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स्पेशल: जंजीरों से बंधा है 'गिरधारी' का जीवन, बूढ़ी नजरों को जंजीरों से रिहा होना का है इंतजार

चूरू के रूपलिसर पंचायत के गांव ढाणी देगा के गिरधारी राम ढाका की जिंदगी तीन साल से जंजीरों में जकड़ी हुई है. गिरधारी राम मानसिक रूप से बीमार चल रहे हैं. पैसे के अभाव में उनके परिजन इलाज भी नहीं करवा पा रहे हैं, जिसकी वजह से गिरधारी को परिवार वालों ने एक पेड़ से बांध के रखा है. ऐसे में यह पूरा मामला मानवता पर सवाल खड़ा करता है.

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कौन करवाएगा जंजीरों से मुक्त
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Published : Jul 9, 2020, 11:37 PM IST

सरदारशहर (चूरू). आज के समय में पालतू पशुओं को भी हम जंजीरों से बांधकर नहीं रखते हैं, लेकिन कुछ लोग इस कदर बदकिस्मती लेकर आते हैं कि उनका जीवन ही उनके लिए अभिशाप बन जाता है. कुछ ऐसा ही जीवन बिता रहे हैं चूरू के सरदारशहर से 24 किलोमीटर दूर रूपलिसर पंचायत के गांव ढाणी देगा के गिरधारी राम ढाका.

जंजीरों से बंधा जीवन

गिरधारी राम 3 साल से भी ज्यादा वक्त से एक पेड़ से जंजीरों में जकड़े हुए हैं. पेड़ के नीचे धूप और बारिश से बचाने के लिए तिरपाल लगाकर छत बनाई गई है. गिरधारी की सुबह भी यहीं होती है और शाम भी यहीं. यहां से गुजरने वाले हर व्यक्ति को गिरधारी बस इसी आशा भरी नजरों से देखता है कि कोई आएगा और उसे इन जंजीरों से मुक्त करवाएगा.

पढ़ेंः Special: महंगाई की 'डबल' मार...पहले पेट्रोल-डीजल, अब थाली से दूर होती सब्जियां

ग्रामीणों का कहना है कि मानसिक स्थिति खराब होने के चलते परिवार के लोगों ने गिरधारी को जंजीरों से जकड़ दिया है. हालांकि ग्रामीणों का यह भी कहना है कि गिरधारी की मानसिक स्थिति ज्यादा खराब नहीं है, यदि उचित इलाज मिल सके तो निश्चित ही गिरधारी अपना जीवन सही प्रकार से गुजार सकता है. लेकिन गिरधारी का इलाज पैसे के अभाव में नहीं हो पाया है.

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बूढ़ी नजरों को रिहा होने का इंतजार

साथ ही बताया कि गिरधारी की परिवार की स्थिति बहुत दयनीय है, जिसके चलते ग्रामीण प्रशासन से गिरधारी के इलाज के लिए गुहार लगा चुके हैं. लेकिन प्रशासन की तरफ से इस ओर कोई कदम नहीं उठाए गए. जिसका नतीजा यह है कि तीन साल से एक बुजुर्ग जंजीरों में जिंदगी जीने को मजबूर है.

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मनवता पर खड़े करता है सवाल

हमारे ईटीवी भारत के संवाददाता ने जब गिरधारी से उनके बारे में पूछा, तो गिरधारी ने हर सवाल का जवाब ऐसे दिया, मानो उसे कुछ हुआ ही नहीं हो. इससे यह तो साफ हो जाता है कि यदि गिरधारी का उचित इलाज किया जाए, तो वह निश्चित ही सही होकर अपना जीवन अच्छे से बिता सकता है.

पढ़ेंः Special : आसमान छू रहे सब्जियों के दाम, महंगाई ने बिगाड़ा रसोई का बजट

गिरधारी के पड़ोसियों का कहना है कि हम सभी गांव के लोग गिरधारी को फिर से उसी पुराने रूप में देखना चाहते हैं. लेकिन यह संभव प्रशासन की मदद से ही हो सकता है. इसलिए प्रशासन से गुहार लगाते हैं कि गिरधारी का अच्छे डॉक्टर से इलाज कराया जाए. वहीं गिरधारी के बीमार होने के चलते उसका परिवार का पालन पोषण करना भी अब मुश्किल हो गया है. गिरधारी की पत्नी जैसे-तैसे करके अपना घर चला रही है.

कहीं ना कहीं सवाल प्रशासन पर भी उठता है-

प्रशासन को जब ग्रामीणों द्वारा सूचना दे दी गई है कि इस प्रकार से हमारे गांव में एक व्यक्ति को जंजीरों से बांध रखा है, तो प्रशासन को उचित कार्रवाई करनी चाहिए थी. लेकिन प्रशासन भी अपने जिम्मेदारियों का सही प्रकार से निर्वहन करता हुआ नजर नहीं आ रहा है. क्योंकि आज के समय में किसी व्यक्ति को जंजीरों से बांध कर रखना अपराध है. प्रशासन को चाहिए कि वो मानसिक रूप से विक्षिप्त व्यक्ति का संज्ञान लेकर प्रशासनिक मदद से या फिर सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से उसका उचित इलाज करवाएं.

गिरधारी के घर में नहीं है शौचालय-

जब हमने गांव की पड़ताल की तो हैरान कर देने वाली बात सामने आई. गांव के अंदर पंचायत समिति की ओर से बोर्ड लगाकर लिखा हुआ है कि यह गांव खुले में शौच मुक्त गांव है. लेकिन गिरधारी के घर में पंचायत की ओर से यह सुविधा अभी तक उपलब्ध नहीं करवाई गई है. गिरधारी आज भी इस खुले पेड़ के नीचे ही शौच करने को मजबूर है.

पढ़ेंः SPECIAL: राष्ट्रपति अवार्ड विजेता एकमात्र महिला कुली मंजू देवी की जिंदगी फिर हुई 'बेपटरी'

खैर अब देखने वाली बात यह होगी कि कब प्रशासन या मानवाधिकार या फिर किसी सामाजिक संगठन की नजर गिरधारी पर पड़ती है और कब गिरधारी इन जंजीरों से मुक्त हो पाता है. वहीं इस मामले को देखकर कहीं ना कहीं मानव सभ्यता पर भी सवाल उठते हैं.

सरदारशहर (चूरू). आज के समय में पालतू पशुओं को भी हम जंजीरों से बांधकर नहीं रखते हैं, लेकिन कुछ लोग इस कदर बदकिस्मती लेकर आते हैं कि उनका जीवन ही उनके लिए अभिशाप बन जाता है. कुछ ऐसा ही जीवन बिता रहे हैं चूरू के सरदारशहर से 24 किलोमीटर दूर रूपलिसर पंचायत के गांव ढाणी देगा के गिरधारी राम ढाका.

जंजीरों से बंधा जीवन

गिरधारी राम 3 साल से भी ज्यादा वक्त से एक पेड़ से जंजीरों में जकड़े हुए हैं. पेड़ के नीचे धूप और बारिश से बचाने के लिए तिरपाल लगाकर छत बनाई गई है. गिरधारी की सुबह भी यहीं होती है और शाम भी यहीं. यहां से गुजरने वाले हर व्यक्ति को गिरधारी बस इसी आशा भरी नजरों से देखता है कि कोई आएगा और उसे इन जंजीरों से मुक्त करवाएगा.

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ग्रामीणों का कहना है कि मानसिक स्थिति खराब होने के चलते परिवार के लोगों ने गिरधारी को जंजीरों से जकड़ दिया है. हालांकि ग्रामीणों का यह भी कहना है कि गिरधारी की मानसिक स्थिति ज्यादा खराब नहीं है, यदि उचित इलाज मिल सके तो निश्चित ही गिरधारी अपना जीवन सही प्रकार से गुजार सकता है. लेकिन गिरधारी का इलाज पैसे के अभाव में नहीं हो पाया है.

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साथ ही बताया कि गिरधारी की परिवार की स्थिति बहुत दयनीय है, जिसके चलते ग्रामीण प्रशासन से गिरधारी के इलाज के लिए गुहार लगा चुके हैं. लेकिन प्रशासन की तरफ से इस ओर कोई कदम नहीं उठाए गए. जिसका नतीजा यह है कि तीन साल से एक बुजुर्ग जंजीरों में जिंदगी जीने को मजबूर है.

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मनवता पर खड़े करता है सवाल

हमारे ईटीवी भारत के संवाददाता ने जब गिरधारी से उनके बारे में पूछा, तो गिरधारी ने हर सवाल का जवाब ऐसे दिया, मानो उसे कुछ हुआ ही नहीं हो. इससे यह तो साफ हो जाता है कि यदि गिरधारी का उचित इलाज किया जाए, तो वह निश्चित ही सही होकर अपना जीवन अच्छे से बिता सकता है.

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गिरधारी के पड़ोसियों का कहना है कि हम सभी गांव के लोग गिरधारी को फिर से उसी पुराने रूप में देखना चाहते हैं. लेकिन यह संभव प्रशासन की मदद से ही हो सकता है. इसलिए प्रशासन से गुहार लगाते हैं कि गिरधारी का अच्छे डॉक्टर से इलाज कराया जाए. वहीं गिरधारी के बीमार होने के चलते उसका परिवार का पालन पोषण करना भी अब मुश्किल हो गया है. गिरधारी की पत्नी जैसे-तैसे करके अपना घर चला रही है.

कहीं ना कहीं सवाल प्रशासन पर भी उठता है-

प्रशासन को जब ग्रामीणों द्वारा सूचना दे दी गई है कि इस प्रकार से हमारे गांव में एक व्यक्ति को जंजीरों से बांध रखा है, तो प्रशासन को उचित कार्रवाई करनी चाहिए थी. लेकिन प्रशासन भी अपने जिम्मेदारियों का सही प्रकार से निर्वहन करता हुआ नजर नहीं आ रहा है. क्योंकि आज के समय में किसी व्यक्ति को जंजीरों से बांध कर रखना अपराध है. प्रशासन को चाहिए कि वो मानसिक रूप से विक्षिप्त व्यक्ति का संज्ञान लेकर प्रशासनिक मदद से या फिर सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से उसका उचित इलाज करवाएं.

गिरधारी के घर में नहीं है शौचालय-

जब हमने गांव की पड़ताल की तो हैरान कर देने वाली बात सामने आई. गांव के अंदर पंचायत समिति की ओर से बोर्ड लगाकर लिखा हुआ है कि यह गांव खुले में शौच मुक्त गांव है. लेकिन गिरधारी के घर में पंचायत की ओर से यह सुविधा अभी तक उपलब्ध नहीं करवाई गई है. गिरधारी आज भी इस खुले पेड़ के नीचे ही शौच करने को मजबूर है.

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खैर अब देखने वाली बात यह होगी कि कब प्रशासन या मानवाधिकार या फिर किसी सामाजिक संगठन की नजर गिरधारी पर पड़ती है और कब गिरधारी इन जंजीरों से मुक्त हो पाता है. वहीं इस मामले को देखकर कहीं ना कहीं मानव सभ्यता पर भी सवाल उठते हैं.

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