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SPECIAL: मजबूरी सब कुछ सीखा देती है, कपड़ों में रंग भरने वाले हाथ साइकिल पंक्चर बनाने को मजबूर

लॉकडाउन के कारण प्रवासी श्रमिकों के सामने कई समस्याएं खड़ी हो गई हैं. कपड़ों पर खूबसूरत रंग-रोगन करने वालें श्रमिकों के सामने ऐसी समस्या खड़ी हो गई है कि उन्हें साइकिल पंक्चर बनाने के लिए भी मजबूर होना पड़ा.

दौसा न्यू,  Rajasthan news
मजबूरी ने साइकिल बनाना भी सीखा दिया
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Published : May 14, 2020, 6:02 PM IST

दौसा. किसी ने ठीक ही कहा है कि मरता क्या नहीं करता. जब इंसान के सामने मजबूरी आ जाती है तो वह अपने हर समस्या का समाधान खुद ही करने का प्रयास करता है. कुछ इसी तरह की मजबूरी बिहार जा रहे मजदूरों के सामने आई. जो मजदूर कल तक कपड़ों पर रंग-रोगन कर उन्हें खूबसूरत बनाया करते थे, आज साइकिल का पंचर बनाने को मजबूर हैं.

मजबूरी ने साइकिल बनाना भी सीखा दिया

बता दें कि बिहार से दर्जनों मजदूर बाड़मेर के बालोतरा में मजदूरी करने आए थे. यहां पर कपड़ों की प्रिंटिंग का कार्य करते थे. जैसे ही लॉकडाउन हुआ तो इनका रोजगार छिन गया. जिसके बाद इनके सामने खाने-पीने की समस्या खड़ी हो गई. मजबूर होकर इन मजदूरों को अपने राज्य की ओर लौटने का फैसला लेना पड़ा. वहीं लॉकडाउन के चलते पैसा खत्म हो गया और फैक्ट्री मालिक ने एडवांस तो दूर किए गए काम का पैसा भी नहीं दिया. जिसके बाद इन मजदूरों ने अपने घर से ऑनलाइन पैसा मंगवाया और साइकिल खरीदकर बिहार की ओर निकल गए. ये श्रमिक साइकिल से ही अपने गृह राज्य की ओर लौटने को मजबूर हैं.

दौसा न्यू,  Rajasthan news
खुद से पंक्चर बनाने की कोशिश करते ये श्रमिक

मुश्किलों से भरा है ये हजारों किलोमीटर का सफर

ये श्रमिक साइकिल से घर की ओर निकल गए पर हजारों किलोमीटर का सफर तय करने में इनके सामने कई समस्या खड़ी हो गई है. पहले तो इतनी तपती धूप में साइकिल से सफर करना सबसे मुश्किल है. वहीं दूसरी तरफ रास्ते में सारे दुकान बंद हैं. ऐसे में इनके सामने खाने-पीने की समस्या खड़ी हो गई है.

यह भी पढ़ें. SPECIAL: मजदूर की मजबूरी कायम, सैकड़ों किलोमीटर चलना पड़ रहा है पैदल

इन श्रमिकोंं की समस्या खत्म ही नहीं हो रही है. रास्ते में बार-बार साइकिल पंक्चर हो जाती है. रास्तों पर कोई पंक्चर बनाने का दुकान भी नहीं खुला है. ऐसे में कोई रास्ता नहीं देखकर रोगन करने वाले हाथों ने पंक्चर बनाने के लिए टूल्स उठा लिए हैं. इन श्रमिकों को पंक्चर भी बनाने नहीं आता है. हालांकि, रास्ते में आने वाली सभी समस्याओं को लेकर यह मजदूर पहले से आश्वस्त थे.

दौसा न्यू,  Rajasthan news
साइकिल पर पैदल जाने को मजबूर

यह भी पढ़ें. Special: ब्यूटी सैलून के व्यवसाय पर लॉकडाउन का 'ग्रहण', 9 हजार बारबर प्रभावित

जिसके चलते इन्होंने साइकिल में हवा भरने के लिए पंप और पंचर निकालने का सामान पहले ही साथ में रख लिया था. शायद इन मजदूरों की उसी दूर दृष्टि का परिणाम है कि इनकी जब साइकिल पंचर हुई तो खुद ही जैसे-तैसे पंचर बनाना शुरू कर दिया. जैसे-तैसे करके पंचर बना दिया और फिर मंजिल की ओर चल दिए. ऐसे में अब इन मजदूरों को मजबूरी ने इन्हें पंक्चर बनाना भी सीखा दिया, तभी तो कहते हैं कि समस्या जब सामने आती है तो इंसान लड़ना भी सीख जाता है.

दौसा. किसी ने ठीक ही कहा है कि मरता क्या नहीं करता. जब इंसान के सामने मजबूरी आ जाती है तो वह अपने हर समस्या का समाधान खुद ही करने का प्रयास करता है. कुछ इसी तरह की मजबूरी बिहार जा रहे मजदूरों के सामने आई. जो मजदूर कल तक कपड़ों पर रंग-रोगन कर उन्हें खूबसूरत बनाया करते थे, आज साइकिल का पंचर बनाने को मजबूर हैं.

मजबूरी ने साइकिल बनाना भी सीखा दिया

बता दें कि बिहार से दर्जनों मजदूर बाड़मेर के बालोतरा में मजदूरी करने आए थे. यहां पर कपड़ों की प्रिंटिंग का कार्य करते थे. जैसे ही लॉकडाउन हुआ तो इनका रोजगार छिन गया. जिसके बाद इनके सामने खाने-पीने की समस्या खड़ी हो गई. मजबूर होकर इन मजदूरों को अपने राज्य की ओर लौटने का फैसला लेना पड़ा. वहीं लॉकडाउन के चलते पैसा खत्म हो गया और फैक्ट्री मालिक ने एडवांस तो दूर किए गए काम का पैसा भी नहीं दिया. जिसके बाद इन मजदूरों ने अपने घर से ऑनलाइन पैसा मंगवाया और साइकिल खरीदकर बिहार की ओर निकल गए. ये श्रमिक साइकिल से ही अपने गृह राज्य की ओर लौटने को मजबूर हैं.

दौसा न्यू,  Rajasthan news
खुद से पंक्चर बनाने की कोशिश करते ये श्रमिक

मुश्किलों से भरा है ये हजारों किलोमीटर का सफर

ये श्रमिक साइकिल से घर की ओर निकल गए पर हजारों किलोमीटर का सफर तय करने में इनके सामने कई समस्या खड़ी हो गई है. पहले तो इतनी तपती धूप में साइकिल से सफर करना सबसे मुश्किल है. वहीं दूसरी तरफ रास्ते में सारे दुकान बंद हैं. ऐसे में इनके सामने खाने-पीने की समस्या खड़ी हो गई है.

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इन श्रमिकोंं की समस्या खत्म ही नहीं हो रही है. रास्ते में बार-बार साइकिल पंक्चर हो जाती है. रास्तों पर कोई पंक्चर बनाने का दुकान भी नहीं खुला है. ऐसे में कोई रास्ता नहीं देखकर रोगन करने वाले हाथों ने पंक्चर बनाने के लिए टूल्स उठा लिए हैं. इन श्रमिकों को पंक्चर भी बनाने नहीं आता है. हालांकि, रास्ते में आने वाली सभी समस्याओं को लेकर यह मजदूर पहले से आश्वस्त थे.

दौसा न्यू,  Rajasthan news
साइकिल पर पैदल जाने को मजबूर

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जिसके चलते इन्होंने साइकिल में हवा भरने के लिए पंप और पंचर निकालने का सामान पहले ही साथ में रख लिया था. शायद इन मजदूरों की उसी दूर दृष्टि का परिणाम है कि इनकी जब साइकिल पंचर हुई तो खुद ही जैसे-तैसे पंचर बनाना शुरू कर दिया. जैसे-तैसे करके पंचर बना दिया और फिर मंजिल की ओर चल दिए. ऐसे में अब इन मजदूरों को मजबूरी ने इन्हें पंक्चर बनाना भी सीखा दिया, तभी तो कहते हैं कि समस्या जब सामने आती है तो इंसान लड़ना भी सीख जाता है.

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