डूंगरपुर. छापी गांव सहित वागड़ क्षेत्र के कई गांवों में सदियों से आदिवासी गायों को दौड़ाने की प्रथा का आयोजन करते है. प्रथा के तहत दीपावली के दूसरे दिन यानी नए साल के दिन आदिवासी और किसान सुबह जल्दी उठ कर अपने पशुओं को नहलाते हैं. इसके बाद पशुओं को आकर्षक तरीके से रंगा जाता है और फिर उन्हें लाल रंग की रमजी, गले में घुंघरू, उठी, मोर पंख, शीशे से जड़ा हुआ कड़वा बांध कर सजाया जाता है. सजाने के बाद पशुओं की पूजा की जाती है. मालिक गायों के सामने खड़े होकर प्रणाम करते है और गऊ माता से कहते है कि, हे गौ माता हमारी रक्षा करना.
यहां लोग कृषि पर निर्भर होकर पशुओं के सहारे ही अपनी जिंदगी का गुजर-बसर करते हैं. ऐसे में गायों की दौड़ से आने वाले वर्ष में मौसम और साल की जानकारी प्राप्त करते है. तय समय और स्थान पर गांव की तमाम गायों को इकठ्ठा करने के बाद ढोल कुंडी थाप लगाई जाती है, जिसमें पशु दौड़ते हुए उस रस्सी नुमा तोरण के नीचे से भागते है जो नववर्ष के दिन बांधा जाता है. गायों की दौड़ के समय पटाखे छोड़े जाते है और गायों को भड़काया जाता है. किसान भी जोर-जोर से चिल्लाते हुए गायों के साथ दौड़ते है.
मान्यता है कि इस दौड़ में सफेद रंग की गाय आगे निकलती हें तो आने वाला साल अच्छा निकलेगा. फसलें अच्छी होगी व मजदूरी भी अच्छी मिलेगी. वहीं काले रंग की गाय आगे निकलती है तो वर्ष अशुभ माना जाता है. माना जाता है कि उस साल फसलें ठीक नहीं होगी अकाल पड़ेगा, यदि लाल या अन्य रंग की गाय निकली तो वर्ष साधारण माना जाता है.
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डूंगरपुर जिले की बिछीवाड़ा पंचायत समिति के छापी गांव में भी सोमवार को परंपरागत गाय दौड़ का आयोजन हुआ. इस गाय दौड़ में सफेद गाय के आगे निकलने से ग्रामीणों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी और सभी ने एक-दूसरे को गुड़ खिलाकर मुंह मीठा कराया.