ETV Bharat / state

स्पेशल: एक मंदिर...जहां बलि के बाद भी लोग हो जाते थे जिंदा!

राजस्थान का आदिवासी अंचल वागड़ कई परंपराओं, मान्यताओं और धार्मिक आस्थाओं का केंद्र रहा है. यहां दैवीय मंदिरों की चमत्कारिक कहावतें भी बहुत ही प्रचलित हैं. एक ऐसा ही चमत्कारिक मंदिर है, भेड़माता. जहां मान्यता है कि हजारों साल पहले यहां बेटे की बलि दी जाती थी और फिर दामाद की. लेकिन माता के आशीर्वाद से जिसकी बलि दी जाती थी, वह फिर से जिंदा हो जाता था, ऐसी मान्यता है.

डूंगरपुर की खबर, used to be sacrificed, आशीर्वाद से हो जाते थे जिंदा
भेड़माता मंदिर की तलहटी में ही माता की पूजा-अर्चना करते हैं श्रद्धालु
author img

By

Published : Nov 29, 2019, 12:30 PM IST

Updated : Nov 29, 2019, 12:43 PM IST

डूंगरपुर. शहर से करीब 20 किलोमीटर दूर भेड़माता मंदिर सागवाड़ा रोड़ पर डोजा पंचायत से गुजर रही मोरन नदी के तलहटी में स्थित है. माता का पुराना मंदिर ऊंची पहाड़ी पर है. लेकिन श्रद्धालु अब तलहटी में ही माता की पूजा-अर्चना करते हैं. माता को भेड़माता इसलिए भी कहा जाता है, क्योंकि माता हमेशा ही संकट के समय रक्षा करती हैं और माता के दरबार में आकर जो भी श्रद्धालु अपनी मन्नते मांगता है, उसे माता जरूर पूरा करती है.

एक ऐसा मंदिर जहां बलि के बाद जिंदा हो जाते थे इंसान...ऐसी मान्यता है

संवाददाता जब इस सच्चाई को जानने भेड़माता मंदिर पंहुचे, जहां मंदिर के अध्यक्ष विजयपाल रोत के साथ ही महामंत्री राजमल रोत, पुजारी देवजी भगत और मेघजी भगत के साथ मुलाकात हुई. संवाददाता ने जब वहां मौजूद लोगों से मंदिर के इतिहास और परंपराओं के बारे में जाना तो कई रौचक और चमत्कारिक बाते सामने आईं, जो हजारों श्रद्धालुओं की आगाध आस्था को आज भी प्रगाढ़ बनाए हुए है.

मंदिर के महामंत्री राजमल रोत बताते हैं कि भेड़माता मंदिर का इतिहास राजा-महाराजाओं के शासनकाल के समय का हजारों साल पुराना है. भेड़माता आदिवासी समाज के रोत गोत्र की कुलदेवी है और यहां हर धर्म, समुदाय के लोग माता के प्रति सच्ची आस्था रखते हैं.

भेड़माता मंदिर से जुड़ी कहानी...

महामंत्री राजमल रोत, डोजा सरपंच गटूलाल रोत, पुजारी देवजी भगत बताते हैं कि राजा-महाराजाओं के समय मे मेवाड़ राजघराने के थान सिंह ओर मान सिंह दोनों भाई बांसवाड़ा जा रहे थे. उस समय वे बुरीदरा में रामा के घर ठहरे, जहां उनके भोजन का इंतजाम भी किया गया. उनके साथ माता आशापुरा भी थी. भोजन के समय थान सिंह ने मदिरा पान कर लिया तो माता आशापुरा क्रोधित हो गई और कहा अब वे बांसवाड़ा नहीं जा सकते और उन्हें विजय भी नहीं मिलेगी. इसलिए उन्हें मेवाड़ वापस जाना पड़ेगा. तब थान सिंह ने माता से अरज (प्रार्थना) की तो माता ने उन्हें हरण माता (कष्टों को हरने वाली) के रूप में साथ रहने का आशीर्वाद दिया.

राजमल रोत ने बताया कि माता के कहे अनुसार थान सिंह मोरन नदी के पास पहाड़ी पर आकर ठहराव किया. इस दौरान थान सिंह के 3 पुत्र हुए और माता ने उनके बड़े बेटे लेम सिंह की बलि देने के लिए कहा. उस समय से बेटों की बलि दी जाने लगी, लेकिन बाद में यहां बेटों की जगह बेटे की तरह ही माने जाने वाले दामाद की बलि दी जाने लगी और फिर समय के साथ परंपराएं बदली और अब जानवरों की बलि दी जा रही है.

पढ़ें: यहां बच्चे स्कूल पहुंचने के लिए पार कर रहे हैं 'मौत का दरिया'...डर के साये में जी रहे गांव के लोग

यहां बीज पर भरता है 3 दिनों तक मेला, मंदिर के जीर्णोद्धार का काम भी जारी...

ग्राम पंचायत डोजा के सरपंच गटूलाल रोत बताते हैं कि भेड़माता आदिवासी समुदाय में रोत गोत्र की कुलदेवी हैं. इसलिए यहां कई लोग दर्शनों के लिए आते हैं. हर साल मंदिर में मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की बीज के उपलक्ष्य में मेला लगता है. 3 दिनों तक चलने वाले मेले में डूंगरपुर, बांसवाड़ा सहित राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश के कोने-कोने से देवी के श्रद्धालु आते हैं और यहां की परंपराओं के अनुसार माता की सच्चे मन से प्रार्थना करते हैं. सरपंच बताते हैं कि माता यहां आने वाले हर श्रद्धालु की मनोकामना को पूरा करती है. सरपंच ने यह भी बताया कि इन दिनों मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य चल रहा है, जिसमें कई बेहतर कार्य किये जा रहे हैं.

डूंगरपुर. शहर से करीब 20 किलोमीटर दूर भेड़माता मंदिर सागवाड़ा रोड़ पर डोजा पंचायत से गुजर रही मोरन नदी के तलहटी में स्थित है. माता का पुराना मंदिर ऊंची पहाड़ी पर है. लेकिन श्रद्धालु अब तलहटी में ही माता की पूजा-अर्चना करते हैं. माता को भेड़माता इसलिए भी कहा जाता है, क्योंकि माता हमेशा ही संकट के समय रक्षा करती हैं और माता के दरबार में आकर जो भी श्रद्धालु अपनी मन्नते मांगता है, उसे माता जरूर पूरा करती है.

एक ऐसा मंदिर जहां बलि के बाद जिंदा हो जाते थे इंसान...ऐसी मान्यता है

संवाददाता जब इस सच्चाई को जानने भेड़माता मंदिर पंहुचे, जहां मंदिर के अध्यक्ष विजयपाल रोत के साथ ही महामंत्री राजमल रोत, पुजारी देवजी भगत और मेघजी भगत के साथ मुलाकात हुई. संवाददाता ने जब वहां मौजूद लोगों से मंदिर के इतिहास और परंपराओं के बारे में जाना तो कई रौचक और चमत्कारिक बाते सामने आईं, जो हजारों श्रद्धालुओं की आगाध आस्था को आज भी प्रगाढ़ बनाए हुए है.

मंदिर के महामंत्री राजमल रोत बताते हैं कि भेड़माता मंदिर का इतिहास राजा-महाराजाओं के शासनकाल के समय का हजारों साल पुराना है. भेड़माता आदिवासी समाज के रोत गोत्र की कुलदेवी है और यहां हर धर्म, समुदाय के लोग माता के प्रति सच्ची आस्था रखते हैं.

भेड़माता मंदिर से जुड़ी कहानी...

महामंत्री राजमल रोत, डोजा सरपंच गटूलाल रोत, पुजारी देवजी भगत बताते हैं कि राजा-महाराजाओं के समय मे मेवाड़ राजघराने के थान सिंह ओर मान सिंह दोनों भाई बांसवाड़ा जा रहे थे. उस समय वे बुरीदरा में रामा के घर ठहरे, जहां उनके भोजन का इंतजाम भी किया गया. उनके साथ माता आशापुरा भी थी. भोजन के समय थान सिंह ने मदिरा पान कर लिया तो माता आशापुरा क्रोधित हो गई और कहा अब वे बांसवाड़ा नहीं जा सकते और उन्हें विजय भी नहीं मिलेगी. इसलिए उन्हें मेवाड़ वापस जाना पड़ेगा. तब थान सिंह ने माता से अरज (प्रार्थना) की तो माता ने उन्हें हरण माता (कष्टों को हरने वाली) के रूप में साथ रहने का आशीर्वाद दिया.

राजमल रोत ने बताया कि माता के कहे अनुसार थान सिंह मोरन नदी के पास पहाड़ी पर आकर ठहराव किया. इस दौरान थान सिंह के 3 पुत्र हुए और माता ने उनके बड़े बेटे लेम सिंह की बलि देने के लिए कहा. उस समय से बेटों की बलि दी जाने लगी, लेकिन बाद में यहां बेटों की जगह बेटे की तरह ही माने जाने वाले दामाद की बलि दी जाने लगी और फिर समय के साथ परंपराएं बदली और अब जानवरों की बलि दी जा रही है.

पढ़ें: यहां बच्चे स्कूल पहुंचने के लिए पार कर रहे हैं 'मौत का दरिया'...डर के साये में जी रहे गांव के लोग

यहां बीज पर भरता है 3 दिनों तक मेला, मंदिर के जीर्णोद्धार का काम भी जारी...

ग्राम पंचायत डोजा के सरपंच गटूलाल रोत बताते हैं कि भेड़माता आदिवासी समुदाय में रोत गोत्र की कुलदेवी हैं. इसलिए यहां कई लोग दर्शनों के लिए आते हैं. हर साल मंदिर में मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की बीज के उपलक्ष्य में मेला लगता है. 3 दिनों तक चलने वाले मेले में डूंगरपुर, बांसवाड़ा सहित राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश के कोने-कोने से देवी के श्रद्धालु आते हैं और यहां की परंपराओं के अनुसार माता की सच्चे मन से प्रार्थना करते हैं. सरपंच बताते हैं कि माता यहां आने वाले हर श्रद्धालु की मनोकामना को पूरा करती है. सरपंच ने यह भी बताया कि इन दिनों मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य चल रहा है, जिसमें कई बेहतर कार्य किये जा रहे हैं.

Intro:डूंगरपुर। राजस्थान का आदिवासी अंचल वागड़ कई परंपराओं, मान्यताओं और धार्मिक आस्थाओं का केंद्र रहा है। जहां दैवीय मंदिरों की चमत्कारिक कहावतें भी बहुत ही प्रचलित है। एक ऐसा ही चमत्कारिक मंदिर है भेड़माता। जहां मान्यता है कि हजारो साल पहले यहां बेटे की बलि दी जाती थी और फिर दामाद की, लेकिन माता के आशीर्वाद से जिसकी बलि दी गई है वह फिर से जिंदा हो जाता था, लेकिन समय बदला तो इन परंपराओ ने भी रूप बदला और बेटे व दामाद की जगह अब जानवरो की बलि चढ़ाई जाती है। मान्यता है कि बलि देने से माता खुश होती है और गांव, परिवार और समाज मे खुशहाली रहती है।


Body:भेड़माता मंदिर डूंगरपूर शहर से करीब 20 किलोमीटर दूर सागवाड़ा रोड़ पर डोजा पंचायत से गुजर रही मोरन नदी के तलहटी में स्थित है। माता का पुराना मंदिर ऊंची पहाड़ी पर है, लेकिन श्रद्धालु अब तलहटी में ही माता की पूजा-अर्चना करते है। माता को भेड़ माता इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि माता हमेशा ही संकट के समय रक्षा करती है और माता के दरबार मे आकर जो भी श्रद्धालु अपनी मन्नते मांगता है उसे माता जरूर पूरा करती है।
ईटीवी भारत की टीम इस सच्चाई को जानने भेड़माता मंदिर पंहुची, जहां मंदिर के अध्यक्ष विजयपाल रोत के साथ ही महामंत्री राजमल रोत, पुजारी देवजी भगत व मेघजी भगत के साथ मुलाकात हुई। ईटीवी भारत ने मौजूद लोगों से मंदिर के इतिहास और परंपराओं के बारे में जाना तो कई रौचक व चमत्कारिक बाते सामने आई जो हजारो श्रद्धालुओ की आगाध आस्था को आज भी प्रगाढ़ बनाएं हुए है।
मंदिर के महामंत्री राजमल रोत बताते है कि भेड़माता मंदिर का इतिहास राजा-महाराजाओं के शासनकाल के समय का हजारो साल पुराना है। भेड़माता आदिवासी समाज के रोत गोत्र की कुलदेवी है और यहां हर धर्म, समुदाय के लोग माता के प्रति सच्ची आस्था रखते है। राजमल ने आगे बताया कि बरसो पहले माता की आज्ञा से ही बेटे की बलि दी जाती थी। उस समय थानसिंह के बड़े बेटे लेमसिंह की बलि दी गई, लेकिन इसके बाद समय और परंपरा बदली तो बेटे की जगह दामाद की बलि चढ़ाई जाने लगी, उस समय कल्याणपुर के रायसिंह झाला की बलि दी जाने वाली थी लेकिन माता को प्रसन्न करने के लिए पूजा अर्चना।करते समय उनकी मूर्ति को उफनती हुई मोरन नदी में फेंक दिया गया।
राजमल रोत यह भी बताते है कि जिस किसी की बलि चढ़ाई जाती थी वह माता के आशीर्वाद से फिर से जिंदा भी हो जाता था। लेकिन समय के साथ परंपरा बदली ओर इसके बाद जानवरो की बलि चढ़ाई जाने लगी जो अभी भी बरकरार है। राजमल बताते है कि मातारानी को खुश करने के लिए बलि दी जाती है , जिससे सालभर मातारानी का आशीर्वाद समाज, गांव के लोगो पर रहता है और चारों ओर खुशहाली रहती है।

- भेड़माता मंदिर से जुड़ी कहानी
महामंत्री राजमल रोत, डोजा सरपंच गटूलाल रोत, पुजारी देवजी भगत बताते है कि राजा-महाराजाओं के समय मे मेवाड़ राजघराने के थानसिंह ओर मानसिंह दोनों भाई बांसवाडा जा रहे थे। उस समय वे बुरीदरा में रामा के घर ठहरे जहां उनके भोजन का इंतजाम भी किया गया। उनके साथ माता आशापुरा भी थे। भोजन के समय थानसिंह ने मदिरा पान कर लिया तो माता आशापुरा क्रोधित हो गई और कहा अब वे बांसवाडा नहीं जा सकते और उन्हें विजय भी नहीं मिलेगी। इसलिए उन्हें मेवाड़ वापस जाना पड़ेगा। तब थानसिंह ने माता से अरज (प्रार्थना) की कि तो माता ने उन्हें हरण माता (कष्टों को हरने वाली) के रूप में साथ रहने का आशीर्वाद दिया।
राजमल रोत ने बताया कि माता के कहे अनुसार थानसिंह मोरन नदी के पास पहाड़ी पर आकर ठहराव किया। इस दौरान थानसिंह के 3 पुत्र हुए और माता ने उनके बड़े बेटे लेमसिंह की बलि देने के लिए कहा। उस समय से बेटों की बलि दी जाने लगी, लेकिन बाद में यहां बेटों की जगह बेटे की तरह ही माने जाने वाले दामाद की बलि दी जाने लगी और फिर समय के साथ परंपराएं बदली ओर अब जानवरो की बलि दी जा रही है।

- यहां बीज पर भरता है 3 दिनों तक मेला, मंदिर के जीर्णोद्धार का काम भी जारी
ग्राम पंचायत डोजा के सरपंच गटूलाल रोत बताते है कि भेड़माता आदिवासी समुदाय में रोत गोत्र की कुलदेवी है, इसलिए यहां कई लोग दर्शनों के लिए आते है। हर साल मंदिर में मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की बीज के उपलक्ष्य में मेला भरता है। 3 दिनों तक चलने वाले मेले में डूंगरपुर, बांसवाडा सहित राजस्थान, गुजरात ओर मध्यप्रदेश के कोने-कोने से देवी के श्रद्धालु आते है और यहां की परंपराओं के अनुसार माता की सच्चे मन से प्रार्थना करते है। सरपंच बताते है कि माता यहां आने वाले हर श्रद्धालु की मनोकामना को पूरा करती है। सरपंच ने यह भी बताया कि इन दिनों मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य चल रहा है, जिसमें कई बेहतर कार्य किये जा रहे है।

बाईट 1- राजमल रोत, महामंत्री भेड़ माता मंदिर
बाईट 2- देवजी भगत, पुजारी भेड़ माता मंदिर
बाईट 3- गटूलाल रोत, सरपंच ग्राम पंचायत डोजा।


Conclusion:
Last Updated : Nov 29, 2019, 12:43 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.