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यहां 7 साल बाद भी क्षेत्रीय ऑफसेट योजना का काम अधूरा, 44 गांवों पर भारी जिम्मेदारों की लापरवाही - Chambal project work incomplete

धौलपुर में 7 वर्ष के बाद भी चम्बल परियोजना का कार्य अधूरा है. साल 2013 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने सैपऊ उपखण्ड के 44 गांवों को खारे पानी की समस्या से निजात दिलाने के लिए क्षेत्रीय ऑफसेट परियोजना को हरी झंडी दिखाई थी, लेकिन परियोजना अधर में पड़ी हुई है. जिससे ग्रामीणों में भारी आक्रोश देखा जा रहा है.

Problem of salt water, खारे पानी की समस्या से निजात
क्षेत्रीय ऑफसेट योजना अधूरा
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Published : Jun 5, 2020, 6:18 PM IST

धौलपुर. जिले के सैपऊ उपखण्ड के 44 गांवों के लिए स्वीकृत क्षेत्रीय ऑफसेट योजना का काम कछुआ चाल से भी धीमी गति से चल रहा है. पिछले सात वर्ष से कार्य करा रही मैसर्स श्रीराम ईपीसी फर्म मौजूदा वक्त तक काम को अंजाम नहीं दे सकी है. जलदाय विभाग की सांठगाठ से कम्पनी मनमर्जी से काम को करा रही है, जिससे 44 गांव के ग्रामीणों को पानी नसीब नहीं हो रहा है.

क्षेत्रीय ऑफसेट योजना का अब भी बाकी

बता दें कि वर्ष 2013 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने चंबल लिफ्ट परियोजना से क्षेत्रीय ऑफसेट योजना को जोड़ा था. तत्कालीन गहलोत सरकार ने अंतिम बजट में सवा 32 करोड़ की वित्तीय स्वीकृति जारी कर चेन्नई की फर्म को परियोजना के काम का जिम्मा सौंपा था.

पढ़ेंः पर्यावरण दिवस विशेष: भीलवाड़ा में कपड़ा कारखानों से निकलने वाले केमिकल और जहरीली गैसों से हवा में घुल रहा जहर

विभागीय अधिकारियों से मिली जानकारी के मुताबिक कम्पनी को दो बर्ष के अंर्तगत पानी की सप्लाई ग्रामीणों को उपलब्ध करानी थी. लेकिन कपंनी की लेटलतीफी के कारण क्षेत्रीय ऑफसेट योजना का काम धरातल पर मौजूदा वक्त तक पूरा नहीं हो सका.

Problem of salt water, खारे पानी की समस्या से निजात
चम्बल परियोजना का कार्य अधूरा

सैपऊ उपखण्ड के 44 गांव में खारे पानी की अधिक समस्या है. जिसे लेकर सरकार ने प्रोजेक्ट की शुरुआत कराई थी. महत्वपूर्ण बिंदु यह रहा कि वर्ष 2014 में वसुंधरा की भाजपा सरकार रही. लेकिन 5 वर्ष में परियोजना का काम पूरा नहीं हो सका. वर्तमान में एक वर्ष से अधिक का समय कांग्रेस सरकार को भी हो चुका है. लेकिन परियोजना का काम अब तक अंजाम तक नहीं पहुंच सका. सात वर्ष के लम्बे अन्तराल के बाद भी ग्रामीणों के कंठ पानी से प्यासे है.

पढ़ें- कोरोना काल में BJP ने बदला अभियान का रूप, अब वर्चुअल रैली से होगा एक साल का गुणगान

उधर ग्रामीणों ने बताया कि इलाके में पानी की समस्या अधिक गहरा रही है. ग्रामीणों को एक-एक बूंद पानी के लिए जिद्दोजहद करनी पड़ रही है. वहीं बढ़ते तापमान से लोगों के लिए मवेशी पालन में भी मुसीबत हो रही है. परियोजना का काम करा रही फर्म और विभागीय अधिकारियों की मिली भगत से काम अधूरा पड़ा है. हालांकि जलदाय विभाग ने दावा किया है कि आने वाले एक हफ्ते के अंतर्गत पानी की सप्लाई शुरू करा दी जाएगी. लेकिन उपखण्ड इलाके के कुछ गांव ऐसे भी है, जहां टंकियों का निर्माण नहीं हो सका है.

Problem of salt water, खारे पानी की समस्या से निजात
पानी की समस्या से लोग परेशान

ऐसे में जलदाय विभाग के आंकड़े हवाई दिखाई दे रहे है. गौरतलब है कि 2013 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने सैपऊ उपखण्ड के 44 गांवों को फ्लोराइड युक्त पानी की समस्या से निजात दिलाने के लिए क्षेत्रीय विधायक गिर्राज सिंह मलिंगा की मांग पर अंतिम बजट में सवा 32 करोड़ की वित्तीय स्वीकृति लागू कर क्षेत्रीय ऑफसेट परियोजना को हरी झंडी दी थी. कार्य करा रही चेन्नई की फर्म मैसर्स श्रीराम ईपीसी की लापवाई से 7 वर्ष के लम्बे अंतराल के बाद भी क्षेत्रीय ऑफसेट योजना का काम अधूरा पड़ा है.

पढ़ेंः UNLOCK से बाजारों में लोगों की चहल-पहल बढ़ी, लेकिन व्यापार में अभी भी सन्नाटा

स्थानीय लोगों का कहना है तापमान के तीखे तेवरों के सामने ग्रामीण बेबस और लाचार हैं. इलाके में खारे पानी की समस्या होने के कारण एक-एक बूंद पानी के लिए ग्रामीण महिला और बच्चों को भटकना पड़ता है. पिछले 7 वर्ष के लंबे अंतराल के बाद भी परियोजना अधर में पड़ी हुई है. जिससे ग्रामीणों में भारी आक्रोश देखा जा रहा है.

धौलपुर. जिले के सैपऊ उपखण्ड के 44 गांवों के लिए स्वीकृत क्षेत्रीय ऑफसेट योजना का काम कछुआ चाल से भी धीमी गति से चल रहा है. पिछले सात वर्ष से कार्य करा रही मैसर्स श्रीराम ईपीसी फर्म मौजूदा वक्त तक काम को अंजाम नहीं दे सकी है. जलदाय विभाग की सांठगाठ से कम्पनी मनमर्जी से काम को करा रही है, जिससे 44 गांव के ग्रामीणों को पानी नसीब नहीं हो रहा है.

क्षेत्रीय ऑफसेट योजना का अब भी बाकी

बता दें कि वर्ष 2013 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने चंबल लिफ्ट परियोजना से क्षेत्रीय ऑफसेट योजना को जोड़ा था. तत्कालीन गहलोत सरकार ने अंतिम बजट में सवा 32 करोड़ की वित्तीय स्वीकृति जारी कर चेन्नई की फर्म को परियोजना के काम का जिम्मा सौंपा था.

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विभागीय अधिकारियों से मिली जानकारी के मुताबिक कम्पनी को दो बर्ष के अंर्तगत पानी की सप्लाई ग्रामीणों को उपलब्ध करानी थी. लेकिन कपंनी की लेटलतीफी के कारण क्षेत्रीय ऑफसेट योजना का काम धरातल पर मौजूदा वक्त तक पूरा नहीं हो सका.

Problem of salt water, खारे पानी की समस्या से निजात
चम्बल परियोजना का कार्य अधूरा

सैपऊ उपखण्ड के 44 गांव में खारे पानी की अधिक समस्या है. जिसे लेकर सरकार ने प्रोजेक्ट की शुरुआत कराई थी. महत्वपूर्ण बिंदु यह रहा कि वर्ष 2014 में वसुंधरा की भाजपा सरकार रही. लेकिन 5 वर्ष में परियोजना का काम पूरा नहीं हो सका. वर्तमान में एक वर्ष से अधिक का समय कांग्रेस सरकार को भी हो चुका है. लेकिन परियोजना का काम अब तक अंजाम तक नहीं पहुंच सका. सात वर्ष के लम्बे अन्तराल के बाद भी ग्रामीणों के कंठ पानी से प्यासे है.

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उधर ग्रामीणों ने बताया कि इलाके में पानी की समस्या अधिक गहरा रही है. ग्रामीणों को एक-एक बूंद पानी के लिए जिद्दोजहद करनी पड़ रही है. वहीं बढ़ते तापमान से लोगों के लिए मवेशी पालन में भी मुसीबत हो रही है. परियोजना का काम करा रही फर्म और विभागीय अधिकारियों की मिली भगत से काम अधूरा पड़ा है. हालांकि जलदाय विभाग ने दावा किया है कि आने वाले एक हफ्ते के अंतर्गत पानी की सप्लाई शुरू करा दी जाएगी. लेकिन उपखण्ड इलाके के कुछ गांव ऐसे भी है, जहां टंकियों का निर्माण नहीं हो सका है.

Problem of salt water, खारे पानी की समस्या से निजात
पानी की समस्या से लोग परेशान

ऐसे में जलदाय विभाग के आंकड़े हवाई दिखाई दे रहे है. गौरतलब है कि 2013 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने सैपऊ उपखण्ड के 44 गांवों को फ्लोराइड युक्त पानी की समस्या से निजात दिलाने के लिए क्षेत्रीय विधायक गिर्राज सिंह मलिंगा की मांग पर अंतिम बजट में सवा 32 करोड़ की वित्तीय स्वीकृति लागू कर क्षेत्रीय ऑफसेट परियोजना को हरी झंडी दी थी. कार्य करा रही चेन्नई की फर्म मैसर्स श्रीराम ईपीसी की लापवाई से 7 वर्ष के लम्बे अंतराल के बाद भी क्षेत्रीय ऑफसेट योजना का काम अधूरा पड़ा है.

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स्थानीय लोगों का कहना है तापमान के तीखे तेवरों के सामने ग्रामीण बेबस और लाचार हैं. इलाके में खारे पानी की समस्या होने के कारण एक-एक बूंद पानी के लिए ग्रामीण महिला और बच्चों को भटकना पड़ता है. पिछले 7 वर्ष के लंबे अंतराल के बाद भी परियोजना अधर में पड़ी हुई है. जिससे ग्रामीणों में भारी आक्रोश देखा जा रहा है.

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