सरदारशहर (चूरू). आज से तकरीबन 14 साल पहले लालचंद अपने गांव से सुबह हंसी खुशी शहर गया था, किसी काम से. उस समय लालचंद को क्या पता था कि जब वह फिर से शाम को अपने गांव लौटेगा तो उसकी जिंदगी दोजख बन जाएगी. लालचंद की जिंदगी एक पेड़ के इर्द-गिर्द ही सिमट कर रह गई है. उसकी सुबह जहां होती है वहीं उसकी शाम हो जाती है.
ग्रामीणों ने बताया कि लालचंद 14 साल पहले सरदारशहर में किसी काम से गया था. वहां से जब वापस घर आया तो कुछ देर बाद अजीब- अजीब हरकतें करने लगा और बाद में उसकी ये हरकतें बढ़ती चली गईं. धीरे-धीरे वह मानसिक रोगी बन गया. हालात बेकाबू हुए तो घरवालों ने बीकानेर और जयपुर के बड़े-बड़े अस्पतालों में उसका इलाज करवाया, लेकिन लाखों रुपए खर्चा करने के बाद भी लालचंद की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ. लालचंद किसी को हानि ना पहुंचा दे, इसलिए उसके परिवार ने थक हारकर लालचंद को 9 सालों से बेड़ियों से बांध रखा है.
क्या हुआ 14 साल पहले ?
लालचंद के परिजनों का कहना है कि मानसिक रोगी होने की वजह से उसे घर में सांकल से बांध रखा है. वेसे तो लालचंद चुपचाप बैठा रहता है, उसको बीच-बीच में ऐसे सरारे उठते हैं, जिससे वह पागलों की तरह हरकतें करने लगता है. लोगों के घरों में पत्थर मारने लगता है. लालचंद पिछले 9 सालों से अब अपने घर में ही सांकल से बंधा रहता है. घरवालों ने बताया कि लालचंद की पेंशन शुरू करवाने के लिए काफी प्रयास किए, तब जाकर पिछले 12 महीनों से मात्र 750 रुपये पेंशन के रूप में मिल पाते हैं. स्थिति यह है कि लालचंद सर्दी, गर्मी, बारिश के मौसम में भी बाहर ही सोता है. उसको जिस पेड़ से बांधा गया है, उसके पास ही शौचालय भी बना दिया है और पास ही उसके लिए एक छोटी सी झोपड़ी बना दी गयी है. सांकल से खोलने पर वह कभी भी कोई बड़ी हरकत करने लग जाता है. हैरानी की बात यह है कि ऐसा क्या हुआ 14 साल पहले, उस दिन जिसके चलते लालचंद की यह दशा हो गई.
परिवार में कोई नहीं है कमाने वाला...
लालचंद के परिवार की मजबूरी यह है कि उसके परिवार में कोई भी कमाने वाला नहीं है. बड़ी मुश्किल से लालचंद के बुजुर्ग पिता और मां दूसरों के घरों में मजदूरी करके घर के सदस्यों का पालन-पोषण करते हैं. लालचंद के परिजनों ने कहा कि पहले तो शुरू-शुरू में लालचंद का जयपुर, बीकानेर में इलाज करवाया. इस दौरान उनकी जमीन व लालचन्द की मां के गहने भी बिक गये, लेकिन अब दो वक्त की रोटी का भी जुगाड़ बड़ी मुश्किल से होता है. ऐसे में लालचंद का इलाज कराने में परिवार सक्षम नहीं है. इस दुख से लालचंद के बड़े भाई की भी मानसिक स्थिति खराब हो गई है.
घर की आर्थिक स्थिति बेहत खराब...
जब ईटीवी भारत के संवाददाता ने बात करनी चाहि तो लालचंद अजीब-अजीब बातें करने लगा. जब पूछा गया कि वह खुलना चाहता है तो उसने कहा हां. लालचंद ने कहा कि वह खेत जाना चाहता है. लालचंद की इन्हीं हरकतों की वजह से उसका बड़ा भाई भी मानसिक रूप से परेशान हो चुका है और बहकी-बहकी बातें करता है. सरकार नि:शुल्क इलाज कराने के बड़े-बड़े दावे करती है, लेकिन लालचंद की सुनने वाला कोई नहीं है. लालचंद के घरवालों ने बताया कि वर्तमान में घर की हालात बहुत खराब है और वह लालचंद का इलाज नहीं करवा सकते. उनके पास बस का किराया तक नहीं है.
गांव के लोगों ने बताया कि लालचंद की यह दशा देखकर हमारा भी दिल रोता है. ग्रामीणों ने कई बार लालचंद की मदद करने की कोशिश की, लेकिन इलाज में खर्चा अधिक होने की वजह से लालचंद का इलाज संभव नहीं हो पाया. ग्रामीणों का कहना है कि यदि सरकार लालचंद की मदद को आगे आए तो उसे बेड़ियों से मुक्ति मिल सकती है.
तत्कालीन चिकित्सा मंत्री राजेंद्र राठौड़ ने की थी मदद...
गांव के ओमवीर सिंह ने बताया कि तत्काल चिकित्सा मंत्री राजेंद्र राठौड़ आपके द्वार कार्यक्रम के तहत हमारे गांव शिमला में आए थे. इस दौरान लालचंद की पीड़ा से तत्कालीन चिकित्सा मंत्री राजेंद्र राठौड़ को अवगत करवाया था. इस दौरान तत्कालीन मंत्री राठौड़ ने तुरंत ही लालचंद के इलाज की हामी भरते हुए उसको इलाज के लिए जयपुर भेज दिया था. कुछ समय तक लालचंद का इलाज हुआ है. इस दौरान लालचंद धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगा, लेकिन आगे चलकर परिवार की आर्थिक स्थिति सही नहीं होने के चलते लालचंद के परिजन आगे इलाज नहीं करवा पाए. जिसके चलते एक बार फिर से लालचंद की मानसिक स्थिति खराब हो गई. मजबूरन लालचंद के परिवार को उसे फिर से बेड़ियों में जकड़ना पड़ा. ग्रामीणों का कहना है कि प्रदेश की गहलोत सरकार के संवेदन शील चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा यदि लालचंद का इलाज करवा दें तो निश्चित ही लालचंद एक बार फिर से स्वस्थ होकर अपने परिवार का सहारा बन सकता है.
उम्मीद अब भी कायम...
लालचंद की मुरझाई आंखें हर आने-जाने वाले व्यक्ति को इस नजर से देखती हैं कि शायद कोई उसे इन बेड़ियों से मुक्त दिला देगा. लालचंद के साथ-साथ परिवार और गांव के लोग भी लालचंद को बेड़ियों से मुक्त होते हुए देखना चाहते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि लालचंद का इलाज हो जाता है और उसकी बेड़ियां हट जाती हैं तो गांव में होली और दिवाली दोनों एक साथ मनाई जाएगी. परिवार और ग्रामीणों को अब भी उम्मीद है कि शायद लालचंद फिर से अपने खेतों में जा पाएगा, गांव की गलियों में घूम पाएगा और परिवार का सहारा बनेगा.