दौसा. रक्षाबंधन का त्योहार आते ही बाजार में रौनक छा जाती थी. गलियों, सड़कों और फुटपाथ पर राखियों की दुकानें सजी हुई नजर आती थीं. लेकिन कोरोना काल में आए इस बार रक्षाबंधन का त्योहार कुछ अलग ही नजर आ रहा है. न सड़कों पर राखी की दुकान सजी हुई है और न ही फुटपाथों पर कोई राखी बेचता हुआ नजर आ रहा है. लेकिन अब राखियां बिक रही हैं तो सिर्फ दुकानों पर. कोरोना के चलते और लॉकडाउन की संभावना को देखते हुए राखी बनाने वाले मजदूरों ने भी इस बार राखियां कम तैयार की है, ताकि घाटा न हो और अब बाजार में राखी की कमी देखने को मिल रही है.
हालांकि इस बार बाजार में राखियों के ग्राहक भी कम नजर आ रहे हैं. ऐसे में जो ग्राहक आ रहे हैं, दुकानदार उन ग्राहकों से अच्छा मुनाफा कमाने में लगे हुए हैं, जिससे बहनों को राखियां महंगी मिल रही हैं. महंगाई का दूसरा कारण यह भी है कि इस बार रक्षाबंधन के मार्केट में चाइनीज राखियां पूरी तरह लुप्त हैं जो स्थानीय बाजार की राखियां हैं उनके दाम अधिक हैं. साथ ही बाहर से आने वाली राखियों का ट्रांसपोर्टेशन अधिक होने के चलते बाजार पिछले साल की तुलना में इस बार महंगा है.
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बीते कुछ साल पहले की बात करें तो दौसा शहर में जगह-जगह राखियों की दुकानें सजाई जाती थीं. ग्रामीण और शहरी महिलाएं दिनभर इन राखियों की दुकानों पर शॉपिंग करती हुई नजर आती थीं. इस तरह के दृश्य राखी से 15 दिन पहले ही दिखाई देने शुरू हो जाते थे, लेकिन इस बार बाजार में रौनक गायब है. दुकानों पर भी गिने-चुने ग्राहक की राखियां खरीद रहे हैं. बाजार में रौनक कम होने का सबसे बड़ा कारण बताया जा रहा है कि ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले आवागमन के साधन शहरों तक नहीं आ रहे हैं. ऐसे में यदि किसी को शहर में आना होता है तो वह अपना निजी वाहन ही लेकर आता है.
ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र में निजी वाहन हर व्यक्ति के पास होना संभव नहीं है, जिसके वजह से भी बाजार सुने पड़े हैं. महिलाओं को भी अपने भाई के राखी बांधने जाने के लिए निजी वाहन का उपयोग करना पड़ रहा है. पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन में कोरोना होने के डर से महिलाएं इस बार पब्लिक ट्रांसपोर्ट से आवागमन का उपयोग करने से भी बच रही हैं, जिन लोगों के पास खुद की निजी वाहन है या जिन्हें कम दूरी तय करनी है. वही लोग मुख्यत: बाहर निकल रहे हैं.
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वहीं राखियां बेचने वालों से ज्यादा बदतर हालात इस साल मिठाई की दुकान वालों के हैं. पिछले साल तक मिठाई की दुकान वाले रक्षाबंधन पर मिठाई की लंबी चौड़ी स्टाल लगाकर दुकान के आगे के पूरे सड़क एरिया को कवर कर लेते थे. साथ ही दर्जनों तरह की मिठाइयों से दुकान में क्विंटलों मावे से कई प्रकार की मिठाईयां बनाकर दुकान सजाते थे. लेकिन इस साल सब कुछ फीका है, कोरोना के चलते पिछले साल की तुलना में बिकने वाली मिठाइयों को देखा जाए तो इस साल में 40 से 50 प्रतिशत ही मिठाइयां बिक पा रही हैं. इसके चलते दुकानदारों ने इस साल मिठाइयों का प्रोडक्शन न के बराबर कर दिया है. मिठाई विक्रेताओं का कहना है कि कोरोना के चलते लोग पहले से ही घाटे में चल रहे हैं. ऐसे में अब और ज्यादा मिठाई बनाकर रिस्क लेने भर की क्षमता नहीं रही.