धौलपुर. जिले के बाड़ी उपखंड में आयोजित मेले में शहर के साथ ग्रामीण क्षेत्र से आए सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए. इस दौरान श्रीराम, माता जानकी और भ्राता लक्ष्मण के डोले की पूजा-अर्चना भी की गई. कार्यक्रम की शुरुआत मेला मैदान में जिला कलक्टर अनिल कुमार के साथ पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार चौधरी सहित मेला पदाधिकारियों ने की.
मेला मैदान से हरी झंडी दिखाकर जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक ने गणेशजी के डोले को रवाना किया. इसके बाद प्रेम के प्रतीक ढोला-मारू,हीर-रांझा,देश पर अमर बलिदानियों के प्रतीक शिवाजी,पृथ्वीराज चौहान,महाराणा प्रताप,सुग्रीव और उनकी वानर सेना ऊंट और घोड़ों पर मेले की शोभा बढ़ाते हुए देखे गए. साथ ही इलेक्ट्रॉनिक झांकियों में आधुनिकता की लाइटिंग और साज-सज्जा के साथ भगवानों की प्रतिमाओं को निकाला गया,30 झांकियो में कैला देवी माता,भोले शंकर माता पार्वती के साथ भगवान श्रीराम परिवार और भक्त हनुमान की भक्ति मेले में देखने को मिली.
14 बैंडबाजों का काफिला झांकियों के साथ निकला. मेला शहर के प्रमुख मार्गों से होता हुआ देर रात महाराज बाग मैदान पर पहुंचा. जहां भरत मिलाप के बाद मेले को विश्राम दिया गया और गुरुवार को मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को राजगद्दी के साथ मेले का समापन किया जाएगा.
12 भाइयों की कोशिश लाई रंग- सन् 1857 में अंग्रेजों के विरुद्ध हिन्दुस्तानियों ने एकजुट होकर आजादी की पहली जंग लड़ी थी. ये लड़ाई अंग्रेजों की उस सोच पर प्रहार थी जिसमें वो भारतीय समाज के खिलाफ फूट डालो राज करो की नीति पर काम कर रहे थे. सामाजिक ताने बाने को तोड़ने की कोशिश को नाकाम करने के लिए ही धौलपुर रियासत के बाड़ी में विभिन्न जातियों के बारह युवकों ने श्री बारहभाई मेले की शुरुआत की. पहले ये मेला बैलगाड़ियों और डोलियों में कहारों के सहयोग से निकाला जाता था. बिजली के अभाव में दिन में ही निकलता था.
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और इस तरह पड़ा नाम बारह भाई- तो कहानी शुरू होती है अखाड़े में दांव पेंच लगाने से. दरअसल, बाड़ी में पहलवानी एक प्रमुख खेल की तरह था, इसका भी इतिहास काफी समृद्ध रहा है. हुआ यूं कि इलाके के बारह पहलवान लगभग 165 वर्ष पूर्व जगनेर एक कार्यक्रम में पहुंचे. यहां प्रतियोगिता में भाग लेने और भी पहलवान पधारे थे. सबसे ज्यादा संख्या बाड़ी के बारह युवकों की थी, ये बारह भाई कहलाते थे. जब लोगों ने इनसे पूछा कि क्या आप बारह भाई हो? तो बाड़ी के बारह पहलवानों ने जवाब दिया- हां हम बारह भाई हैं.
बारह भाइयों ने प्यार और समर्पण का परिचय भी दिया. एक ही थाली और एक ही कुल्लड़ में खाना पीना ग्रहण किया. सभी अलग-2 समाज और जाति के थे, लेकिन वहां उन्होंने अपना परिचय बारह भाइयों के रूप में ही दिया. लौटने के बाद इन बारह भाइयों ने फैसला लिया कि भाईचारे की इस अलख को जगाए रखेंगे. सन् 1857 की क्रांति के बाद इन्होंने सामाजिक समरसता को ध्यान में रख बारह भाई मेले का शुभारंभ किया. जिसमें राम राज की परिकल्पना थी. तभी से हर साल प्रभु राम के 14 साल के वनवास से लेकर उनके राजगद्दी पर विराजने तक के प्रसंगों को प्रदर्शित किया जाता है.