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स्पेशल रिपोर्ट: डूंगरपुर में गायों की अनूठी दौड़, प्रथम आने वाली गाय का रंग तय करता है कैसा रहेगा आने वाला साल

डूंगरपुर जिला विविध धार्मिक आयोजन, अनुष्ठान और परम्पराओं से भरा है. इन्हीं में से एक है यहां दीपावली के बाद नए साल पर होने वाली गायों की दौड़. यहां गायों को दौडाने की प्रथा का विशेष आयोजन दीपावली के दूसरे दिन कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा को होता है. इस अनोखी परंपरा के तहत गाय दौड़ा कर आने वाला साल कैसा रहेगा, इसका अनुमान लगाया जाता है.

Cow race competitiveness Dungarpur, गाय दौड़ प्रतियोगीता डूंगरपुर
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Published : Oct 29, 2019, 12:49 PM IST

डूंगरपुर. छापी गांव सहित वागड़ क्षेत्र के कई गांवों में सदियों से आदिवासी गायों को दौड़ाने की प्रथा का आयोजन करते है. प्रथा के तहत दीपावली के दूसरे दिन यानी नए साल के दिन आदिवासी और किसान सुबह जल्दी उठ कर अपने पशुओं को नहलाते हैं. इसके बाद पशुओं को आकर्षक तरीके से रंगा जाता है और फिर उन्हें लाल रंग की रमजी, गले में घुंघरू, उठी, मोर पंख, शीशे से जड़ा हुआ कड़वा बांध कर सजाया जाता है. सजाने के बाद पशुओं की पूजा की जाती है. मालिक गायों के सामने खड़े होकर प्रणाम करते है और गऊ माता से कहते है कि, हे गौ माता हमारी रक्षा करना.

डूंगरपुर में अनूठी गाय दौड़

यहां लोग कृषि पर निर्भर होकर पशुओं के सहारे ही अपनी जिंदगी का गुजर-बसर करते हैं. ऐसे में गायों की दौड़ से आने वाले वर्ष में मौसम और साल की जानकारी प्राप्त करते है. तय समय और स्थान पर गांव की तमाम गायों को इकठ्ठा करने के बाद ढोल कुंडी थाप लगाई जाती है, जिसमें पशु दौड़ते हुए उस रस्सी नुमा तोरण के नीचे से भागते है जो नववर्ष के दिन बांधा जाता है. गायों की दौड़ के समय पटाखे छोड़े जाते है और गायों को भड़काया जाता है. किसान भी जोर-जोर से चिल्लाते हुए गायों के साथ दौड़ते है.

पढे़ं- सांपला में अन्नकूट महोत्सव के दौरान मेले का आयोजन, भगवान के विमान के नीचे से नहीं निकली गो माता, अकाल के संकेत

मान्यता है कि इस दौड़ में सफेद रंग की गाय आगे निकलती हें तो आने वाला साल अच्छा निकलेगा. फसलें अच्छी होगी व मजदूरी भी अच्छी मिलेगी. वहीं काले रंग की गाय आगे निकलती है तो वर्ष अशुभ माना जाता है. माना जाता है कि उस साल फसलें ठीक नहीं होगी अकाल पड़ेगा, यदि लाल या अन्य रंग की गाय निकली तो वर्ष साधारण माना जाता है.

पढे़ं- मंदिर में जैसे ही प्रभु श्रीनाथजी ने लगाया छप्पन भोग, दौड़ते हुए आए आदिवासी युवा और लूट ले गए प्रसाद

डूंगरपुर जिले की बिछीवाड़ा पंचायत समिति के छापी गांव में भी सोमवार को परंपरागत गाय दौड़ का आयोजन हुआ. इस गाय दौड़ में सफेद गाय के आगे निकलने से ग्रामीणों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी और सभी ने एक-दूसरे को गुड़ खिलाकर मुंह मीठा कराया.

डूंगरपुर. छापी गांव सहित वागड़ क्षेत्र के कई गांवों में सदियों से आदिवासी गायों को दौड़ाने की प्रथा का आयोजन करते है. प्रथा के तहत दीपावली के दूसरे दिन यानी नए साल के दिन आदिवासी और किसान सुबह जल्दी उठ कर अपने पशुओं को नहलाते हैं. इसके बाद पशुओं को आकर्षक तरीके से रंगा जाता है और फिर उन्हें लाल रंग की रमजी, गले में घुंघरू, उठी, मोर पंख, शीशे से जड़ा हुआ कड़वा बांध कर सजाया जाता है. सजाने के बाद पशुओं की पूजा की जाती है. मालिक गायों के सामने खड़े होकर प्रणाम करते है और गऊ माता से कहते है कि, हे गौ माता हमारी रक्षा करना.

डूंगरपुर में अनूठी गाय दौड़

यहां लोग कृषि पर निर्भर होकर पशुओं के सहारे ही अपनी जिंदगी का गुजर-बसर करते हैं. ऐसे में गायों की दौड़ से आने वाले वर्ष में मौसम और साल की जानकारी प्राप्त करते है. तय समय और स्थान पर गांव की तमाम गायों को इकठ्ठा करने के बाद ढोल कुंडी थाप लगाई जाती है, जिसमें पशु दौड़ते हुए उस रस्सी नुमा तोरण के नीचे से भागते है जो नववर्ष के दिन बांधा जाता है. गायों की दौड़ के समय पटाखे छोड़े जाते है और गायों को भड़काया जाता है. किसान भी जोर-जोर से चिल्लाते हुए गायों के साथ दौड़ते है.

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मान्यता है कि इस दौड़ में सफेद रंग की गाय आगे निकलती हें तो आने वाला साल अच्छा निकलेगा. फसलें अच्छी होगी व मजदूरी भी अच्छी मिलेगी. वहीं काले रंग की गाय आगे निकलती है तो वर्ष अशुभ माना जाता है. माना जाता है कि उस साल फसलें ठीक नहीं होगी अकाल पड़ेगा, यदि लाल या अन्य रंग की गाय निकली तो वर्ष साधारण माना जाता है.

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डूंगरपुर जिले की बिछीवाड़ा पंचायत समिति के छापी गांव में भी सोमवार को परंपरागत गाय दौड़ का आयोजन हुआ. इस गाय दौड़ में सफेद गाय के आगे निकलने से ग्रामीणों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी और सभी ने एक-दूसरे को गुड़ खिलाकर मुंह मीठा कराया.

Intro:डूंगरपुर। राजस्थान का जनजाति बाहुल्य डूंगरपुर जिला विविध धार्मिक आयोजन अनुष्ठान व परम्पराओं से भरा पड़ा है। यहा गायो को दौडाने की प्रथा का विशेष आयोजन दीपावली के दूसरे दिन कार्तिक शुक्ला एकम को होता है। इस अनोखी परंपरा के तहत गाय दौड़ा कर आने वाले साल कैसा होगा इसका अनुमान लगाया जाता है। आखिर कैसे गाय आने वाले साल का हॉल बताती है देखे इस रिपोर्ट में।Body:डूंगरपुर जिले के छापी गांव सहित वागड़ क्षेत्र के कई गांवो में सदियों से आदिवासी इस प्रथा को मनाते आ रहे है। प्रथा के तहत दीपावली के दूसरे दिन यानि नए साल के दिन आदिवासी और किसान सुबह जल्दी उठ कर अपने पशुओ का स्नान कराते हें| इसके बाद में अपने पशुओ को आकर्षक तरीके से रंगते है। पशुओ को लाल रंग की रमजी, गले में घुंघरा, उठी, मोर पंख, शीशे से जड़ा हुआ कड़वा बांध कर सजाया जाता है। श्रंगार के बाद पशुओ की पूजा की जाती है। गाय मालिक गायो के सामने खड़ा होकर प्रणाम करते है और गऊ माता से कहते है कि हे गौ माता हमारी रक्षा करना।
यहा पर लोग कृषि पर निर्भर होकर पशुओ के सहारे ही अपनी जिंदगी का गुजर -बसर करते है। ऐसे में गायों की दौड़ से आने वाले वर्ष की मौसम की जानकारी प्राप्त करते है। तय समय और स्थान पर गांव की तमाम गायों को इकठ्ठा करने के बाद ढोल कुंडी थाप लगाई जाती है, जिसमे पशु दौड़ते हुए उस रस्सी नुमा तोरण के नीचे से भागते है जो नववर्ष के दिन बांधा जाता है। गायों की दौड़ के समय पठाखे छोड़ते है तथा गायों को भड़काया जाता है। इस दौरान किसान भी जोर-जोर से चिल्लाते हुए गायों के साथ दौड़ते है। मान्यता यह है कि इस दौड़ में सफेद रंग की गाय आगे निकलती हें तो आने वाला साल अच्छा निकलेगा। फसले अच्छी होगी व मजदूरी भी अच्छी मिलेगी। वही काले रंग की गाय निकलीती है तो वर्ष अशुभ माना जाता है। इस साल में फसले ठीक नहीं होगी अकाल पड़ेगा, यदि लाल या अन्य रंग की गाय निकली तो वर्ष साधारण माना जाता है।
डूंगरपुर जिले की बिछीवाडा पंचायत समिति के छापी गांव में भी सोमवार को परंपरागत गाय दौड़ का आयोजन हुआ। इस गाय दौड़ में सफ़ेद गाय के आगे निकलने से ग्रामीणों में ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी और लोगो ने एक-दुसरे को गुड खिलाकर मुह मीठा कराया जाता है।

बाईट- भूपेंद्रसिंह देवला, समाजसेवी/गाय दौड़ के जानकारConclusion:
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