राजाखेड़ा (धौलपुर). जिले में चंबल नदी से सटे इलाके वैसे तो बागी बजरी और बंदूक के लिए कुख्यात रहे हैं, लेकिन इन दिनों चंबल तटवर्ती गांव के एक किसान के नवाचार को लेकर काफी चर्चा हो रही है. राजाखेड़ा चंबल के बीहड़ में बसे गांव गढ़ी टड़ावली के किसान लक्ष्मीकांत शर्मा ने पारंपरिक खेती में कम मुनाफा और अधिक लागत को देखते हुए बागवानी की तरफ रुख किया है. लक्ष्मीकांत शर्मा ने अपनी आधा एकड़ जमीन में कृषि विज्ञान केंद्र के सहयोग से पपीते की बागवानी की, जिसके जरिये वह सालाना डेढ़ से दो लाख रुपये की कमाई कर रहे हैं. देखें ये खास रिपोर्ट
ताइवान रेड लेडी 786 से की बागवानी की शुरुआत...
किसान लक्ष्मीकांत शर्मा ने बताया कि उन्होंने अपने बगीचे में बागवानी के लिए कृषि विज्ञान केंद्र धौलपुर के अधिकारियों से संपर्क किया, जिसके बाद विभाग ने उन्हें पपीते की उन्नत किस्म ताइवान रेड लेडी 786 रोपने का सुझाव दिया. विभाग ने ही उन्हें करीब 20 रुपये प्रति पौधे की दर से 255 पौधे उपलब्ध कराएं, जिसके बाद उन्होंने इन पौधों को अपनी करीब आधा एकड़ जमीन में लगाकर पपीते की बागवानी की शुरुआत की.
कृषि विज्ञान केंद्र की सहायता से किया नवाचार...
लक्ष्मीकांत शर्मा ने बताया कि उन्होंने 12वीं बायोलॉजी और आईटीआई करने के बाद जयपुर स्थित एक प्राइवेट कंपनी में 1 साल तक नौकरी की. पारिवारिक कारणों से उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ी. गांव में आने के बाद रोजगार के साधनों के अभाव में गांव के अन्य लोगों की तरह उन्होंने भी पारंपरिक खेती शुरू कर दी. लेकिन, अधिक लागत और कम मुनाफे की वजह से उन्होंने बागवानी करने की ठानी. उन्होंने धौलपुर स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के अधिकारियों से संपर्क किया और अपनी जमीन पर पपीते की बागवानी करने की इच्छा जताई. कृषि विज्ञान केंद्र के अधिकारियों ने भी उनका इस नवाचार में भरपूर सहयोग दिया.
बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति को अपनाया...
लक्ष्मीकांत शर्मा ने बताया कि कृषि विज्ञान केंद्र के सहयोग से उन्होंने पपीते की जो ताइवान रेड लेडी 786 किस्म अपने खेत में लगाए, उससे एक पौधे से करीब 80 किलो से लेकर एक क्विंटल तक फल प्राप्त कर रहे हैं. किसान ने बताया कि ताइवान रेड लेडी 786 किस्म का पौधा करीब 2 फीट की लंबाई से ही फल देना प्रारंभ कर देता है. वहीं, पौधे के अच्छे फल प्रस्फुटन के लिए मिनिमम 10 डिग्री से अधिकतम 30 डिग्री तापमान होना बेहद जरूरी है. वहीं, सिंचाई के लिए उन्होंने पारंपरिक नलकूप पद्धति को छोड़ बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति को अपनाया है.
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फरवरी-मार्च में फलों में पकाव...
किसान ने बताया कि फरवरी से मार्च के बीच में पपीते के पौधों पर फल का पकाव शुरू हो जाता है. स्थानीय स्तर पर फलों की कोई मंडी और खरीददार ना होने के कारण वह शुरुआत में सीमावर्ती उत्तर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों की मंडी में फलों की सप्लाई करते थे. लेकिन, आज लोग उनके फलों को खेत से ही उचित भाव में ले जाते हैं.
लोगों ने बनाया मजाक, अब दिखाया कमाल...
किसान लक्ष्मीकांत शर्मा ने बताया कि पपीते की बागवानी करने में शुरुआती दौर में उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा. कई लोगों ने तो उनके इस नवाचार का मजाक भी बनाया, लेकिन कृषि विज्ञान केंद्र धौलपुर के अधिकारियों ने उनकी परेशानियों का समय-समय पर समाधान किया. वहीं, इस काम में उन्होंने इंटरनेट का भी सहारा लिया. किसान ने बताया कि अपनी समस्याओं के समाधान और जानकारी के लिए उन्होंने इंटरनेट के माध्यम से अन्य राज्यों के किसानों से भी संपर्क कर उनसे मार्गदर्शन प्राप्त किया.
राज्य स्तर पर हो चुके हैं सम्मानित...
25 फरवरी 2021 को श्री कर्ण नरेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय जोबनेर जयपुर में आयोजित हुए किसान मेला कार्यक्रम में किसान लक्ष्मीकांत शर्मा को सम्मानित किया गया. उनके नवाचार के लिए विश्वविद्यालय कुलपति और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के पुलिस महानिदेशक बीएल सोनी ने उन्हें प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया.
किसानों के लिए रोल मॉडल...
किसान लक्ष्मीकांत शर्मा ने बताया कि ज्यादातर किसान पारंपरिक खेती को करने में ही विश्वास रखते हैं. लेकिन, आज पारंपरिक खेती में अधिक लागत और कम मुनाफे की वजह से किसानों की आय में कोई वृद्धि नहीं हो रही. उन्होंने बताया कि वह अन्य किसानों को भी जानकारी उपलब्ध कराते हैं. वहीं, इसके बाद वह अब आगे पपीते की बागवानी के साथ अमरूद, नींबू, और किन्नू की खेती में भी हाथ आजमाएंगे.