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स्पेशल स्टोरी : हनुमानगढ़ का ऐतिहासिक गुरुद्वारा, दिलाता है वीर योद्धाओं की याद

हनुमानगढ़ ही नहीं पूरे देश की आन-बान-शान हनुमानगढ़ का सुखा सिंह मेहताबसिंह गुरुद्वारा उन वीर योद्धाओं की याद दिलाता है, जिन्होंने एक दुष्ट खूंखार व्यक्ति की गर्दन काट कर गुरु साहब की आज्ञा की पालना किया थी. हनुमानगढ़ का ऐतिहासिक गुरुद्वारा सिख समुदाय का ही नहीं, बल्कि देश के हर नागरिक का सीना चौड़ा कर रहा है. आइए आपको बताते है इस ऐतिहासिक गुरूद्वारे की कहानी के बारे में...

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Published : Oct 10, 2019, 3:30 PM IST

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हनुमानगढ़. हनुमानगढ़ ही नहीं बल्कि पूरे भारत देश का ऐतिहासिक ये गुरुद्वारा 2 सिक्ख योद्धाओं बाबा सुक्खा सिंह और बाबा महताब सिंह की याद में बनाया गया है. यह आकर्षक नक्काशी का एक ऐसा नमूना है, जिसे देखते ही मन मंत्रमुगध हो जाता है.

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यहां मांगी मन्नतें होती हैं पूरी

गुरुद्वारे का स्वर्णिम इतिहास

जानकारी के अनुसार, सन 1741 में अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर में मुगल फौज का कमांडर मस्सा रंगड़ अनैतिक कार्य करवा रहा था और उसके इन कार्यों की खबर बीकानेर के पास रहने वाले बाबा सुक्खा सिंह और बाबा महताब सिंह तक पहुंच गई. बस फिर क्या था. ये दोनों वीर योद्धा मुगल अफसरों के भेष में मस्सा रंगड़ के कैंप तक पहुंचे और उसकी गर्दन काटकर बीकानेर वापस आ गए. तब रास्ते में सिक्ख कौम के इन दोनों सूरमाओं ने हनुमानगढ़ स्थित एक पेड़ के नीचे विश्राम किया था. इस पेड़ को स्थानीय भाषा में बाणी भी कहते हैं और ये बाणी आज उसी स्थान पर जस की तस मौजूद है. इसी जगह पर श्रद्धालुओं ने यहां एक विशाल गुरुद्वारा बनवा दिया.

हनुमानगढ़ का ऐतिहासिक गुरुद्वारा

पढे़ं- नन्ही स्केटर हंसिका की अनूठी पहल, उदयपुर से दिल्ली तक स्केटिंग कर बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने का देगी संदेश

इस गुरुद्वारे में हर साल जोड़ मेला लगता है. इस मेले में दूर-दराज से लाखों की संख्या में सिक्ख संगत पहुंचती है और इन योद्धाओं को याद करते है तथा गुरु ग्रंथ साहिब के सामने शीश नवाते हैं. जोड़ मेले के समय गुरुद्वारे की शोभा देखने लायक होती है. खासकर रात के समय यहां की सजावट देखने लायक होती है. तीन-चार दिन चलने वाले इस मेले में कई प्रतियोगिताएं भी करवाई जाती है. जिनमें प्रमुख रूप से कबड्डी के मैच करवाए जाते हैं. वर्तमान समय में गुरुद्वारे के प्रमुख सेवादार बाबा बलकार सिंह है. जिनके नेतृत्व में गुरुद्वारे की सेवा 24 घंटे चलती रहती है.

यहां मांगी गई मन्नतें होती हैं पूरी

गुरुद्वारे के सेवादार राजेन्द्र सिंह रोमाना ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान बताया कि गुरुद्वारा परिसर में मौजूद एतिहासिक पेड़ पर वे लोग मन्नते मांगे हैं, जिनकी शादी न हो रही हो या फिर जिनके औलाद न हो और यहां मांगी गई हर मन्नत पूरी भी होती है. गुरुद्वारे की कमेटी हर साल गरीब और निर्धन कन्याओं की शादी के लिए सहयोग भी करती है. साथ ही यहां 24 घंटे लंगर कि भी व्यवस्था रहती है. गुरुद्वारे के मुख्य सेवादार बाबा बलकार सिंह स्वयं गांव-गांव जाकर गुरुद्वारे के लिए सेवा इकट्ठी करते हैं और निर्धन और परेशान लोगों की मदद में आगे रहते है.

पढे़ं- स्पेशल स्टोरी : बांसवाड़ा स्थित देवी नंदिनी के मंदिर से जुड़ा है द्वापर युग का रहस्य

निश्चित तौर पर बाबा सुखासिंह महताबसिंह गुरुद्वारा एक बहुत बड़ा ऐतिहसिक गुरुद्वारा है. इस गुरुद्वारे को देख मन में गरीब, असहाय और पीड़ित लोगों की मदद करने के लिए मन में जज्बा पैदा होता है. सलाम है उन वीर योद्धा सुखासिंह महताबसिंह को, जिन्होंने एक दुष्ट व्यक्ति की गर्दन को काट लाखों असहाय लोगों की मदद की थी.

हनुमानगढ़. हनुमानगढ़ ही नहीं बल्कि पूरे भारत देश का ऐतिहासिक ये गुरुद्वारा 2 सिक्ख योद्धाओं बाबा सुक्खा सिंह और बाबा महताब सिंह की याद में बनाया गया है. यह आकर्षक नक्काशी का एक ऐसा नमूना है, जिसे देखते ही मन मंत्रमुगध हो जाता है.

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यहां मांगी मन्नतें होती हैं पूरी

गुरुद्वारे का स्वर्णिम इतिहास

जानकारी के अनुसार, सन 1741 में अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर में मुगल फौज का कमांडर मस्सा रंगड़ अनैतिक कार्य करवा रहा था और उसके इन कार्यों की खबर बीकानेर के पास रहने वाले बाबा सुक्खा सिंह और बाबा महताब सिंह तक पहुंच गई. बस फिर क्या था. ये दोनों वीर योद्धा मुगल अफसरों के भेष में मस्सा रंगड़ के कैंप तक पहुंचे और उसकी गर्दन काटकर बीकानेर वापस आ गए. तब रास्ते में सिक्ख कौम के इन दोनों सूरमाओं ने हनुमानगढ़ स्थित एक पेड़ के नीचे विश्राम किया था. इस पेड़ को स्थानीय भाषा में बाणी भी कहते हैं और ये बाणी आज उसी स्थान पर जस की तस मौजूद है. इसी जगह पर श्रद्धालुओं ने यहां एक विशाल गुरुद्वारा बनवा दिया.

हनुमानगढ़ का ऐतिहासिक गुरुद्वारा

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इस गुरुद्वारे में हर साल जोड़ मेला लगता है. इस मेले में दूर-दराज से लाखों की संख्या में सिक्ख संगत पहुंचती है और इन योद्धाओं को याद करते है तथा गुरु ग्रंथ साहिब के सामने शीश नवाते हैं. जोड़ मेले के समय गुरुद्वारे की शोभा देखने लायक होती है. खासकर रात के समय यहां की सजावट देखने लायक होती है. तीन-चार दिन चलने वाले इस मेले में कई प्रतियोगिताएं भी करवाई जाती है. जिनमें प्रमुख रूप से कबड्डी के मैच करवाए जाते हैं. वर्तमान समय में गुरुद्वारे के प्रमुख सेवादार बाबा बलकार सिंह है. जिनके नेतृत्व में गुरुद्वारे की सेवा 24 घंटे चलती रहती है.

यहां मांगी गई मन्नतें होती हैं पूरी

गुरुद्वारे के सेवादार राजेन्द्र सिंह रोमाना ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान बताया कि गुरुद्वारा परिसर में मौजूद एतिहासिक पेड़ पर वे लोग मन्नते मांगे हैं, जिनकी शादी न हो रही हो या फिर जिनके औलाद न हो और यहां मांगी गई हर मन्नत पूरी भी होती है. गुरुद्वारे की कमेटी हर साल गरीब और निर्धन कन्याओं की शादी के लिए सहयोग भी करती है. साथ ही यहां 24 घंटे लंगर कि भी व्यवस्था रहती है. गुरुद्वारे के मुख्य सेवादार बाबा बलकार सिंह स्वयं गांव-गांव जाकर गुरुद्वारे के लिए सेवा इकट्ठी करते हैं और निर्धन और परेशान लोगों की मदद में आगे रहते है.

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निश्चित तौर पर बाबा सुखासिंह महताबसिंह गुरुद्वारा एक बहुत बड़ा ऐतिहसिक गुरुद्वारा है. इस गुरुद्वारे को देख मन में गरीब, असहाय और पीड़ित लोगों की मदद करने के लिए मन में जज्बा पैदा होता है. सलाम है उन वीर योद्धा सुखासिंह महताबसिंह को, जिन्होंने एक दुष्ट व्यक्ति की गर्दन को काट लाखों असहाय लोगों की मदद की थी.

Intro:हनुमानगढ़ ही नहीं पुरे देश कि आन बाण शान हनुमानगढ़ का सुखा सिंह मेहताबसिंह गुरुद्वारा उन वीर योद्धाओं की याद दिलाता है जिन्होंने एक दुष्ट खूंखार व्यक्ति कि गर्दन काट कर गुरु साहब की आज्ञा की पालना की थी, हनुमानगढ़ का एतिहासिक गुरुद्वारा सिख समुदाय को ही नहीं बल्कि देश के हर नागरिक का सीना चौड़ा कर रहा है आइये आज आपको बताते है इस एतिहासिक गुरूद्वारे कि कहानी के बारे में

Body:हनुमानगढ़ ही नहीं बल्कि पुरे भारत देश का ऐतिहासिक ये गुरूद्वारा 2 सिक्ख योद्धाओं बाबा सुक्खा सिंह और बाबा महताब सिंह की याद में यहां बनाया गया है...इतिहास की बात करें तो 1741 में अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर में मुगल फौज का कमांडर मस्सा रंगड़ अनैतिक कार्य करवा रहा था...और उसके इन कार्यों की खबर राजस्थान में बीकानेर के पास रहने वाले बाबा सुक्खा सिंह व बाबा महताब सिंह तक पहुंच गई...बस फिर क्या था...ये दोनो वीर योद्धा मुगल अफसरों के भेष में मस्सा रंगड़ के कैंप तक पहुंचे और उसकी गर्दन काटकर बीकानेर वापस आ गए...रास्ते में सिक्ख कौम के इन दोनो सूरमाओं ने हनुमानगढ़ स्थित एक पेड़ के नीचे विश्राम किया था इस पेड़ को स्थानीय भाषा में बाणी भी कहते हैं और ये बाणी आज उसी स्थान पर जस की तस मौजूद है और साथ ही श्रद्दालुओँ ने कार सेवा के ज़रिये यहां एक विशाल गुरूद्वारा भी बनवा दिया...इस गुरूद्वारे में हर साल जोड़मेला लगता है जहां दूर दराज़ से लाखों की संख्या में सिक्ख संगत पहुंचती है और कौम के इन योद्धाओं को याद करते हुए गुरू ग्रंथ साहिब के सामने शीश नवाती है...जोड़मेले के समय गुरूद्वारे की शोभा देखने लायक होती है खासकर रात के समय यहां ज़बर्दस्त सजावट की जाती है व कीर्तन पाठ होता है.. कहानी को लेकर हनुमानगढ़ के एतिहासिक गुरुद्वारा बाबा सुखा सिंह बाबा महताब सिंह में 10 सितम्बर सालाना जोड़ मेले का आयोजन किया जाता है मेले के दौरान यहाँ सेंकडों कि संख्या में दूर दराज से श्रद्धालु पहुँचते हैं विशेषकर पंजाब राज्य से काफी श्रद्धालु यहाँ पहुँचते है तीन चार दिन चलने वाले इस मेले में कई प्रतियोगिताये भी करवाई जाती है जिसमे प्रमुख रूप से कबड्डी के मैच करवाए जाते हैं, वर्तमान समय में गुरूद्वारे के प्रमुख सेवादार बाबा बलकार सिंह है जिनके नेत्रित्व में गुरूद्वारे कि सेवा 24 घंटे चलती रहती है..गुरूद्वारे के सेवादार राजेन्द्र सिंह रोमाना की माने तो गुरूद्वारे परिसर में मौजूद एतिहासिक पेड़ पर वे लोग मन्नते मांगे हैं जिनकी शादी न हो रही हो या फिर जिनके ओलाद न हो और यहाँ मांगी गयी मन्नत जरुर पूरी होती है | हर साल आयोजित होने वाले मेले में प्रतिवर्ष लाखों की संख्या ने श्रद्धालु पहुँचते हैं और गुरु ग्रन्थ साहिब के आगे शीश नवाते हैं, इतना ही नहीं गुरूद्वारे की कमेटी द्वारा हर साल गरीब व् निर्धन कन्याओं कि शादी के लिए सहयोग भी किया जाता है साथ ही याना 24 घंटे लंगर कि भी व्यवस्था रहती है गुरूद्वारे के मुख्य सेवादार बाबा बलकार सिंह स्वयं गाँव गाँव जा जा कर गुरूद्वारे के लिए सेवा इकट्ठी करते हैं और निर्धन व परेशान लोगों कि मदद में आगे रहते है
बाईट: सेवादार राजेन्द्र सिंह रोमाना हिंदी में
बाईट: सेवादार राजेन्द्र सिंह रोमाना पंजाबी में
पीटूसी : गुलाम नबी



Conclusion:निश्चित तौर पर बाबा सुखासिंह महताबसिंह गुरुद्वारा एक बहुत बड़ा ऐतिहसिक गुरुद्वारा है जिसे हम हनुमानगढ़ ही नहीं पुरे देश कि शान कह सकते है ये गुरुद्वारा वीर योधाओं की याद आज भी दिलाता है इस गुरूद्वारे को देख मन में गरीब असहाय व पीड़ित लोगों कि मदद करने के लिए मन में जज्बा पैदा करता है ...सलाम है उन वीर योधा सुखासिंह महताबसिंह को जिन्होंने एक दुष्ट व्यक्ति की गर्दन को काट लाखो परेशान लोगों कि मदद की थी
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