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विशेषः चम्बल किनारे बदहाली के आंसू रोता 'राजघाट' - City Council,

चंबल के मुहाने पर बसे राजघाट गांव की पीड़ा 'दीया तले अंधेरा' जैसी है. भीषण गर्मी में एक मटका पानी के लिए गांव के बाशिंदों को काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही है. नगर परिषद की जद में आने वाले इस गांव की तस्वीर बदलने के लिए कई स्वयंसेवी संस्थाएं दिन रात एक कर रही हैं. ईटीवी भारत ने राजघाट जाकर वहां के हालातों का जायजा लिया....देखें एक रिपोर्ट....

भीषण गर्मी में पेयजल के लिए 'राजघाट' के लोगों का संघर्ष
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Published : Jun 8, 2019, 11:19 PM IST

धौलपुर . विकास के दावों की सियासी तस्वीर के बीच ईटीवी भारत की टीम ने धौलपुर जिला मुख्यालय के नजदीक राजघाट गांव का जायजा लिया. ये गांव अब नगर परिषद के दायरे में आता है और कलेक्ट्रेट से महज 3 किलोमीटर की दूरी पर है. लेकिन विकास की बात करें, तो नगर परिषद की सीमा में आने के बाद अब राजघाट को राजस्व गांव नहीं माना गया है. वहीं शहर की सीमा में होने के बावजूद विकास आज भी गांव से कोसो दूर है. हालात ये है कि इस गांव में बुनियादी सुविधाओं के लिये स्थानीय बाशिंदे तरस रहे हैं. वहीं कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं इस गांव की तस्वीर को बदलने में जुटी हुई हैं.

'जिला मुख्यालय की नाक के नीचे सुविधाओं से महरूम राजघाट'
राजघाट गांव मुंबई-आगरा नेशनल हाईवे पर बहती चंबल नदी के ठीक किनारे पर बसा एक क्षेत्र है, जो की जिला मुख्यालय की नाक के नीचे होने के बावजूद विकास से महरूम है. गांव के लोगों के मुताबिक वो हर बार इस उम्मीद से वोट करते हैं कि उनकी परेशानियों को शायद इस बार सुना जाए. लेकिन हालात ढाक के तीन पात जैसे ही रहते हैं. 100 के करीब घरों की पूरी बस्ती कच्ची है. जहां आने-जाने का एक मात्र जरिया चंबल के बरसाती पानी से बने नाले है. किसी चौपहिया गाड़ी की छोड़िए, बरसात के दिनों में दुपहिया गाड़ी से आना ही यहां मुश्किल हो जाता है.

VIDEO : चंबल के मुहाने पर बसा 'राजघाट' नगर परिषद की जद में लेकिन सुविधाओं से महरूम

'कई खतरे मोल लेकर मिलता है पीने का पानी'
चंबल नदी के किनारे बसी राजघाट की बस्ती के लोग सरकारी पेयजल लाइन की सुविधा से महरूम है. बस्ती में बने सार्वजनिक शौचालय तक पर पानी की टंकी तो रखी गई है. लेकिन इन तक पानी पहुंचाने का जरिया कहीं भी नजर नहीं आता है. नजदीक के एक निर्माणकार्य से मिली पानी की लाइन का जल भी खारा होता है ऐसे में प्यास बुझाने के लिये बस्ती की महिलाओं और बच्चों को चंबल तक आना होता है. अक्सर यहां पानी में रहने वाले घड़ियाल और मगरमच्छ के हमलों के बावजूद बस्ती के लोग दिनभर यहीं से पानी पीते हैं. यहीं मवेशी नहाते हैं और यहीं से बस्ती के लोग भी स्नान कर अपनी दिनचर्या को शुरु करते हैं. दूषित पानी के असर से बचने के लिये इन लोगों के जल शुद्धिकरण का एक पारम्परिक तरीका है, जिसमें चंबल नदी के नजदीक बने गड्ढे से रिसने वाले पानी को काफी हद तक छना हुआ मानकर ये लोग इसे पीने के लिये काम में लेते हैं.

अप्रवासी मेडिकल छात्र आए मदद को आगे
राजधाट की बड़ी आबादी के बावजूद यहां बिजली की सप्लाई को आये करीब एक-दो महीना ही हुआ है. जहां नार्वे में रहने वाले अप्रवासी भारतीयों से मेडिकल छात्रों के बनाए NGO ने मदद ली और उनके सहयोग से सात घरों को रोशन करने का काम हुआ है. इस दिशा में सरकारी मदद और महकमों का सहयोग सिफर रहा है, वहीं पानी और सड़क के लिये बस्ती के लोगों की मांग अरसे से अधूरी पड़ी हुई है कहने के लिए राजघाट में एक प्राथमिक स्कूल भी है लेकिन सुविधाओं के नाम पर यहां भी चार दीवारों पर रखी छत्त ही देखने को मिलती है. कुल मिलाकर राजघाट की बस्ती को सरकारी लालफीताशाही की जीवंत बानगी कहा जाएगा. यहां के लोग रोजगार से लेकर तालीम तक और बेहतर जिंदगी जीने के अपने अधिकार से पूरी तरह महरूम है. इस गांव की दास्तान हर बार सामने आने के बावजूद लाइलाज मर्ज की तरह विकास के खोखले दावों का आईना भर जरूर दिखाती है.

नगर परिषद आयुक्त ने स्वीकारा..है सुविधाओं की कमी
वहीं हमने जब यहां की बुनियादी सुविधाओं के बारे में धौलपुर के नगर परिषद आयुक्त सौरभ जिंदल से बात की, हमसे बातचीत में नगर परिषद आयुक्त सौरभ जिंदल ने वहां की बुनियादों सुविधाओं की कमी को स्वीकारा और जल्द सबकुछ ठीक-ठाक कर दिए जाने की बात कही. राजघाट में विकास की परिकल्पना को सार्थक करने के लिए खुद गांव वाले जहां इंतजार ही कर रहे हैं, वहीं उनके लिए लड़ने वाली स्वयंसेवी संस्थाएं अब सड़क निर्माण की लड़ाई को कोर्ट तक लेकर गई है. जाहिर है कि ये मुद्दा सिर्फ विकास तक सीमित नहीं है. बल्कि ये मसला है खुद के हक़ और जागरूकता का, जिसमें ईटीवी भारत भी अपने सरोकार निभाने मे पीछे नहीं है.

धौलपुर . विकास के दावों की सियासी तस्वीर के बीच ईटीवी भारत की टीम ने धौलपुर जिला मुख्यालय के नजदीक राजघाट गांव का जायजा लिया. ये गांव अब नगर परिषद के दायरे में आता है और कलेक्ट्रेट से महज 3 किलोमीटर की दूरी पर है. लेकिन विकास की बात करें, तो नगर परिषद की सीमा में आने के बाद अब राजघाट को राजस्व गांव नहीं माना गया है. वहीं शहर की सीमा में होने के बावजूद विकास आज भी गांव से कोसो दूर है. हालात ये है कि इस गांव में बुनियादी सुविधाओं के लिये स्थानीय बाशिंदे तरस रहे हैं. वहीं कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं इस गांव की तस्वीर को बदलने में जुटी हुई हैं.

'जिला मुख्यालय की नाक के नीचे सुविधाओं से महरूम राजघाट'
राजघाट गांव मुंबई-आगरा नेशनल हाईवे पर बहती चंबल नदी के ठीक किनारे पर बसा एक क्षेत्र है, जो की जिला मुख्यालय की नाक के नीचे होने के बावजूद विकास से महरूम है. गांव के लोगों के मुताबिक वो हर बार इस उम्मीद से वोट करते हैं कि उनकी परेशानियों को शायद इस बार सुना जाए. लेकिन हालात ढाक के तीन पात जैसे ही रहते हैं. 100 के करीब घरों की पूरी बस्ती कच्ची है. जहां आने-जाने का एक मात्र जरिया चंबल के बरसाती पानी से बने नाले है. किसी चौपहिया गाड़ी की छोड़िए, बरसात के दिनों में दुपहिया गाड़ी से आना ही यहां मुश्किल हो जाता है.

VIDEO : चंबल के मुहाने पर बसा 'राजघाट' नगर परिषद की जद में लेकिन सुविधाओं से महरूम

'कई खतरे मोल लेकर मिलता है पीने का पानी'
चंबल नदी के किनारे बसी राजघाट की बस्ती के लोग सरकारी पेयजल लाइन की सुविधा से महरूम है. बस्ती में बने सार्वजनिक शौचालय तक पर पानी की टंकी तो रखी गई है. लेकिन इन तक पानी पहुंचाने का जरिया कहीं भी नजर नहीं आता है. नजदीक के एक निर्माणकार्य से मिली पानी की लाइन का जल भी खारा होता है ऐसे में प्यास बुझाने के लिये बस्ती की महिलाओं और बच्चों को चंबल तक आना होता है. अक्सर यहां पानी में रहने वाले घड़ियाल और मगरमच्छ के हमलों के बावजूद बस्ती के लोग दिनभर यहीं से पानी पीते हैं. यहीं मवेशी नहाते हैं और यहीं से बस्ती के लोग भी स्नान कर अपनी दिनचर्या को शुरु करते हैं. दूषित पानी के असर से बचने के लिये इन लोगों के जल शुद्धिकरण का एक पारम्परिक तरीका है, जिसमें चंबल नदी के नजदीक बने गड्ढे से रिसने वाले पानी को काफी हद तक छना हुआ मानकर ये लोग इसे पीने के लिये काम में लेते हैं.

अप्रवासी मेडिकल छात्र आए मदद को आगे
राजधाट की बड़ी आबादी के बावजूद यहां बिजली की सप्लाई को आये करीब एक-दो महीना ही हुआ है. जहां नार्वे में रहने वाले अप्रवासी भारतीयों से मेडिकल छात्रों के बनाए NGO ने मदद ली और उनके सहयोग से सात घरों को रोशन करने का काम हुआ है. इस दिशा में सरकारी मदद और महकमों का सहयोग सिफर रहा है, वहीं पानी और सड़क के लिये बस्ती के लोगों की मांग अरसे से अधूरी पड़ी हुई है कहने के लिए राजघाट में एक प्राथमिक स्कूल भी है लेकिन सुविधाओं के नाम पर यहां भी चार दीवारों पर रखी छत्त ही देखने को मिलती है. कुल मिलाकर राजघाट की बस्ती को सरकारी लालफीताशाही की जीवंत बानगी कहा जाएगा. यहां के लोग रोजगार से लेकर तालीम तक और बेहतर जिंदगी जीने के अपने अधिकार से पूरी तरह महरूम है. इस गांव की दास्तान हर बार सामने आने के बावजूद लाइलाज मर्ज की तरह विकास के खोखले दावों का आईना भर जरूर दिखाती है.

नगर परिषद आयुक्त ने स्वीकारा..है सुविधाओं की कमी
वहीं हमने जब यहां की बुनियादी सुविधाओं के बारे में धौलपुर के नगर परिषद आयुक्त सौरभ जिंदल से बात की, हमसे बातचीत में नगर परिषद आयुक्त सौरभ जिंदल ने वहां की बुनियादों सुविधाओं की कमी को स्वीकारा और जल्द सबकुछ ठीक-ठाक कर दिए जाने की बात कही. राजघाट में विकास की परिकल्पना को सार्थक करने के लिए खुद गांव वाले जहां इंतजार ही कर रहे हैं, वहीं उनके लिए लड़ने वाली स्वयंसेवी संस्थाएं अब सड़क निर्माण की लड़ाई को कोर्ट तक लेकर गई है. जाहिर है कि ये मुद्दा सिर्फ विकास तक सीमित नहीं है. बल्कि ये मसला है खुद के हक़ और जागरूकता का, जिसमें ईटीवी भारत भी अपने सरोकार निभाने मे पीछे नहीं है.

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विशेषः चम्बल किनारे बदहाली के आंसू रोता 'राजघाट'



धौलपुर . विकास के दावों की सियासी तस्वीर के बीच ईटीवी भारत की टीम ने धौलपुर जिला मुख्यालय के नजदीक राजघाट गांव का जायजा लिया. ये गांव अब नगर परिषद के दायरे में आता है और कलेक्ट्रेट से महज 3 किलोमीटर की दूरी पर है. लेकिन विकास की बात करें, तो नगर परिषद की सीमा में आने के बाद अब राजघाट को राजस्व गांव नहीं माना गया है. वहीं शहर की सीमा में होने के बावजूद विकास आज भी गांव से कोसो दूर है. हालात ये है कि इस गांव में बुनियादी सुविधाओं के लिये स्थानीय बाशिंदे तरस रहे हैं. वहीं कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं इस गांव की तस्वीर को बदलने में जुटी हुई हैं.

राजघाट गांव मुंबई-आगरा नेशनल हाई-वे पर बहती चंबल नदी के ठीक किनारे पर बसा मल्हार जाति की एक कॉलोनी है,  जो की जिला मुख्यालय की नाक के नीचे होने के बावजूद विकास से महरूम है. गांव के लोगों के मुताबिक वो हर बार इस उम्मीद से वोट करते हैं कि उनकी परेशानियों को शायद इस बार सुना जाएगा.लेकिन हालात ढाक के तीन पात जैसे ही रहते हैं. 100 के करीब घरों की पूरी बस्ती कच्ची है. जहां आने-जाने का एक मात्र जरिया चंबल के बरसाती पानी से बने नाले है. किसी चौपहिया गाड़ी की छोड़िए, बरसात के दिनों में दुपहिया गाड़ी से आना ही यहां मुश्किल हो जाता है.

चंबल नदी के किनारे बसी राजघाट की बस्ती के लोग सरकारी पेयजल लाइन की सुविधा से महरूम है. बस्ती में बने सार्वजनिक शौचालय तक पर पानी की टंकी तो रखी गई है. लेकिन इन तक पानी पहुंचाने का जरिया कहीं भी नजर नहीं आता है. नजदीक के एक निर्माणकार्य से मिली पानी की लाइन का जल भी खारा होता है ऐसे में प्यास बुझाने के लिये बस्ती की महिलाओं और बच्चों को चंबल तक आना होता है. अक्सर यहां पानी में रहने वाले घड़ियाल और मगरमच्छ के हमलों के बावजूद बस्ती के लोग दिनभर यहीं से पानी पीते हैं. यहीं मवेशी नहाते हैं और यहीं से बस्ती के लोग भी स्नान कर अपनी दिनचर्या को शुरु करते हैं. दूषित पानी के असर से बचने के लिये इन लोगों के जल शुद्धिकरण का एक पारम्परिक तरीका है, जिसमें चंबल नदी के नजदीक बने गड्ढे से रिसने वाले पानी को काफी हद तक छना हुआ मानकर ये लोग इसे पीने के लिये काम में लेते हैं.



राजधाट की बड़ी आबादी के बावजूद यहां बिजली की सप्लाई को आये करीब एक-दो महीना ही हुआ है. जहां नार्वे में रहने वाले अप्रवासी भारतीयों से मेडिकल छात्रों के बनाए NGO ने मदद ली और उनके सहयोग से सात घरों को रोशन करने का काम हुआ है. इस दिशा में सरकारी मदद और महकमों का सहयोग सिफर रहा है, वहीं पानी और सड़क के लिये बस्ती के लोगों की मांग अरसे से अधूरी पड़ी हुई है कहने के लिए राजघाट में एक प्राथमिक स्कूल भी है लेकिन सुविधाओं के नाम पर यहां भी चार दीवारों पर रखी छत्त ही देखने को मिलती है. कुल मिलाकर राजघाट की बस्ती को सरकारी लालफीताशाही की जीवंत बानगी कहा जाएगा. यहां के लोग रोजगार से लेकर तालीम तक और बेहतर जिंदगी जीने के अपने  अधिकार से पूरी तरह महरूम है. इस गांव की दास्तान हर बार सामने आने के बावजूद लाइलाज मर्ज की तरह विकास के खोखले दावों का आईना भर जरूर दिखाती है.



वहीं हमने जब यहां की बुनियादी सुविधाओं के बारे में धौलपुर के नगर परिषद आयुक्त सौरभ जिंदल के बात की, हमसे बातचीत में नगर परिषद आयुक्त सौरभ जिंदल ने वहां की बुनियादों सुविधाओं की कमी को स्वीकारा और जल्द सबकुछ ठीक-ठाक कर दिए जाने की बात कही.



राजघाट में विकास की परिकल्पना को सार्थक करने के लिए खुद गांव वाले जहां इंतजार ही कर रहे हैं, वहीं उनके लिए लड़ने वाली स्वयंसेवी संस्थाएं अब सड़क निर्माण की लड़ाई को कोर्ट तक लेकर गई है. जाहिर है कि ये मुद्दा सिर्फ विकास तक सीमित नहीं है. बल्कि ये मसला है खुद के हक़ और जागरूकता का, जिसमें ईटीवी भारत भी अपने सरोकार निभाने मे पीछे नहीं है.

 


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