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धौलपुर की सरकारी स्कूल में मिला ज्ञान का भंडार, 115 साल से कमरे में बंद था बेशकीमती पुस्तकों का खजाना

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Published : Mar 16, 2020, 3:41 PM IST

धौलपुर के महाराणा स्कूल के बंद कमरे खुले तो उससे ज्ञान का भंडार निकला. 115 साल से महाराणा स्कूल के दो से तीन कमर बंद थे. जिनको खुलवाने पर किताबों का खजाना निकला, कमरे से मिली किताबें 1905 से पहले की बताई जा रही है.

maharana school dholpur, book treasure in dholpur
धौलपुर की सरकारी स्कूल में मिला ज्ञान का भंडार

धौलपुर. जिन पुस्तकों की आज के दौर में कल्पना भी नहीं की जा सकती हैं, वह पुस्तकें आज भी धौलपुर जिले के पास हैं, शायद यह अभी तक किसी को नहीं पता था और पता भी नहीं होगा, क्योंकि करीब 115 साल से महाराणा स्कूल के एक स्टोरनुमा दो से तीन कमरों में करीब एक लाख किताबें तालों में बंद पड़ी थी. जो दुर्लभ पांडुलिपियां, ब्रिटिशकालीन पुस्तकें और डिक्शनरियां हैं.

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3 फीट लंबी किताब में पूरी दुनिया और देश के रियासतों के नक्शे

पढ़ें: Mystery: शिव को समर्पित चमत्कारी मंदिर, जो खड़ा है 5 हजार साल से बगैर नींव पर...

3 कमरों में सिर्फ किताबें ही किताबें भरी मिली

यहां बड़ी बात ये है कि 115 साल में स्कूल के कई स्टाफ भी बदल गए, लेकिन किसी ने भी कभी इस बंद पड़े कमरों को खुलवाना उचित नहीं समझा था. स्कूल के प्रिंसिपल रामकांत शर्मा ने बताया कि उन्होंने इन कमरों को कई बार देखा और पूछा तो उन्हें बताया गया कि इनमें कबाड़ पड़ा है. इसके बाद जब कबाड़ साफ करवाने के लिए इन कमरों को खुलवाया तो वो भी देखकर दंग रह गए, क्योंकि तीन कमरों में सिर्फ किताबें ही किताबें भरी हुई थी.

धौलपुर की सरकारी स्कूल में मिला ज्ञान का भंडार

कई किताबों की प्रिंटिंग गोल्डन

इन किताबों को देखा तो यह वर्ष 1905 से पहले की हैं, जिन्हें आज से समय में देखना दुर्लभ है. कई किताबों को देखा तो उनमें प्रिंटिंग गोल्डन हैं. 3 फीट लंबी किताब में पूरी दुनिया और देश के रियासतों के नक्शे बने हुए हैं. जिसके बाद स्कूल प्रिंसिपल ने कई इतिहासकार को इन किताबों को दिखवाया तो उन्होंने इसे ज्ञान का खजाना बताया है, जिनकी कीमत भी लाखों रुपए में बताई जा रही है. हालांकि इतिहासकार भी आश्चर्यचकित हो गए कि इतनी पुरानी किताबें इस तरह से बंद स्टोर में मिलेंगी.

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महाराणा स्कूल के बंद कमरे में मिला किताबों का खजाना

धौलपुर रियासत के महाराज उदयभान दुर्लभ पुस्तकों के शौकीन थे

वहीं इतिहासकार गोविंद शर्मा के मुताबिक धौलपुर रियासत के महाराज उदयभान दुर्लभ पुस्तकों के शौकीन थे. ब्रिटिशकाल में महाराजा उदयभान सिंह लंदन और यूरोप यात्रा पर जाते थे. महाराज की ओर से ही इन किताबों को लाया गया था. इन किताबों में कई ऐसी किताबें भी हैं, जिनमें स्याही की जगह सोने के पानी का इस्तेमाल किया गया है. वर्ष 1905 में इन किताबों की कीमत 25 से 65 रुपए के बीच थी, जबकि उस समय सोना 27 रुपए तौला हुआ करता था, लेकिन आज ये पुस्तकें बाजार में भी लाखों रुपयों में उपलबध नहीं हैं.

पढ़ें: SPECIAL: गौरव गाथाओं को इतिहास में समेटे 1000 वर्ष का हुआ सिवाना दुर्ग

स्टोर से मिली ये पुस्तकें

सभी पुस्तकें भारत, लंदन व यूरोप के प्रिंटेड थी. जिसमें 3 फीट लंबी नक्शों की किताब हैं, उसकी प्रिंटिग गोल्डन हैं, पूरी दुनिया के देशों और रियासतों के नक्शे हैं. इसके अलावा भारत का राष्ट्रीय एटलस 1957 भारत सरकार द्वारा मुद्रित, वेस्टर्न-तिब्बत एंड ब्रिटिश बॉडर्र लेंड, सेकंड कंट्री ऑफ हिंदू एंड बुद्धि 1906, अरबी, फारसी, उर्दू और हिंदी में लिखित पांडुलिपियां, ऑक्सफोर्ड एटलस, एनसाइक्लोपीडिया, ब्रिटेनिका, महात्मा गांधी की सचित्र जीवनी द महात्मा 1925 में लंदन में छपी, इसमें प्रमुख निकली है.

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ब्रिटिशकालीन पुस्तकें

बापू के साथ इंदिरा गांधी का चित्र भी मिला

महात्मा गांधी के साथ 6 वर्ष की अवस्था का इंद्रा गांधी का चित्र भी मिला है. राजा उदयभान सिंह की अंग्रेजी में लिखी सनातन धर्म पुस्तक भी मिली. इतिहासकार गोविंद शर्मा ने बताया कि महाराजा उदयभान सिंह ने अंग्रेजी में सनातन धर्म के रूप में एक पुस्तक लिखी थी. जिसका विमोचन मदन मोहन मालवीय ने किया था. धौलपुर राज परिवार की शिक्षा में इतनी रूचि थी कि उन्होंने बीएचयू के निर्माण में मदन मोहन मालवीय को बड़ी धनराशि प्रदान की थी. महाराज द्वारा लिखी गई सनातन धर्म पुस्तक भी भंडार में मिली है.

पढ़ें: स्पेशल: चूरू के बंशीधर पारीक का नायाब कलेक्शन

भामाशाहों की मदद से बनेगी लाइब्रेरी

प्रधानाचार्य रमाकांत शर्मा का कहना है कि धौलपुर के भामाशाह आगे बढ़ते हैं तो ये लाइब्रेरी जिले में एक महत्वपूर्ण होगी. इसके लिए हम अब रैक बनवाकर कुछ दुर्लभ पुस्तकों को यहां छात्रों को दिखाएंगे. वहीं भामाशाह के सहयोग से एक हॉल बनवाकर इन पुस्तकों को बाहर निकालकर इन पुस्तकों से लोगों को लाभान्वित कराना है. अभी काफी पांडुलिपियां पुस्तकें और डिक्शनरी ऐसी हैं जो बाहर ही नहीं निकली हैं, उनकी खोज का काम शुरू है. राजकीय उच्च माध्यमिक महराणा स्कूल रियासत काल का है. जिसमें राजस्थान सरकार के पूर्व वित्त मंत्री प्रद्युमन सिंह, पूर्व मंत्री बनवारी लाल शर्मा समेत करीब आधा दर्जन आईएएस इस स्कूल के छात्र रहे हैं.

धौलपुर. जिन पुस्तकों की आज के दौर में कल्पना भी नहीं की जा सकती हैं, वह पुस्तकें आज भी धौलपुर जिले के पास हैं, शायद यह अभी तक किसी को नहीं पता था और पता भी नहीं होगा, क्योंकि करीब 115 साल से महाराणा स्कूल के एक स्टोरनुमा दो से तीन कमरों में करीब एक लाख किताबें तालों में बंद पड़ी थी. जो दुर्लभ पांडुलिपियां, ब्रिटिशकालीन पुस्तकें और डिक्शनरियां हैं.

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3 फीट लंबी किताब में पूरी दुनिया और देश के रियासतों के नक्शे

पढ़ें: Mystery: शिव को समर्पित चमत्कारी मंदिर, जो खड़ा है 5 हजार साल से बगैर नींव पर...

3 कमरों में सिर्फ किताबें ही किताबें भरी मिली

यहां बड़ी बात ये है कि 115 साल में स्कूल के कई स्टाफ भी बदल गए, लेकिन किसी ने भी कभी इस बंद पड़े कमरों को खुलवाना उचित नहीं समझा था. स्कूल के प्रिंसिपल रामकांत शर्मा ने बताया कि उन्होंने इन कमरों को कई बार देखा और पूछा तो उन्हें बताया गया कि इनमें कबाड़ पड़ा है. इसके बाद जब कबाड़ साफ करवाने के लिए इन कमरों को खुलवाया तो वो भी देखकर दंग रह गए, क्योंकि तीन कमरों में सिर्फ किताबें ही किताबें भरी हुई थी.

धौलपुर की सरकारी स्कूल में मिला ज्ञान का भंडार

कई किताबों की प्रिंटिंग गोल्डन

इन किताबों को देखा तो यह वर्ष 1905 से पहले की हैं, जिन्हें आज से समय में देखना दुर्लभ है. कई किताबों को देखा तो उनमें प्रिंटिंग गोल्डन हैं. 3 फीट लंबी किताब में पूरी दुनिया और देश के रियासतों के नक्शे बने हुए हैं. जिसके बाद स्कूल प्रिंसिपल ने कई इतिहासकार को इन किताबों को दिखवाया तो उन्होंने इसे ज्ञान का खजाना बताया है, जिनकी कीमत भी लाखों रुपए में बताई जा रही है. हालांकि इतिहासकार भी आश्चर्यचकित हो गए कि इतनी पुरानी किताबें इस तरह से बंद स्टोर में मिलेंगी.

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महाराणा स्कूल के बंद कमरे में मिला किताबों का खजाना

धौलपुर रियासत के महाराज उदयभान दुर्लभ पुस्तकों के शौकीन थे

वहीं इतिहासकार गोविंद शर्मा के मुताबिक धौलपुर रियासत के महाराज उदयभान दुर्लभ पुस्तकों के शौकीन थे. ब्रिटिशकाल में महाराजा उदयभान सिंह लंदन और यूरोप यात्रा पर जाते थे. महाराज की ओर से ही इन किताबों को लाया गया था. इन किताबों में कई ऐसी किताबें भी हैं, जिनमें स्याही की जगह सोने के पानी का इस्तेमाल किया गया है. वर्ष 1905 में इन किताबों की कीमत 25 से 65 रुपए के बीच थी, जबकि उस समय सोना 27 रुपए तौला हुआ करता था, लेकिन आज ये पुस्तकें बाजार में भी लाखों रुपयों में उपलबध नहीं हैं.

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स्टोर से मिली ये पुस्तकें

सभी पुस्तकें भारत, लंदन व यूरोप के प्रिंटेड थी. जिसमें 3 फीट लंबी नक्शों की किताब हैं, उसकी प्रिंटिग गोल्डन हैं, पूरी दुनिया के देशों और रियासतों के नक्शे हैं. इसके अलावा भारत का राष्ट्रीय एटलस 1957 भारत सरकार द्वारा मुद्रित, वेस्टर्न-तिब्बत एंड ब्रिटिश बॉडर्र लेंड, सेकंड कंट्री ऑफ हिंदू एंड बुद्धि 1906, अरबी, फारसी, उर्दू और हिंदी में लिखित पांडुलिपियां, ऑक्सफोर्ड एटलस, एनसाइक्लोपीडिया, ब्रिटेनिका, महात्मा गांधी की सचित्र जीवनी द महात्मा 1925 में लंदन में छपी, इसमें प्रमुख निकली है.

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ब्रिटिशकालीन पुस्तकें

बापू के साथ इंदिरा गांधी का चित्र भी मिला

महात्मा गांधी के साथ 6 वर्ष की अवस्था का इंद्रा गांधी का चित्र भी मिला है. राजा उदयभान सिंह की अंग्रेजी में लिखी सनातन धर्म पुस्तक भी मिली. इतिहासकार गोविंद शर्मा ने बताया कि महाराजा उदयभान सिंह ने अंग्रेजी में सनातन धर्म के रूप में एक पुस्तक लिखी थी. जिसका विमोचन मदन मोहन मालवीय ने किया था. धौलपुर राज परिवार की शिक्षा में इतनी रूचि थी कि उन्होंने बीएचयू के निर्माण में मदन मोहन मालवीय को बड़ी धनराशि प्रदान की थी. महाराज द्वारा लिखी गई सनातन धर्म पुस्तक भी भंडार में मिली है.

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भामाशाहों की मदद से बनेगी लाइब्रेरी

प्रधानाचार्य रमाकांत शर्मा का कहना है कि धौलपुर के भामाशाह आगे बढ़ते हैं तो ये लाइब्रेरी जिले में एक महत्वपूर्ण होगी. इसके लिए हम अब रैक बनवाकर कुछ दुर्लभ पुस्तकों को यहां छात्रों को दिखाएंगे. वहीं भामाशाह के सहयोग से एक हॉल बनवाकर इन पुस्तकों को बाहर निकालकर इन पुस्तकों से लोगों को लाभान्वित कराना है. अभी काफी पांडुलिपियां पुस्तकें और डिक्शनरी ऐसी हैं जो बाहर ही नहीं निकली हैं, उनकी खोज का काम शुरू है. राजकीय उच्च माध्यमिक महराणा स्कूल रियासत काल का है. जिसमें राजस्थान सरकार के पूर्व वित्त मंत्री प्रद्युमन सिंह, पूर्व मंत्री बनवारी लाल शर्मा समेत करीब आधा दर्जन आईएएस इस स्कूल के छात्र रहे हैं.

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