चित्तौड़गढ़. मानसून सीजन में कम बारिश का असर अभी से नजर आने लगा है. खासकर मारवाड़ा इलाके में बहुत कम बारिश दर्ज की गई थी. इसके चलते हर साल मार्च के बाद भेड़ों के रेवाड़ के साथ मालवा का रुख करने वाले अभी से पलायन करते देखे जा सकते हैं. बड़ी संख्या में चरवाहे अपने परिवार के साथ भेड़ों के रेवड़ चित्तौड़गढ़ जिले के हर कोने से गुजरते नजर आते हैं. इसका मुख्य कारण मारवाड़ इलाके में इस बार औसत से भी कम बारिश होना है.
अब तक भेड़ निष्क्रमण का काम मार्च अंत तक की देखने को मिलता था, लेकिन इस बार दिसंबर अंत तक ही चरवाहे रेवाड़ के साथ निकलते देखने को मिल रहे हैं, क्योंकि मारवाड़ से मालवा के बीच चित्तौड़गढ़ आता है, ऐसे में बेगू, राशमी, भीलवाड़ा मार्ग के बड़ी संख्या में भेड़ों के टोले के टोले हर दिन देखने को मिल रहे हैं. किसी टोले में 100 तो किसी में 500 तक भेड़ें देखी जा सकती हैं.
रेवड़ लेकर निकल रहे दल्ला राम बताते हैं कि वे लोग मारवाड़ जंक्शन के चिडल्ला गांव से आए हैं और मालवा की ओर जा रहे हैं, इस बार बारिश बहुत कम हुई है और भेड़ों के खाने के लिए घास फूस तक नहीं बची है, ऐसे में 3 महीना पहले ही भेड़ों के रेवड़ लेकर निकल गए. मारवाड़ जंक्शन इलाके में भेड़ पालन के अलावा रोजगार का अन्य कोई साधन नहीं है, इस कारण बड़ी संख्या में लोग परिवार सहित भेड़ लेकर निकल पड़े हैं. उनके गांव से ही लगभग 2 दर्जन से अधिक लोग गांव छोड़ चुके हैं.
यह भी पढ़ेंः दीनदयाल उपाध्याय स्मारक स्थल पर 14 फरवरी को आएंगे बिरला, 'आत्मनिर्भर भारत सक्षम भारत' विषय पर होगा व्याख्यान
उन्होंने बताया कि भेड़ पालक की ओर से हर व्यक्ति को 10000-10000 रुपए प्रतिमाह मजदूरी दी जाती है,l क्योंकि गांव में खाने पीने को तो कुछ बचा नहीं है ऐसे में हम लोग परिवार के साथ पेड़ों के रेवड़ लेकर निकल जाते हैं. वे लोग उज्जैन, रतलाम, ओमकारेश्वर, धार, जबलपुर तक भेड़ चराने जाते हैं और बारिश से पहले लौट आएंगे. उन्होंने बताया कि रास्ते में चोर उचक्के भी काफी मिलते हैं ऐसे में भेड़ों की सुरक्षा को लेकर हर समय सतर्क रहना पड़ता है.