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स्टेशनरी, स्कूल यूनिफॉर्म और किताब विक्रेताओं पर लॉकडाउन की मार, दुकान किराया भी निकालना हुआ मुश्किल - दौसा में रोजगार का संकट

विद्यार्थी वर्ग के जीवन में किताबों का विशेष महत्व होता है, लेकिन इस बार कोरोना के कारण दुकानें बंद होने से किताबें नहीं बिक सकी हैं. इससे विद्यार्थियों के साथ-साथ दुकानदारों को भी नुकसान हुआ है. अप्रैल, मई और जून महीने में किताबें, कॉपियां और स्टेशनरी बेचकर दुकानदार भारी कमाई करते थे, लेकिन इस बार यह कमाई नाममात्र हुई है. कुछ ऐसे ही हालात है दौसा में किताब, कॉपी और स्टेशनरी विक्रेताओं की, देखिए ये खास रिपोर्ट...

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दुकान का किराया भी नहीं निकल रहा
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Published : Jun 17, 2020, 5:46 PM IST

दौसा. कोरोना संक्रमण के बीच लागू हुए 'अनलॉक 1.0' के दरमियान लगभग सभी व्यापार अब धीरे-धीरे पटरी पर आ रहे हैं. लेकिन सरकार ने जिन स्थानों या दुकानों पर ज्यादा भीड़-भाड़ होती है, उनको पूरी तरह से छूट नहीं दी है. ऐसे में सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं स्कूल से जुड़े व्यापार. फिलहाल, स्कूलों को शुरू करने के लिए सरकार की तरफ से अभी तक कोई गाइडलाइन जारी नहीं की गई है. साथ ही निजी और राजकीय विद्यालयों के शुरू होने के दूर-दूर तक कोई चांस भी नजर नहीं आ रहे, जिसके चलते स्कूल यूनिफार्म, स्टेशनरी और बुक्स विक्रेता इसकी भेंट चढ़ते नजर आ रहे हैं.

दुकान का किराया भी नहीं निकल रहा

जानकारी के लिए बता दें कि अंग्रेजी माध्यम से चलने वाले सभी विद्यालय 1 अप्रैल से शुरू होने वाले थे, लेकिन मार्च के अंत में कोरोना के चलते लॉकडाउन की घोषणा हो गई. ऐसे में सभी दुकानदार अपने-अपने व्यापार को बढ़ावा देने के लिए व्यापार में पूरी तरह इन्वेस्ट कर चुके थे. सभी बुक सेलर विद्यालय में चलने वाली सभी बुक्स खरीदकर ला चुके थे. स्कूल यूनिफार्म विक्रेता सभी स्कूलों की यूनिफार्म अपनी दुकान और गोदाम में पहुंचा चुके थे. वहीं स्टेशनरी पूरी तरह प्रिंट होकर कर बाजार में आ चुकी थी, लेकिन अचानक हुए लॉकडाउन ने इनकी मेहनत पर पानी फेर दिया.

आखिर क्या कह रहे विक्रेता?

स्कूल यूनिफार्म विक्रेता आलोक जैन का कहना है कि अगले सीजन के लिए सभी व्यापारी अपने से संबंधित विद्यालयों की यूनिफॉर्म, टाई बेल्ट और जूते सहित अन्य सामान खरीदकर दुकान की गोदाम में रख चुके थे. लेकिन अचानक लॉकडाउन हो गया और दुकानदार आर्थिक संकट में डूब गए. अब स्कूल से जुड़े व्यापारी अपनी दुकान का किराया तक नहीं निकाल पा रहे. जैन ने बताया कि सैकड़ों की तादाद में लोग बेरोजगार हो गए और व्यापारी वर्ग लाखों रुपए के कर्ज में डूब गया.

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बुक्स विक्रेताओं के सामने रोजी-रोटी का संकट

स्टेशनरी विक्रेता संजय अग्रवाल ने बताया कि नए सीजन के लिए सभी स्टेशनरी प्रिंट करवाकर बाजार में ला चुके थे. लेकिन अब तो ना ही स्कूलों में स्टेशनरी का सामान जा रहा और ना ही सरकारी कार्यालय में. सरकारी कार्यालय में बजट की समस्या है तो राजकीय एवं निजी विद्यालय पूरी तरह बंद हैं. इस संकट की घड़ी में अब कोई सहारा नजर नहीं आ रहा.

यह भी पढ़ेंः स्कूल-कोचिंग बंद होने से स्टेशनरी विक्रेताओं का छलका दर्द, आप भी सुनिए

पुस्तक विक्रेता गजेंद्र झाला का कहना है कि स्कूलों का नया सत्र शुरू होने वाला था, जिसके लिए सभी बुक्स और नोटबुक प्रिंट करवाकर दुकान में लाकर रख दी थी. अब लाखों रुपए का माल दुकान में गोदाम में पड़ा पड़ा वेस्ट हो रहा है. दुकान का किराया देना स्टाफ की सैलरी देना भी मुश्किल हो रहा है. सीजन शुरू होने के लिए माल लाने के लिए इधर-उधर से पैसे उधारी करके जो लगाए थे, अब उन्हें लौट आना भी मुश्किल हो रहा है.

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लॉकडाउन से पहले मंगाई गई किताबें रद्दी के भाव भी नहीं बिक रही

ऐसे में स्कूलों से जुड़े व्यापारी पूरी तरह संकट के दौर से गुजर रहे हैं. ऐसे में लाखों रुपए कर्जा हो जाने, दुकान और बिजली का बिल का खर्च यथावत बने रहने, स्टाफ की सैलरी देने सहित अन्य खर्चों से दुकानदार काफी चिंतित नजर आ रहे हैं.

दौसा. कोरोना संक्रमण के बीच लागू हुए 'अनलॉक 1.0' के दरमियान लगभग सभी व्यापार अब धीरे-धीरे पटरी पर आ रहे हैं. लेकिन सरकार ने जिन स्थानों या दुकानों पर ज्यादा भीड़-भाड़ होती है, उनको पूरी तरह से छूट नहीं दी है. ऐसे में सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं स्कूल से जुड़े व्यापार. फिलहाल, स्कूलों को शुरू करने के लिए सरकार की तरफ से अभी तक कोई गाइडलाइन जारी नहीं की गई है. साथ ही निजी और राजकीय विद्यालयों के शुरू होने के दूर-दूर तक कोई चांस भी नजर नहीं आ रहे, जिसके चलते स्कूल यूनिफार्म, स्टेशनरी और बुक्स विक्रेता इसकी भेंट चढ़ते नजर आ रहे हैं.

दुकान का किराया भी नहीं निकल रहा

जानकारी के लिए बता दें कि अंग्रेजी माध्यम से चलने वाले सभी विद्यालय 1 अप्रैल से शुरू होने वाले थे, लेकिन मार्च के अंत में कोरोना के चलते लॉकडाउन की घोषणा हो गई. ऐसे में सभी दुकानदार अपने-अपने व्यापार को बढ़ावा देने के लिए व्यापार में पूरी तरह इन्वेस्ट कर चुके थे. सभी बुक सेलर विद्यालय में चलने वाली सभी बुक्स खरीदकर ला चुके थे. स्कूल यूनिफार्म विक्रेता सभी स्कूलों की यूनिफार्म अपनी दुकान और गोदाम में पहुंचा चुके थे. वहीं स्टेशनरी पूरी तरह प्रिंट होकर कर बाजार में आ चुकी थी, लेकिन अचानक हुए लॉकडाउन ने इनकी मेहनत पर पानी फेर दिया.

आखिर क्या कह रहे विक्रेता?

स्कूल यूनिफार्म विक्रेता आलोक जैन का कहना है कि अगले सीजन के लिए सभी व्यापारी अपने से संबंधित विद्यालयों की यूनिफॉर्म, टाई बेल्ट और जूते सहित अन्य सामान खरीदकर दुकान की गोदाम में रख चुके थे. लेकिन अचानक लॉकडाउन हो गया और दुकानदार आर्थिक संकट में डूब गए. अब स्कूल से जुड़े व्यापारी अपनी दुकान का किराया तक नहीं निकाल पा रहे. जैन ने बताया कि सैकड़ों की तादाद में लोग बेरोजगार हो गए और व्यापारी वर्ग लाखों रुपए के कर्ज में डूब गया.

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बुक्स विक्रेताओं के सामने रोजी-रोटी का संकट

स्टेशनरी विक्रेता संजय अग्रवाल ने बताया कि नए सीजन के लिए सभी स्टेशनरी प्रिंट करवाकर बाजार में ला चुके थे. लेकिन अब तो ना ही स्कूलों में स्टेशनरी का सामान जा रहा और ना ही सरकारी कार्यालय में. सरकारी कार्यालय में बजट की समस्या है तो राजकीय एवं निजी विद्यालय पूरी तरह बंद हैं. इस संकट की घड़ी में अब कोई सहारा नजर नहीं आ रहा.

यह भी पढ़ेंः स्कूल-कोचिंग बंद होने से स्टेशनरी विक्रेताओं का छलका दर्द, आप भी सुनिए

पुस्तक विक्रेता गजेंद्र झाला का कहना है कि स्कूलों का नया सत्र शुरू होने वाला था, जिसके लिए सभी बुक्स और नोटबुक प्रिंट करवाकर दुकान में लाकर रख दी थी. अब लाखों रुपए का माल दुकान में गोदाम में पड़ा पड़ा वेस्ट हो रहा है. दुकान का किराया देना स्टाफ की सैलरी देना भी मुश्किल हो रहा है. सीजन शुरू होने के लिए माल लाने के लिए इधर-उधर से पैसे उधारी करके जो लगाए थे, अब उन्हें लौट आना भी मुश्किल हो रहा है.

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लॉकडाउन से पहले मंगाई गई किताबें रद्दी के भाव भी नहीं बिक रही

ऐसे में स्कूलों से जुड़े व्यापारी पूरी तरह संकट के दौर से गुजर रहे हैं. ऐसे में लाखों रुपए कर्जा हो जाने, दुकान और बिजली का बिल का खर्च यथावत बने रहने, स्टाफ की सैलरी देने सहित अन्य खर्चों से दुकानदार काफी चिंतित नजर आ रहे हैं.

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