आसपुर (डूंगरपुर). कहते है महिला को घर में ही रहकर चूल्हा चौका संभालने और परिवार की जिम्मेदारी निभानी होती है. आज के युग मे महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही है. लेकिन बीते सालों में महिलाओं का नौकरी तो दूर घर से बाहर कदम रखना भी मुश्किल था. ऐसे में जिले की एक बेटी ने जिद्द करी और परिवार के लिए नौकरी पाई. संघर्ष मय जीवन के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और तीन बच्चों को भी उच्च शिक्षा देकर इन्हें भी नौकरी के लायक बनाया जो नौकरी पाने की कतार में हैं.
हम बात कर रहे हैं सागवाड़ा उपखण्ड क्षेत्र की कोकापुर गांव में रहने वाली नर्स रेखादेवी पत्नी देवेंद्र पी गोस्वामी की. रेखा का पीहर मांडव में है और उनका विवाह कोकापुर में देवेंद्र गोस्वामी के साथ 16 साल की आयु में ही हो गया था तब उन्होंने 10 कक्षा उत्तीर्ण की थी. रेखा को पढ़ने का जुनून था, लेकिन समाज मे बेटियों को पढ़ाकर नौकरी करने का रिवाज नहीं था. ऐसे में पढ़ाई नहीं करने पर पाबन्दी लगाई, लेकिन रेखा पढ़ने में होशियार थी तो सबने उसे पढ़ने के लिए प्रेरित किया और पति ने उसका साथ दिया.
रेखा की हीम्मत और हौसला देखकर पीहर व ससुराल पक्ष का सहयोग मिला. भाई राशन सामग्री लेकर बांसवाड़ एमजी हॉस्पिटल पहुंचता और बहन को ढूंढकर सामग्री देता. क्योंकि उस समय मोबाइल की सेवाएं नहीं थी. रेखा की मेहनत रंग लाई और साल 1996 दिसम्बर में कुशलगढ़ में प्रथम नियुक्ति मिली. हाल ही में काब्जा उप स्वास्थ्य सेंटर पर साल 2003 से कार्यरत है.
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समय के साथ साथ साल 2011 में पति देवेंद्र की ह्र्दयगति रुकने से निधन हो गया. लेकिन तीन बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी कंधों पर आने से स्वयं ने मजबूत होकर परिवार को संभालते हुए बड़ी पुत्री जाग्रति को एम कॉम कराकर विवाह कराया. छोटी पुत्री रवीना एसएमएस जयपुर में डॉक्टर की ट्रेनिंग कर रही है. वहीं पुत्र जय ने बीएससी बीएड कर रीट की तैयारी कर रहा है.
महिला की कड़ी मेहनत की कहानी
कड़ी मेहनत,लगन और दृढ़ इच्छाशक्ति से की गई मेहनत कभी बेकार नहीं जाती. कुछ ऐसा ही उदाहरण जिले के आसपुर उपखण्ड क्षेत्र के पूंजपुर गांव की शीला जैन ने साबित कर दिखाया है. हम बात कर रहे है पूंजपुर निवासी शीला देवी पत्नी जितेंद्र जैन की. शीला को पढ़ने की काफी इच्छा थी, लेकिन शादी के बाद पति का किराणा का व्यवसाय होने की वजह से ससुराल वालों ने पढ़ाई के लिए मना किया तो 12वीं की पढ़ाई अधूरी छोड़नी पड़ी और किराणा वयवसाय में पति की मदद करने लगी.
इसी बीच 3 मई 2006 को पति जितेंद्र जैन की ह्र्दयगति रुकने से मौत हो गई. इनकी मौत होते ही शीला पर तीन बेटियों और एक बेटे का पालन पोषण के साथ शिक्षा की जिम्मेदारी कंधों पर आ गई. शीला ने इस जिम्मेदारी को बखूबी से निभाते हुए बच्चो को पढ़ाया. भगवान ने भी शीला का साथ दिया और वसुंधरा सरकार में विधवा परिवेकता योजना में तृतीय श्रेणी में शिक्षिका बनी.