हनुमानगढ़. हनुमानगढ़ ही नहीं बल्कि पूरे भारत देश का ऐतिहासिक ये गुरुद्वारा 2 सिक्ख योद्धाओं बाबा सुक्खा सिंह और बाबा महताब सिंह की याद में बनाया गया है. यह आकर्षक नक्काशी का एक ऐसा नमूना है, जिसे देखते ही मन मंत्रमुगध हो जाता है.
गुरुद्वारे का स्वर्णिम इतिहास
जानकारी के अनुसार, सन 1741 में अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर में मुगल फौज का कमांडर मस्सा रंगड़ अनैतिक कार्य करवा रहा था और उसके इन कार्यों की खबर बीकानेर के पास रहने वाले बाबा सुक्खा सिंह और बाबा महताब सिंह तक पहुंच गई. बस फिर क्या था. ये दोनों वीर योद्धा मुगल अफसरों के भेष में मस्सा रंगड़ के कैंप तक पहुंचे और उसकी गर्दन काटकर बीकानेर वापस आ गए. तब रास्ते में सिक्ख कौम के इन दोनों सूरमाओं ने हनुमानगढ़ स्थित एक पेड़ के नीचे विश्राम किया था. इस पेड़ को स्थानीय भाषा में बाणी भी कहते हैं और ये बाणी आज उसी स्थान पर जस की तस मौजूद है. इसी जगह पर श्रद्धालुओं ने यहां एक विशाल गुरुद्वारा बनवा दिया.
इस गुरुद्वारे में हर साल जोड़ मेला लगता है. इस मेले में दूर-दराज से लाखों की संख्या में सिक्ख संगत पहुंचती है और इन योद्धाओं को याद करते है तथा गुरु ग्रंथ साहिब के सामने शीश नवाते हैं. जोड़ मेले के समय गुरुद्वारे की शोभा देखने लायक होती है. खासकर रात के समय यहां की सजावट देखने लायक होती है. तीन-चार दिन चलने वाले इस मेले में कई प्रतियोगिताएं भी करवाई जाती है. जिनमें प्रमुख रूप से कबड्डी के मैच करवाए जाते हैं. वर्तमान समय में गुरुद्वारे के प्रमुख सेवादार बाबा बलकार सिंह है. जिनके नेतृत्व में गुरुद्वारे की सेवा 24 घंटे चलती रहती है.
यहां मांगी गई मन्नतें होती हैं पूरी
गुरुद्वारे के सेवादार राजेन्द्र सिंह रोमाना ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान बताया कि गुरुद्वारा परिसर में मौजूद एतिहासिक पेड़ पर वे लोग मन्नते मांगे हैं, जिनकी शादी न हो रही हो या फिर जिनके औलाद न हो और यहां मांगी गई हर मन्नत पूरी भी होती है. गुरुद्वारे की कमेटी हर साल गरीब और निर्धन कन्याओं की शादी के लिए सहयोग भी करती है. साथ ही यहां 24 घंटे लंगर कि भी व्यवस्था रहती है. गुरुद्वारे के मुख्य सेवादार बाबा बलकार सिंह स्वयं गांव-गांव जाकर गुरुद्वारे के लिए सेवा इकट्ठी करते हैं और निर्धन और परेशान लोगों की मदद में आगे रहते है.
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निश्चित तौर पर बाबा सुखासिंह महताबसिंह गुरुद्वारा एक बहुत बड़ा ऐतिहसिक गुरुद्वारा है. इस गुरुद्वारे को देख मन में गरीब, असहाय और पीड़ित लोगों की मदद करने के लिए मन में जज्बा पैदा होता है. सलाम है उन वीर योद्धा सुखासिंह महताबसिंह को, जिन्होंने एक दुष्ट व्यक्ति की गर्दन को काट लाखों असहाय लोगों की मदद की थी.