाई रोज-रोज के इलाज की मुसीबतों को झेल रहा था. वह अपने भाई को उस दर्द से छुटकारा दिलाना चाहती थी. जिया ने बोन मैरो (bone marrow donation) देकर अपने भाई नमन को नया जीवनदान दिया. आज भी नमन के पिता अजय बब्बर, माता ज्योति बब्बर, दादी उषा बब्बर वह आपबीती सुनाकर भावुक हो जाते हैं.

पढ़ें- रक्षाबंधन से पहले टूटा दुखों का पहाड़, राखी बांधने आई बहन को मिली भाई की मौत की खबर

जिया के पिता अजय बब्बर और उनका पूरा परिवार उस समय को याद कर सिहर उठते हैं, जब डॉक्टर ने उनको ये कह दिया था कि ये रोग बहुत गंभीर है. इसका इलाज बहुत महंगा और लंबा चलने वाला है. किसी ने ये भी सलाह दी कि नमन को अपने हाल पर छोड़ दीजिये, जितनी जिंदगी है जी लेगा.

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छोटी बहन को मिठाई खिलाता नमन

लेकिन अजय ने हिम्मत नहीं हारी और आज नमन परिवार के साथ है. अजय कहते हैं कि सिर्फ जिया की वजह से नमन की जान बच सकी. जिया और नमन की कहानी उन लोगों के लिए एक सबक है जो सिर्फ बेटों की चाह रखते हैं, बेटियों को कोख में ही खत्म कर देते हैं. नमन का कहना है कि मैं बहुत भाग्यशाली हूं कि मुझे जिया जैसी बहन मिली है. जिसने मुझे नई जिंदगी दी.

जिया का कहना कि नमन की जान बचाकर उसने कोई बड़ा काम नहीं किया है, बस बहन का फर्ज निभाया है. जिया ने कहा कि मुझे खुशी है कि मैं अपने भाई को एक ऐसा उपहार दे सकी, कि वह सारी जिंदगी साथ रह सके. जिया ने नमन को सिर्फ बोन मैरो नहीं दिया, बल्कि पूरे परिवार को खुश रहने की वजह दे दी. जब नमन का ऑपरेशन हुआ तब नमन 11 साल का था और जिया 8 साल की.

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बब्बर परिवार

नमन को बचाने ही पैदा हुई जिया

नमन के जन्म के बाद डॉक्टर्स ने अजय और ज्योति को थैलेसीमिया कैरियर (Thalassemia Carrier ) घोषित कर दिया था. हिदायत दी थी कि इसके बाद दूसरा बच्चा पैदा करेंगे तो वह थैलेसीमिया से पीड़ित हो सकता है. नमन के माता-पिता ने कई डॉक्टरों की सलाह, हिम्मत और भगवान पर भरोसा करते हुए जिया को जन्म दिया. वही जिया नमन के लिए नई जिंदगी बनकर आई.

फिलहाल नमन और जिया बिल्कुल स्वस्थ हैं. नमन NIT-IIT की तैयारी कर रहा है और सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनना चाहता है. जिया 11वीं में साइंस की पढ़ाई कर रही है और डॉक्टर बनना चाहती है. Etv भारत ऐसी बेटियों को दिल से सेल्यूट (Salute) करता है.

हनुमानगढ़. शहर के जक्शन दुर्गा कॉलोनी के रहने वाले बब्बर परिवार के बेटे नमन का जन्म 2003 में हुआ था. जन्म से ही नमन थैलेसीमिया रोग (Thalassemia disease) से पीड़ित था. माता-पिता ने 8 साल के लम्बे समय तक इलाज करवाया. इस दौरान नमन का ब्लड ट्रांसमिशन (blood transmission) होता रहा, लेकिन ये स्थाई इलाज नहीं था.

ऐसे में डॉक्टरों की सलाह पर नमन के ऑपरेशन का फैसला किया गया. लेकिन सवाल ये आया कि इस ऑपरेशन के लिए बोन मैरो (Bone marrow) डोनेट (Donate) कौन करेगा. नमन के माता-पिता और बहन जिया के बोने मैरो से नमन के बोन मैरो का मैच करवाया गया. जिया का बोन मैरो मैच हो गया और जिया ने खुशी-खुशी अपने भाई की जिंदगी के लिए बोन मैरो डोनेट (bone marrow donation) करने का फैसला कर लिया.

जिया और नमन अब स्वस्थ और खुश हैं.

नमन की बहन जिया जानती थी कि उसका भाई रोज-रोज के इलाज की मुसीबतों को झेल रहा था. वह अपने भाई को उस दर्द से छुटकारा दिलाना चाहती थी. जिया ने बोन मैरो (bone marrow donation) देकर अपने भाई नमन को नया जीवनदान दिया. आज भी नमन के पिता अजय बब्बर, माता ज्योति बब्बर, दादी उषा बब्बर वह आपबीती सुनाकर भावुक हो जाते हैं.

पढ़ें- रक्षाबंधन से पहले टूटा दुखों का पहाड़, राखी बांधने आई बहन को मिली भाई की मौत की खबर

जिया के पिता अजय बब्बर और उनका पूरा परिवार उस समय को याद कर सिहर उठते हैं, जब डॉक्टर ने उनको ये कह दिया था कि ये रोग बहुत गंभीर है. इसका इलाज बहुत महंगा और लंबा चलने वाला है. किसी ने ये भी सलाह दी कि नमन को अपने हाल पर छोड़ दीजिये, जितनी जिंदगी है जी लेगा.

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छोटी बहन को मिठाई खिलाता नमन

लेकिन अजय ने हिम्मत नहीं हारी और आज नमन परिवार के साथ है. अजय कहते हैं कि सिर्फ जिया की वजह से नमन की जान बच सकी. जिया और नमन की कहानी उन लोगों के लिए एक सबक है जो सिर्फ बेटों की चाह रखते हैं, बेटियों को कोख में ही खत्म कर देते हैं. नमन का कहना है कि मैं बहुत भाग्यशाली हूं कि मुझे जिया जैसी बहन मिली है. जिसने मुझे नई जिंदगी दी.

जिया का कहना कि नमन की जान बचाकर उसने कोई बड़ा काम नहीं किया है, बस बहन का फर्ज निभाया है. जिया ने कहा कि मुझे खुशी है कि मैं अपने भाई को एक ऐसा उपहार दे सकी, कि वह सारी जिंदगी साथ रह सके. जिया ने नमन को सिर्फ बोन मैरो नहीं दिया, बल्कि पूरे परिवार को खुश रहने की वजह दे दी. जब नमन का ऑपरेशन हुआ तब नमन 11 साल का था और जिया 8 साल की.

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बब्बर परिवार

नमन को बचाने ही पैदा हुई जिया

नमन के जन्म के बाद डॉक्टर्स ने अजय और ज्योति को थैलेसीमिया कैरियर (Thalassemia Carrier ) घोषित कर दिया था. हिदायत दी थी कि इसके बाद दूसरा बच्चा पैदा करेंगे तो वह थैलेसीमिया से पीड़ित हो सकता है. नमन के माता-पिता ने कई डॉक्टरों की सलाह, हिम्मत और भगवान पर भरोसा करते हुए जिया को जन्म दिया. वही जिया नमन के लिए नई जिंदगी बनकर आई.

फिलहाल नमन और जिया बिल्कुल स्वस्थ हैं. नमन NIT-IIT की तैयारी कर रहा है और सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनना चाहता है. जिया 11वीं में साइंस की पढ़ाई कर रही है और डॉक्टर बनना चाहती है. Etv भारत ऐसी बेटियों को दिल से सेल्यूट (Salute) करता है.

Last Updated : Aug 21, 2021, 7:43 PM IST
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