डूंगरपुर. प्रदेश से लेकर जिला स्तर पर कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी बहुत हद तक बढ़ चुकी है. जिसका खामियाजा कांग्रेस को पहले लोकसभा चुनावों में झेलना पड़ा तो वहीं अब पंचायतीराज चुनावों में भी कांग्रेस को यहीं डर सता रहा है. कांग्रेस की नैया गुटबाजी के कारण डगमगाती नजर आ रही है.
आजादी के बाद से कांग्रेस के इतिहास पर नजर दौड़ाए तो 61 सालों में से 56 साल तक पंचायतीराज में कांग्रेस का एकछत्र राज रहा, चाहे वह जिला परिषद के चुनाव हो या पंचायत समितियों के चुनाव हो. इन सभी चुनावों में अधिकतर कांग्रेस के ही जिला प्रमुख और प्रधान चुनकर आए.
आंकड़ों पर गौर करें तो 1959 से लेकर अब तक डूंगरपुर जिला परिषद में 15 जिला प्रमुख बने. जिसमें 13 कांग्रेस के जिला प्रमुख रहे. 2015 में पहली बार भाजपा ने कांग्रेस से इस सीट को छीन लिया और भाजपा जिला प्रमुख बनाने में कामयाब रही. हालांकि, इस बीच एक समय ऐसा भी आया, जब कुछ समय के लिए भाजपा के कार्यवाहक जिला प्रमुख रहे लेकिन अधिकतर सीटों पर कांग्रेस ही काबिज रही.
वर्चस्व की लड़ाई में पनप रही गुटबाजी, नुकसान कांग्रेस को
कांग्रेस में प्रदेश से लेकर जिले के नेताओ में वर्चस्व की लड़ाई दिखाई दे रही है. प्रदेश में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ओर पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट की खींचतान किसी से छुपी हुई नही है. वहीं डूंगरपुर जिले में भी कांग्रेस कई खेमों में बंटी हुई है लेकिन सबसे बड़े दो धड़ों की बात करे तो एक धड़ा पूर्व सांसद के साथ है तो वहीं दूसरा खेमा निवर्तमान जिलाध्यक्ष का है.
पिछले सितंबर महीने में जिले में हुए हिसंक आंदोलन के बाद जब जिले में जब प्रशासनिक अमले में तबादले हुए तो दोनों ही धड़े खुलकर आमने-सामने आ चुके हैं. दोनों धड़ों ने खुलकर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाए और यह मामला मुख्यमंत्री तक पंहुच गया.
इसके बाद से कांग्रेस के चाहे कोई बैठक हो या सम्मेलन कांग्रेस के दोनों धड़े बमुश्किल ही एक साथ बैठे हुए नजर आते है. हालांकि, पिछले दिनों पंचायतीराज चुनावों को लेकर हुए सम्मेलन में कांग्रेस के दोनों ही धड़े एक साथ जरूर दिखाई दिए, लेकिन उनकी अंदरूनी लड़ाई किसी से छुपी हुई नही है, जो इस पंचायतीराज चुनावों में कांग्रेस को भारी पड़ सकती है.
यहां भी परिवारवाद की होड़
लोकसभा और विधानसभा चुनावों में हमेशा ही परिवारवाद का मुद्दा छाया रहता है, लेकिन यहां पंचायतीराज चुनावों में भी परिवारवाद की होड़ सी दिखाई दे रही है. इस बार पंचायतीराज के चुनाव में कई कांग्रेस के बड़े नेता या तो खुद टिकिट के जुगाड़ में है या फिर अपने ही परिवार के किसी सदस्य को जिला परिषद या पंचायत समिति सदस्य की टिकिट मांग रहे हैं.
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नेता सार्वजनिक मंच पर पार्टी के जिताऊ ओर टिकाऊ उम्मीदवार की बात करते हुए दिखाई देते है, लेकिन जब बात परिवार की आती है तो वे सब बातें या नियम-कायदे ताक पर रख दिये जाते हैं.
गणेश घोघरा पर दारोमदार
प्रदेश में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच जब विवाद छिड़ा तक डूंगरपुर के एकमात्र युवा विधायक गणेश घोघरा को कांग्रेस ने युवा कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष बनाकर कमान सौपी.
अब उन्हीं पर डूंगरपुर जिले में कांग्रेस को एकजुटकर पंचायतीराज चुनावों में जीत का परचम लहराने का दारोमदार है. हालांकि, वे अधिकतर बैठकों में कांग्रेस को एकजुटता का पाठ पठाते हुए नजर आते है, लेकिन यह पाठ कितने नेताओ और कार्यकर्ताओं को समझ में आता है, यह देखने की बात है.