डूंगरपुर. प्रदेश में पंचायत चुनाव संपन्न हो गए हैं. चार चरणों में इस बार पंचायत चुनाव हुए, जिसका आखिरी चरण शनिवार 5 दिसंबर को था. वोटिंग के बाद से राजनीतिक पार्टियां अपना जिला प्रमुख और प्रधान बनाने के लिए समीकरण बनाने में जुट गई हैं. पार्टियों ने मतगणना से पहले ही अपने उम्मीदवारों की खरीद-फरोख्त के अंदेशे के चलते उनकी बाड़ेबंदी कर दी है. उम्मीदवारों को जीतने के बाद सीधे जिला प्रमुख और प्रधान के चुनाव के समय जाया जाएगा.
पिछले दिनों बांसवाडा के बागीदौरा से विधायक महेन्द्रजीत सिंह मालवीया के खरीद-फरोख्त के बयानों के बाद भाजपा ने अपने उम्मीदवारों की बाड़ेबंदी कर दी हैं तो वहीं कांग्रेस भी अपने उम्मीदवारों को एक रखने के लिए उन्हें अज्ञात जगह पर ले गई है. पहली बार पंचायत चुनावों में ताल ठोक रही बीटीपी दोनों बड़ी पार्टियों के समीकरण बिगाड़ सकती है. बाड़ेबंदी को लेकर कांग्रेस और भाजपा का कोई भी नेता खुलकर बोलने से बच रहा है.
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पार्टियों की रणनीति है कि 8 दिसंबर को मतगणना के बाद जीते हुए उम्मीदवारों को बाड़ेबंदी में ही रखा जाएगा और उन्हें सीधे जिला प्रमुख और प्रधान की वोटिंग के समय लाया जाएगा. वहीं हारे हुए प्रत्याशियों को नतीजे आने के बाद बाड़ेबंदी से भेज दिया जाएगा.
14 का जादुई आंकड़ा...
डूंगरपुर में इस बार जिला प्रमुख का पद एसटी महिला के लिए रिजर्व है. वहीं जिला परिषद में 27 सीटें हैं. जिला प्रमुख की कुर्सी पर काबिज होने के लिए 14 सीटें चाहिए होंगी. भाजपा लगातार दूसरी बार अपना जिला प्रमुख बनाने की योजना बना रही है तो वहीं कांग्रेस 2015 में 13 बार की अपनी विरासत को भाजपा से छीनने का प्रयास करेगी. इन सबके बीच भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP) किसको समर्थन देगी अभी कहा नहीं जा सकता.
जिला परिषद में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में बीटीपी की भूमिका अहम हो सकती है. ऐसे में माना जा रहा है कि राज्य सरकार में बीटीपी का समर्थन है, ऐसे में भाजपा को पंचायती राज की सत्ता से दूर करने के लिए बीटीपी कांग्रेस का समर्थन कर सकती है.
पंचायत समितियों में त्रिकोणीय मुकाबला...
डूंगरपुर में 10 पंचायत समितियां हैं. जहां भाजपा व कांग्रेस और बीटीपी मैदान में हैं. वहीं कई जगह पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी पार्टियों की चिंता बढ़ा दी है. ऐसे में पंचायत समितियों में बहुमत का आंकड़ा पाना किसी भी पार्टी के लिए मुश्किल रहेगा. ऐसे में बीटीपी व निर्दलीय उम्मीदवारों का रोल काफी महत्वपूर्ण हो जाएगा. निर्दलीय उम्मीदवार जिसके साथ जाएंगे ज्यादा चांस हैं कि प्रधान उसी पार्टी का बनेगा.