दौसा. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने चरखा चलाकर जिस खादी का निर्माण किया था. गांधी जी ने देश को स्वदेशी कपड़ा उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से खादी का निर्माण किया. मगर आज के फैशन के दौर में खादी पूरे देश में पिछड़ता जा रही है. युवा खादी पहनना तो दूर खादी के बारे में जानते भी नहीं है. मॉल कल्चर और ब्रांडेड शोरुम में नई-नई डिजाइनओं के चलते युवा खादी की तरफ देख भी नहीं पा रहे हैं. ऐसे में फैशन के इस दौर में खादी युवाओं को अपनी और आकर्षित नहीं कर पा रहा है. जिसके चलते युवा खादी से बिल्कुल मुंह मोड़ बैठे है.
खादी ने बदला अपना ट्रेंड
हालांकि खादी में हो रहे परिवर्तनों को लेकर दौसा खादी समिति के सचिव अनिल शर्मा ने बताया कि अब खादी पुरानी वाली खादी नहीं रही. जो कि एक ट्रेड मोटे कपड़े के रूप में जानी जाती थी. आज खादी में कपड़ों में लिए नए-नए ट्रेड और ऑप्शन तैयार हैं. खादी में सैकड़ों कलर डिजाइन आ गई है. बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल्स में भी खादी पहुंच गई है. युवाओं लिए जींस टीशर्ट जैसे कई ऑप्शन खादी में आ चुके हैं.
पीएम मोदी से बढ़ी खादी की जैकेट की डिमांड
वहीं अनिल शर्मा ने बताया कि जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बने हैं. तब से बाजार में खादी की जैकेट की डिमांड बढ़ी है. खादी वर्तमान समय में युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है. जिसके लिए उस जगह जगह प्रदर्शनियां लगवाई जा रही है.
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युवाओं को अब भी रास नहीं आ रही खादी
वहीं दूसरी ओर खादी को लेकर युवाओं का कहना है कि खादी आज भी सिर्फ राजनेताओं तक सिमट के रह गई है. खादी का मतलब आज भी उनके लिए सफेद कुर्ता पायजामा ही है. जो कि राजनेता पहनते हैं, फैशन के इस दौर में युवाओं को जो नए-नए ब्रांड और नई फैशन डिजाइन बाजार में शॉपिंग मॉल्स में उपलब्ध हैं वह खादी में आज भी नहीं है. युवाओं ने बताया कि खादी में आज भी कपड़ा खरीद कर टेलर के यहां नाप देकर सिलवाना पड़ता है. वहीं उन्होंने बताया कि जो कलर और डिजाइन पसंद है वो बाजार में आसानी से उपलब्ध हो जाते है और खादी में आज भी नहीं मिलते. इस कारण ही कंपटीशन के इस दौर में मॉल कल्चर और फैशन डिजाइनर के दौर में खादी पिछड़ता जा रही है.