डूंगरपुर. देशभर में लॉकडाउन के बाद लाखों श्रमिकों, मजदूर व नौकरीपेशा लोगों के रोजगार पर संकट आ गया. प्रवासी अपने काम-धंधे छोड़कर घरों को लौट आये तो उनके सामने आर्थिक संकट मंडराने लगा. इस आर्थिक संकट को दूर करने के लिए सरकार मनरेगा योजना से राहत पहुंचाने का प्रयास कर रही है. जिसमें एक दशक बाद डूंगरपुर में रिकॉर्ड 3 लाख 67 हजार मनरेगा श्रमिक नियोजित हुए हैं. इसमें से करीब 32 हजार प्रवासी श्रमिक हैं जो गुजरात, महाराष्ट्र या अन्य राज्यों व जिलों से रोजगार छूट जाने के कारण घर लौटकर आए हैं.
ईटीवी भारत ने मनरेगा कार्यों को लेकर हकीकत जानने का प्रयास किया. इसके लिए टीम शहर के पास स्थित भाटपुर गांव पहुंची, जहां भाटपुर तालाब पर बड़ी संख्या में श्रमिक काम लगे हुए थे. कार्यस्थल पर 3 मेट बृजेश कटारा, संदीप कटारा और सोहन कटारा कार्य की निगरानी में लगे थे. इस दौरान मेट ने बताया कि भाटपुर तालाब के गहरीकरण और पाल सुदृढ़ीकरण का कार्य चल रहा है. इस पर भाटपुर पंचायत के वार्ड संख्या 8 और 9 के 202 श्रमिक कार्यरत हैं, जिसमें से अभी 187 श्रमिक ही आये हैं.
कुछ इस हालत में दिखे श्रमिक...
मौके पर 41 डिग्री तापमान के बीच तपती दुपहरी में श्रमिक गेती-फावड़े से तालाब से मिट्टी की खुदाई करते नजर आए. इस दौरान कुछ महिला श्रमिक उस मिट्टी को तगारी में भरकर पाल तक ले जाकर डाल रही थी. वहीं पाल पर भी कुछ श्रमिक एक लकड़ी के डंडे से मिट्टी की कुटाई कर रहे थे. श्रमिकों को अलग-अलग गड्डों की खुदाई के काम में लगाया गया था. इसके अलावा भाटपुर पंचायत में धोमनिया फला पुलिया निर्माण, सामीतेड़ कच्ची सड़क निर्माण का कार्य भी मनरेगा के तहत चल रहा है.
श्रमिकों ने बताया कि लॉकडाउन के बाद से वे अपने घरों में ही थे. ना कोई काम धंधा था और ना ही कोई रोजगार था. ऐसे में घर चलाना भी मुश्किल हो गया था. उन्होंने बताया कि जैसे-तैसे दो महीने का वक्त गुजारा है, अब रोजगार गारंटी का काम मिला है, तो इससे काफी फायदा हुआ है. उन्होंने बताया कि घर के एक-दो या इससे अधिक लोगों को भी रोजगार दिया गया है, जिससे राहत मिली है.
छाया का इंतजाम नहीं, पानी के लिए दूर तक दौड़...
इस दौरान देखा गया कि भाटपुर तालाब कार्यस्थल पर छाया का कोई इंतजाम नहीं था. ऐसे में लोगों ने ही पेड़ों की कुछ टहनियों को तोड़कर तालाब के बीच रोप दिया था और ज्यादा गर्मी होने पर वहीं जाकर बैठते रहे थे. इसके अलावा पीने के पानी की भी कोई व्यवस्था नहीं थी, जब इस बारे में श्रमिकों से पूछा तो उन्होंने बताया कि यहां पानी उपलब्ध नहीं है, लेकिन दूर एक हैंडपम्प से पानी लेकर आते हैं. वहीं मौके पर मेडिकल किट भी उपलब्ध नहीं थी और ना ही कोई चिकित्सा विभाग से अब तक जांच के लिए आया हैं.
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202 श्रमिकों में से सिर्फ 22 पुरुष श्रमिक, बाकी 180 महिलाएं...
बता दें कि भाटपुर तालाब पर कुल 202 श्रमिक नियोजित हैं. इसमें सबसे खास बात है कि यहां पर कार्यरत कुल श्रमिक में से सिर्फ 22 ही पुरुष कार्यरत हैं, जबकि 180 महिला श्रमिक काम कर रही हैं. इन दिनों मनरेगा के तहत कार्य में सबसे ज्यादा महिलाएं ही रुचि लेकर काम कर रही हैं. महिला श्रमिकों ने बताया कि वे रोजाना सुबह जल्दी उठकर अपने घर का कामकाज निपटा कर मनरेगा कार्यस्थल पर आती हैं. वहीं काम होने के बाद फिर घर जाकर घरेलू कामकाज करना पड़ता है.