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धौलपुर का ऐतिहासिक शिव मंदिर खो रहा अस्तित्व, प्रशासन की अनदेखी ने कर दिया जर्जर

धौलपुर जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर सैपऊ कस्बे की पार्वती नदी के पास राजकीय सुपुर्दगी श्रेणी का ऐतिहासिक महादेव मंदिर देवस्थान विभाग और सरकार की घोर उपेक्षा का शिकार बना हुआ है. विभाग और सरकार की अनदेखी के चलते मंदिर जर्जर और जीर्ण होने लगा है.

धौलपुर का ऐतिहासिक शिव मंदिर,  historic Shiva temple of Dholpur
धौलपुर का ऐतिहासिक शिव मंदिर
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Published : Feb 15, 2020, 2:58 PM IST

धौलपुर. सैपऊ कस्बे की पार्वती नदी के पास स्थिति ऐतिहासिक महादेव मंदिर मौजूदा समय में देवस्थान विभाग, पुरातत्व विभाग और पर्यटन विभाग की घोर उपेक्षा का शिकार बना हुआ है. जिसके चलते मंदिर की हालत जर्जर और जीर्ण होती जा रही है. मंदिर की दीवारों पर पड़ी दरारें कभी भी बड़े हादसे का सबब बन सकती हैं. उसके साथ ही छत की पत्थरों की पट्टियाँ टूट रही हैं, जिससे कभी भी बड़ा हादसा घटित हो सकता है. मंदिर की छतरियां, कंगूरे और गुम्दब जर्जर और जीर्ण हो रहे है. साथ ही मंदिर के ऊपर आए दिन पत्थरों के टुकड़े गिरते रहते हैं. जिससे श्रद्धालु घायल भी होते हैं.

धौलपुर का ऐतिहासिक शिव मंदिर खो रहा अस्तित्व

मंदिर का निर्माण लगभग 2 सौ वर्ष पूर्व कराया गया था. लेकिन तब से अभी तक सरकार और प्रशासन ने इसके मेंटेनेंस के लिए फंड स्वीकृत नहीं किया है. जिसके कारण यह बेशकीमती इमारत अपने मूल स्वरूप को खोती जा रही है. महादेव मंदिर पर फाल्गुन और सावन माह की शिवरात्रि को लक्खी मेले का आयोजन किया जाता है. फाल्गुन माह का लक्खी मेला करीब 12 दिन तक चलता है. जिसमें मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा सहित राजस्थान के श्रद्धालु बड़ी आस्था और श्रद्धा के साथ पहुंचते हैं.

मंदिर पुजारी राम भरोसी गिरी ने बताया कि भगवान भोलेनाथ की भोग प्रसादी, पोशाक और संरक्षण के लिए देवस्थान विभाग महज 12 सौ रूपये वार्षिक देता है. जो मंहगाई के समय में नाकाफी साबित होते हैं. मंदिर महंत ने बताया मंदिर की सफाई और अन्य रख रखाव का खर्च मंदिर पर श्रद्धालुओं की ओर से किए गए चाढ़ावे से किया जाता है. मंदिर के रख-रखाव और बिजली खर्च का लगभग 50 हजार रूपए निजी स्तर पर वहन किए जाते हैं.

पढ़ें: मर गई इंसानियत! जिंदा सांड को ट्रैक्टर के पीछे बांध कर 5 किलोमीटर तक घसीटा

गौरतलब है कि देवस्थान विभाग की ओर से भगवान की भोग-प्रसादी, पोषक और शृंगार का खर्च वहन करना होता है. वहीं पुरातत्व विभाग को मंदिर की इमारत के जो अंग और पार्ट क्षतिग्रत हो गए हैं, उनको दुरुस्त कराना होता है. पर्यटन विभाग की ओर से मंदिर का प्रचार-प्रसार किया जाता है. साथ ही मंदिर पर पार्क, वाहन पार्किंग के साथ ट्यूरिस्टों को जोड़ा जाता है. मंदिर के संरक्षण और जीर्णोद्धार के लिए फंड स्वीकृत कर पुरातत्व विभाग को सुपुर्द किया जाता है. लेकिन राजस्थान सरकार के तीनों विभाग अपने जिम्मेदारी से दूर बने हुए हैं. जिससे जिले के भक्त और श्रद्धालुओं की आस्था को ठेस पहुंच रही है.

धौलपुर. सैपऊ कस्बे की पार्वती नदी के पास स्थिति ऐतिहासिक महादेव मंदिर मौजूदा समय में देवस्थान विभाग, पुरातत्व विभाग और पर्यटन विभाग की घोर उपेक्षा का शिकार बना हुआ है. जिसके चलते मंदिर की हालत जर्जर और जीर्ण होती जा रही है. मंदिर की दीवारों पर पड़ी दरारें कभी भी बड़े हादसे का सबब बन सकती हैं. उसके साथ ही छत की पत्थरों की पट्टियाँ टूट रही हैं, जिससे कभी भी बड़ा हादसा घटित हो सकता है. मंदिर की छतरियां, कंगूरे और गुम्दब जर्जर और जीर्ण हो रहे है. साथ ही मंदिर के ऊपर आए दिन पत्थरों के टुकड़े गिरते रहते हैं. जिससे श्रद्धालु घायल भी होते हैं.

धौलपुर का ऐतिहासिक शिव मंदिर खो रहा अस्तित्व

मंदिर का निर्माण लगभग 2 सौ वर्ष पूर्व कराया गया था. लेकिन तब से अभी तक सरकार और प्रशासन ने इसके मेंटेनेंस के लिए फंड स्वीकृत नहीं किया है. जिसके कारण यह बेशकीमती इमारत अपने मूल स्वरूप को खोती जा रही है. महादेव मंदिर पर फाल्गुन और सावन माह की शिवरात्रि को लक्खी मेले का आयोजन किया जाता है. फाल्गुन माह का लक्खी मेला करीब 12 दिन तक चलता है. जिसमें मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा सहित राजस्थान के श्रद्धालु बड़ी आस्था और श्रद्धा के साथ पहुंचते हैं.

मंदिर पुजारी राम भरोसी गिरी ने बताया कि भगवान भोलेनाथ की भोग प्रसादी, पोशाक और संरक्षण के लिए देवस्थान विभाग महज 12 सौ रूपये वार्षिक देता है. जो मंहगाई के समय में नाकाफी साबित होते हैं. मंदिर महंत ने बताया मंदिर की सफाई और अन्य रख रखाव का खर्च मंदिर पर श्रद्धालुओं की ओर से किए गए चाढ़ावे से किया जाता है. मंदिर के रख-रखाव और बिजली खर्च का लगभग 50 हजार रूपए निजी स्तर पर वहन किए जाते हैं.

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गौरतलब है कि देवस्थान विभाग की ओर से भगवान की भोग-प्रसादी, पोषक और शृंगार का खर्च वहन करना होता है. वहीं पुरातत्व विभाग को मंदिर की इमारत के जो अंग और पार्ट क्षतिग्रत हो गए हैं, उनको दुरुस्त कराना होता है. पर्यटन विभाग की ओर से मंदिर का प्रचार-प्रसार किया जाता है. साथ ही मंदिर पर पार्क, वाहन पार्किंग के साथ ट्यूरिस्टों को जोड़ा जाता है. मंदिर के संरक्षण और जीर्णोद्धार के लिए फंड स्वीकृत कर पुरातत्व विभाग को सुपुर्द किया जाता है. लेकिन राजस्थान सरकार के तीनों विभाग अपने जिम्मेदारी से दूर बने हुए हैं. जिससे जिले के भक्त और श्रद्धालुओं की आस्था को ठेस पहुंच रही है.

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