दौसा. कोरोना संक्रमण काल में लॉकडाउन के समय एक योद्धा की तरह अपनी भूमिका निभाने वाले बैंक कर्मचारियों के योगदान को नजरअंदाज नहीं जा सकता है. लोगों को आर्थिक समस्या से न गुजरना पड़े इसलिए अपनी जान जोखिम में डालकर भी वे बैंक आते रहे और अपना काम करते रहे. कोरोना काल में स्वास्थ्य एवं पुलिस कर्मियों की तो हर तरफ सराहना हुई, लेकिन बैंककर्मियों की भूमिका पर किसी ने चर्चा तक नहीं की. ऐसे में ईटीवी भारत ने जब कोरोना वॉरियर्स के रूप में कार्य करने वाले बैंककर्मियों से बातचीत की तो उन्होंने कठिन दौर में किए गए कार्यों के बारे में अनुभव साझा किए. यह भी बताया कि क्या सावधानियां बरतते हुए उन्होंने काम किया.
22 मार्च को लॉकडाउन के बाद कोरोना संक्रमण बढ़ने के साथ लोगों में कोरोना का डर भी बैठता गया, ऐसे में सभी सरकारी एवं निजी संस्थान बंद कर दिए गए. लोग वर्क फ्रॉम होम करने लगे लेकिन बैंककर्मी मैदान में डटे रहे. रोजाना बैंक जाने के साथ ग्राहकों को सेवाएं भी देते रहे.
आधे से कम स्टाफ में चलाया काम
ईटीवी भारत ने लॉकडाउन के दौरान बैंक कर्मियों से उनके अनुभव और प्रयासों के बारे में पूछा तो SBI के मुख्य शाखा प्रबंधक रतन लाल मीणा ने बताया कि उन दिनों हालात बहुत खराब थे. आधे से ज्यादा स्टाफ को छुट्टी दे दी गई थी. जो स्टाफ बैंक आ रहा था उनमें भी डर समाया था, लेकिन स्थिति को संभालते हुए पूरे स्टाफ को मोटिवेट किया गया. बैंक में हर आने जाने-वाले के लिए मास्क, सैनिटाइजर अनिवार्य कर दिया गया. बैंक के मुख्य द्वार पर एक गार्ड लगा दिया गया जो बैंक में आने वाले हर व्यक्ति को सैनेटाइज करे. सतर्कता बरतते हुए बिना मास्क के बैंक में प्रवेश बंद किया, सप्ताह में दो बार पूरे बैंक को सैनिटाइज करवाते रहे. नोटों से संक्रमण का खतरा बना रहता था तो पूरे स्टाफ को ग्लव्स भी वितरित करवाए गए. जिले का सबसे बड़ा बैंक होने के कारण यहां कैश ट्रांजैक्शन भी ज्यादा होता है, ऐसे में आधे स्टाफ से काम चलाना भी मुश्किल था.
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केवल आवश्यक कार्य ही किए गए
यूको बैंक के प्रबंधक अविनाश सक्सेना का कहना है कि जनधन खातों में पैसे डालने के बाद एक साथ लोगों की भीड़ बढ़ना शुरू हो गई थी. अधिक आवश्यकता के कारण लोगों को पैसे निकाल कर देना भी जरूरी था. गार्ड की व्यवस्था कर सोशल डिस्टेंसिंग की पालना करवाई गई, सैनिटाइज करवाने के साथ हर व्यक्ति का कार्य किया गया. लॉकडाउन के दौरान केवल आवश्यक काम ही किए गए. पासबुक में एंट्री जैसे काम पूरी तरह से रोक दिए गए थे. मार्च के अंतिम सप्ताह में लॉकडाउन के बाद स्टाफ कम आने से काम कम ही किया जा सका. इसके चलते बैंक की रिकवरी और काम की पेंडेंसी बहुत बढ़ गई है. अब उसे धीरे-धीरे पूरा कर रहे हैं.
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मास्क, सैनिटाइजर किया अनिवार्य
इंडियन बैंक के मुख्य शाखा प्रबंधक कल्पेश मीणा ने बताया कि कोरोना काल में काम करना समस्याओं से भरा रहा. सरकार की गाइडलाइन के चलते हमने स्टाफ तो आधा कर दिया, लेकिन हमारा काम आधा नहीं हुआ. ऐसे में कोरोना का डर और वर्कलोड हमारे लिए बड़ी चुनौती थी. बैंक में कैश जमा करवाने वाले, निकलवाने वाले, बैंक पासबुक एंट्री करवाने वाले लोगों का आना-जाना लगा रहता था, जिससे कोरोना फैलने का डर बहुत अधिक था. ऐसे में मास्क, सैनिटाइजर अनिवार्य करते हुए हमने कम स्टाफ में अधिक मेहनत कर काम किया. बैंक कर्मियों के साथ यह भी दिक्कत थी कि उन्हें ड्यूटी के बाद घर जाना होता था, उन्हें कहीं क्वॉरेंटाइन करने जैसी व्यवस्था भी नहीं थी जिस घर वालों में भी संक्रमण का खतरा रहता था. इसी डर के बीच जैसे-तैसे 3 महीने का लॉकडाउन काल निकाला, लेकिन अब कोरोना के साथ काम करना सीख गए हैं. अब मास्क और सैनिटाइजर अनिवार्य कर ग्लव्स पहन कर काम करते हैं.
कोरोना काल में बैंकों की भूमिका को लेकर उपभोक्ताओं का कहना है कि इस दौरान सभी सरकारी एवं निजी कार्यालय बंद हो गए थे. बैंक भी बंद हो जाते तो लोगों की परेशानी और बढ़ जाती. लेकिन बैंक कर्मचारियों ने कोरोना वॉरियर्स के रूप में बड़ी भूमिका निभाई. आम जनता को आर्थिक संकट में भी मदद दी. सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क, सैनिटाइजर अनिवार्य करते हुए बैंककर्मियों ने लॉकडाउन के बीच भी जनता को सेवाएं दीं. जनधन खाते में सरकार की ओर से रुपये डाले जाने के बाद बैंकों में भीड़ उमड़ी, लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग और कोविड 19 के नियमों का पालन कराते हुए लोगों को रुपये उपलब्ध कराए गए.