चूरू. 'कौन कहता है कि आसमान में छेद नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालों यारो.' इसी कहावत को चरितार्थ करते हुए सुजानगढ़ के उम्मेद खान ने 20 साल की मेहनत से हजारों सालों का कैलेंडर बनाने में सफलता हासिल की है.
बचपन से ही गणित में अव्वल रहने वाले उम्मेद खान का कहना है कि साल 1985 में लाल किला देखने के लिए दिल्ली गया था. यहां तांबे की गोलाकार आकृति में बना 28 साल का कैलेंडर देखा. उसको देखकर उम्मेद खान के मन में विचार आया कि जब 28 साल का कैलेंडर हो सकता है तो हजारों सालों का क्यों नहीं. तभी से उम्मेद खान में धुन सवार हुई और तांबे के कैंलेडर को समझने में उन्होंने देर नहीं की.
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साल1990 में उम्मेद खान ने कैलेंडर बनाने का काम विदेश में रहते हुए शुरू किया. जब उनके मित्र शुक्रवार की छूट्टी मनाते तब उम्मेद खान नेकॉपी पेंसिल लेकर कैलेंडर बनाने बैठ जाते. सात साल की मेहनत के बाद साल 1997 में एक गोलाकार कैलेंडर बनकर तैयार हुआ. जिसमें फार्मूला तो फिट बैठ गया, लेकिन वो कैलेंडर उनको सुंदर नहीं लगा. तब फिर से उन्होंने काम शुरू किया और आयताकार कैलेंडर बनाने का मिशन लिया. ताकि बीचो-बीच कोई तस्वीर लगाकर कैलेंडर आकर्षक बनाया जा सके और साल 2009 तक आते-आते उन्होंने इसमें सफलता पाई.
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सभी धर्मों का सम्मान करने की सीख देते हुए उम्मेद खान ने इस कैलेंडर में लक्ष्मी देवी, मक्का मदीना, बालाजी महाराज, छोटा बच्चा, गुरू नानकदेव के चित्र लगाये ताकि यह कैलेंडर हर धर्म, समुदाय के लोगों के काम आ सके. भारत सरकार के कंट्रोलर जनरल ऑफ पेटेंट, डिजाईन, टेड मार्क की ओर से इस कैलेंडर को पेटेंट भी करवा लिया गया है. लेकिन उम्मेद खान की अब यह हसरत है कि लोग इस कैलेंडर को समझें और उपयोग में लें. 60 साल के उम्मेद खान को ये डर भी है कि जीवन का कोई भरोसा नहीं होता, कहीं ये कला मेरे साथ ही समाप्त न हो जाए.