धौलपुर. जिले के सैपऊ कस्बे का ऐतिहासिक शिव मंदिर प्रशासन और सरकार की उदासीनता के चलते जर्जर और जीर्ण हो रहा है. जिससे कभी भी बड़ा हादसा घटित हो सकता है. मंदिर की दीवारें, छत, छतरियों और कंगूरों से आए दिन पत्थरों के बड़े-बड़े टुकड़े टूट कर गिरते रहते हैं.
200 साल पुरानी बेशकीमती इमारत प्रशासन और सरकार की उदासीनता के चलते अपने मूल अस्तित्व को खो रही है. जिले का एकमात्र विशाल राजकीय सुपुर्दगी श्रेणी का मंदिर मौजूदा वक्त में और प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार बना हुआ है. जिससे सनातन धर्म के भक्त और श्रद्धालुओं की आस्था को भारी चोट लग रही है.
गौरतलब है कि जिले के सैपऊ उपखण्ड मुख्यालय स्थित ऐतिहासिक शिव मंदिर मौजूदा वक्त में जिला प्रशासन और सरकार की घोर अनदेखी का शिकार बना हुआ है. हुकूमत की उदासीनता के चलते 200 साल पुरानी बेशकीमती धरोहर जर्जर और जीर्ण होने के कगार पर पहुंच रही है. भगवान आशुतोष का ऐतिहासिक प्राचीन मंदिर जिले के श्रद्धालुओं की आस्था का मुख्य केंद्र है. दक्षिण भारत में रामेश्वरम के बाद एकमात्र शिव जी का ऐतिहासिक शिव मंदिर देश में दूसरे नंबर पर अपनी पहचान रखता है. राज राजेश्वररम के नाम से विख्यात शिव मंदिर राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में श्रद्धालुओं की आस्था में समाया हुआ है.
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जहां सावन और फाल्गुन महीने में लक्खी मेले का आयोजन किया जाता है, लेकिन मौजूदा वक्त में मंदिर जिला प्रशासन और सरकार की घोर उपेक्षा का शिकार बना हुआ है. मंदिर की दीवारों में चौड़ी-चौड़ी दरार कभी भी बड़े हादसे का सबब बन सकती है. मंदिर की छत की पत्थर की पट्टियां टूटकर अधर में लटकी हुई है. जिनसे कभी भी बड़ा हादसा घटित हो सकता है. सती मंदिर के गुंबद पूरी तरह से जीर्ण हो चुकी है. मेहराब के ऊपर बड़ी-बड़ी घास उगने से दरार में बन गई है.
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मंदिर प्रशासन के पास फंड का अभाव होने की वजह से चारों तरफ गंदगी का आलम पसरा रहता है. जिससे श्रद्धालुओं की आस्था को भारी ठेस पहुंचती है. मंदिर का निर्माण लगभग 200 साल पहले धौलपुर रियासत के तत्कालीन महाराज कीरत सिंह के साले राजधर ने कराया था. मंदिर का शिवलिंग स्वयंभू है. जो 772 साल पहले प्रकट हुआ था. शिवलिंग की खुदाई कराने पर इसका आदि अंत नहीं पाया जा सका है.
सावन और फाल्गुन के महीने में विशाल लक्खी मेले का आयोजन किया जाता है. जिसमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान के लाखों की तादाद में कांवड़िए भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग पर गंगाजल अर्पित करने आते हैं. कलयुग में भगवान भोलेनाथ की विशेष महिमा मानी जाती है. भावना और श्रद्धा से पूजा अर्चना करने पर भगवान भोलेनाथ सभी की मनोकामना पूरी करते हैं. लेकिन संसार की मनोकामना पूरी करने वाले भगवान भोले नाथ सिस्टम और सिस्टम के जिम्मेदारों की तरफ देख रहे हैं.
मंदिर को मौजूदा वक्त में जीर्णोद्धार के लिए काफी फंड की जरूरत है. मंदिर महंत राम भरोसी पुरी ने बताया कि देवस्थान विभाग की ओर से महज 12 सौ रुपए सालाना भगवान शिव की भोग प्रसादी और पोशाक के लिए दिया जाता है. जो इस महंगाई के दौर में नाकाफी साबित होता है. भगवान के भोग प्रसादी पूजा आरती और पोशाक के साथ सफाई का खर्च लगभग 1 महीने का 50 हजार के करीब होता है. जिसे भगवान भोलेनाथ के श्रद्धालुओं की ओर से वहन किया जाता है.
पहली बार जब राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे बनी थी, उस वक्त 13 लाख रुपए मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए स्वीकृत किए थे, लेकिन उसमें से भी मात्र 9 लाख रुपए ही मंदिर की इमारत में लगाए गए थे. सरकार की उदासीनता के चलते बेशकीमती इमारत अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही है, लेकिन पर्यटन विभाग, देवस्थान विभाग और पुरातत्व विभाग कोई भी इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है. जिससे हिंदू और सनातन धर्म के श्रद्धालुओं में भारी आक्रोश देखा जा रहा है.